मानव सभ्यता, चिंतन और कला का विकास जिन तीन मूल तत्त्वों की ओर प्रारंभ ही उन्मुख रहा है- वे हैं सत्य, शिव और सुंदर। वैदिक काल से अब तक दर्शन और चिंतन की सारी परंपराएँ इन्हीं तीन मानवीय मूल्यों की सिद्धि में व्यस्त रहीं।
सत्यम शिवम् सुंदरम का मतलब
सत्य के बारे में, यह एक निर्विवाद तथ्य है कि जो कुछ भी आडंबररहित एवं अकृत्रिम है, वह सत्य है। खुली आँखों से दिखाई पड़नेवाली वास्तविकता ही सत्य है।
दूसरी ओर, शिव विश्वचेतना में निहित वह तत्त्व है, जो लोकमंगल की दिशा में उन्मुख करता है। मनुष्य को मनुष्य के हितार्थ उन्मुख करने की भावना ही शिवम् है और सुंदरम् सत्य और शिव को समेटकर चलनेवाला वह अनुभूति और अभिव्यक्ति का उत्कर्ष है, जिससे आनंद की वर्षा होती है।
सत्य का प्रकाश शिवम् की ज्योति से अनुप्राणित होकर सुंदरम् की मनोहर अभिव्यक्ति करता है। इन तीनों का समन्वय जीवन को पूर्णता प्रदान करता है, मानवीय मूल्यों को एक स्थायी रूप देता है।
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