चंद्र नमस्कार कैसे किया जाता है? Chandra Namaskar ke Fayde

योग और प्राणायाम के बारे में आपने कई बार सुना होगा कि इनका अभ्यास करने से तन और मन दोनों स्वस्थ रहता है। इसी कड़ी में आज हम जानेंगे कि चंद्र नमस्कार क्या है? Chandra Namaskar Kaise Kiya Jata Hai? और चंद्र नमस्कार करने के फ़ायदे क्या-क्या हैं? वैसे संक्षेप में बताएँ तो चन्द्र नमस्कार करने से पैरों से लेकर सिर तक अर्थात सम्पूर्ण शरीर को आरोग्य, शक्ति व ऊर्जा की प्राप्ति होती है।

Chandra Namaskar Kya Hai?

चन्द्र नमस्कार चन्द्रमा के प्रति की जाने वाली योगिक स्थितियां हैं। इसके अंतर्गत सूर्य नमस्कार के आसनों का भी समावेश होता है। सूर्य नमस्कार में 12 स्थितियां होती हैं, वहीं चन्द्र नमस्कार में 14 स्थितियां होती हैं।

चन्द्र नमस्कार शरीर में पानी की मात्रा का संतुलन बनाता है। साथ ही इससे रक्त शोधन की प्रक्रिया तीव्र होती हैं। वात, पित्त, कफ तीनों कम होते हैं, आँखों की रोशनी बढती है और त्वचा सुन्दर होती है. यह मोटापा कम करने में भी सक्षम है।

चंद्र नमस्कार कैसे किया जाता है?

स्थिति –1 (नमस्कार)

चन्द्रमा की ओर अभिमुख होकर नमस्कार की मुद्रा में हाथों को वक्ष के सामने रखें।

स्थिति- 2 (हस्तोत्तानासन)

श्वास को अन्दर भरते हुए हाथों को सामने से खोलकर उठाते हुए पीछे की ओर ले जाएँ। मेरुदंड को मोड़ें, दृष्टि को आकाश की ओर रखें।

स्थिति-3 (पादहस्तासन)

अब हाथों को श्वास बाहर निकालते हुए सामने की ओर झुकाते हुए पैरों के पास भूमि पर स्पर्श करें। हथेलीयों को भूमि से स्पर्श करते हुए सर को घुटनों से लगाने का प्रयास करें।

स्थिति-4 (अश्व संचालनासन)

पादहस्तासन के बाद बायाँ पैर पीछे की ओर खिसका दें, पंचा जमीन पर स्थिर दायाँ घुटना आगे कि ओर तान कर रखें। घुटना छाती के सामने रहेगा एवं पैर की भूमि पर टिका रहेगा। दृष्टि आकाश की ओर हो. श्वास अन्दर भरकर रखें।

स्थिति-5 (अर्धचंद्रसन)

संतुलन बनाते हुए अपने हाथों को नमस्कार मुद्रा में छाती के सामने से पीछे की ओर ले जाएँ, दृष्टि ऊपर की ओर रखें। ठोढ़ी जितना हो सके ऊपर की ओर उठाएं. हाथों को ऊपर की ओर खींचते समय पीठ और सिर को पीछे की ओर झुकाएं व गहरी साँस लें। फिर साँस को रोक कर रखें।

स्थिति-6 (पर्वतासन)

श्वास को छोड़ते हुए दोनों हाथों निचे ले आयें और दायें पैर को भी पीछे की ओर ले जाते हुए पर्वतासन की स्थिति में आ जाएँ। शरीर का मध्य भाग ऊपर उठायें और निचे की ओर कुछ देर रुकें।

स्थिति-7 (अधोमुखश्वानासन)

हाथों एवं पैरों के पंजों को स्थिर रखते हुए वक्ष: स्थल से भूमि का स्पर्श करें। इस स्थिति में दोनों हाथ, दोनों पैर, दोनों घुटने, वक्ष स्थल एवं सिर या ठोढ़ी इन 8 अंगों के भूमि पर टिकने से यह अष्टांग आसन कहलाता है। इस स्थिति में साँस की गति सामान्य रखते हैं।

स्थिति-8 (भुजंगासन)

साँस को अन्दर भरते हुए वक्ष स्थल को ऊपर उठा कर हाथों को सीधा करने का प्रयास करें। हाथों की कोहनियाँ बगल से लगी हुई हों। आकाश की ओर दृष्टि रखें. कमर तक का भाग केवल जमीन पर टिका हो एवं पीछे से दोनों पैरों को मिलाकर रखें।

स्थिति-9 (पर्वतासन)

साँस को छोड़ते हुए दोनों एडियों को जमीन से लगाने का प्रयास करें। शरीर का मध्य भाग ऊपर उठायें और सिर निचे की ओर झुकाकर रखें। ठोढ़ी कंठ के साथ लगायें और कुछ देर तक रुकें।

स्थिति-10 (अश्वसंचालनासन)

चतुर्थ स्थिति के अनुरूप, किन्तु अब साँस भरते हुए बायाँ पैर आगे दोनों हाथों के बीच में ले आयें, गर्दन पीछे, कमर निचे रखें।

स्थिति-11 (अर्ध चंद्रासन)

अब संतुलन बनाते हुए अपने हाथों को नमस्कार की मुद्रा में छाती के सामने से पीछे की ओर ले जाएँ, दृष्टि ऊपर की ओर रहे. ठोढ़ी जितना हो सके, ऊपर की ओर उठायें। हाथों को ऊपर की ओर खींचते समय एवं पीठ और सिर को पीछे की ओर तानते समय गहरी साँस भरें, साँस रोक कर रखें।

स्थिति-12 (पादहस्तासन)

अब हाथों को साँस छोड़ते हुए पीछे से सामने की ओर झुकाते हुए पैरों के पास भूमि पर स्पर्श कराएँ। हथेलियों को भूमि से स्पर्श करते हुए सिर को घुटने से लगाने का प्रयास करें।

स्थिति-13 (हस्तोत्तानासन)

साँस को अन्दर भरते हुए हाथों को सामने से खोलकर ऊपर उठाते हुए पीछे की ओर ले जाएँ, मेरुदंड को मोड, दृष्टि को आकाश की ओर करें।

स्थिति-14 (नमस्कार)

चन्द्रमा की ओर अभिमुख होकर नमस्कार की मुद्रा में हाथों को वक्ष स्थल के सामने रखें।

चंद्र नमस्कार करने के फ़ायदे

  • चन्द्र नमस्कार करने से शरीर सदैव लचीला बना रहता है और बुढ़ापे से बचने का सर्वोत्तम उपाय है।
  • इससे प्रत्येक मांसपेशी प्रत्येक जोड़, सातों चक्र, सातों अंत: स्रावी hormone ग्रंथियां स्वस्थ रहती हैं। शरीर सुडौल व सुसंगठित बनता है।
  • इससे समस्त ग्रंथि प्रणाली, लघु मस्तिष्क व रीढ़ का जोड़, रीढ़ का सर्वाइकल भाग, फेफड़े और कधें, पाचन तंत्र व नाभि मंडल, टांगों की नसें, उनकी मांसपेशियों, टखने, पैरों के उँगलियों के जोड़, भुजाओं तथा उनके जोड़, ह्रदय, मस्तिष्क, गुर्दे, जिगर, सभी प्रणालियाँ जैसे अस्थि प्रणाली, मांसपेशी प्रणाली, पाचन प्रणाली,रक्त संचरण प्रणाली, ग्रंथि प्रणाली, स्नायु तंत्र प्रणाली, प्रजनन प्रणाली एवं रोग प्रतिरोधक प्रणाली प्रभावित होते हैं।

इसे भी पढ़ें: धनुरासन करने की विधि एवं फ़ायदे

Leave a Comment

Exit mobile version