जलवायु परिवर्तन के कारण और प्रभाव: Climate Change in Hindi

जलवायु का मतलब होता है किसी विशेष क्षेत्र में काफ़ी लम्बे समय तक रहनेवाला औसत मौसम। और जब उस विशेष क्षेत्र के औसत मौसम में बदलाव आता है, तो उसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं। अंग्रेज़ी में जलवायु परिवर्तन को climate change कहा जाता है। वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या बन गई है जिसके दुष्परिणाम धीरे-धीरे पूरी दुनिया के सामने आ रहे हैं। आइए जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण और प्रभाव क्या-क्या हैं?

जलवायु परिवर्तन के कारण

जलवायु परिवर्तन के वैसे तो कई कारण हैं, लेकिन इनको हम मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बाँट सकते हैं। सबसे पहला, प्राकृतिक कारण यानी जो प्रकृति के कारण स्वतः हो रहा है और दूसरा मानवीय कारण जो मनुष्यों की अलग-अलग गतिविधियों के कारण जलवायु परिवर्तन को और उत्तेजित कर रही है।

जलवायु परिवर्तन के प्राकृतिक कारण

  • महासागरीय धाराएँ: महासागर जलवायु व्यवस्था के महत्त्वपूर्ण घटक होते हैं। ये पृथ्वी के लगभग 71% भाग पर फैले हैं। वायुमण्डल अथवा पृथ्वी द्वारा सूर्य के विकिरण का जितना अवशोषण किया जाता है, ये उससे दोगुना अवशोषित करते हैं। यही कारण है कि जलवायु के निर्धारण में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। समय-समय पर महासागर अपना ताप वायुमण्डल में छोड़ता है, जिससे जलवायु प्रभावित होती है। अत्यधिक ताप जलवाष्प के रूप में पृथ्वी पर ग्रीन हाउस गैस के प्रभाव को बढ़ाता है। इस प्रकार महासागरीय धाराएँ भी जलवायु को प्रभावित करने में योगदान देती हैं।
  • महाद्वीपीय पृथक्करण: महाद्वीपों का निर्माण तब हुआ था जब लाखों वर्ष पूर्व धरती का एक बड़ा हिस्सा धीरे-धीरे पृथक् होना शुरू हुआ। इस अलगाव का जलवायु पर भी प्रभाव पड़ा, क्योंकि इसने धरती, उसकी अवस्थिति तथा जलमण्डलों की भौतिक विशेषताओं को परिवर्तित कर दिया। धरती के विखण्डन ने महासागरीय धाराओं तथा पवनों के प्रवाह को भी परिवर्तित कर दिया, जिसका प्रभाव जलवायु पर पड़ रहा है। महाद्वीपों का यह पृथक्करण आज भी जारी है और जलवायु परिवर्तन को और गतिशील बना रहा है।
  • ज्वालामुखी: ज्वालामुखी विस्फोट से काफी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड (SO), सल्फर ट्राइऑक्साइड (SO3), क्लोरीन (Cl2), जलवाष्प, धूलकण तथा राख वायुमण्डल में बिखरकर फैल जाते हैं। यद्यपि ज्वालामुखी गतिविधियाँ कुछ दिनों की ही होती हैं, लेकिन उससे भारी मात्रा में निकलने वाली गैसें तथा राख कई वर्षों तक जलवायु पैटर्न को प्रभावित करते हैं।
  • मीथेन गैस (CH4): नासा के वैज्ञानिकों के एक दल द्वारा आर्कटिक के वातावरण का कई स्तरों पर अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला है कि आर्कटिक के नीचे एक खतरनाक ग्रीन हाउस गैस मीथेन का विशाल भण्डार है जो आर्कटिक पर जमी बर्फ को पिघला रहा है। इस गैस से वातावरण भी तप्त हो रहा है। बर्फ में पड़ रही दरारों से मोथेन पानी में घुलकर हवा के सम्पर्क में आ रही है, जिससे आर्कटिक क्षेत्र के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर भी तापमान में वृद्धि हो रही है।

जलवायु परिवर्तन के मानवीय कारण

  • जीवाश्म ईंधन का प्रयोग: जीवाश्म आधारित ईंधन के दोहन से भी कार्बन-डाइऑक्साइड एवं नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसी गैसों का उत्सर्जन बढ़ा है। इस मानवजनित उत्सर्जन से भी जलवायु परिवर्तन की समस्या विकराल हुई है। जीवाश्म आधारित ईंधन के दहन से जहाँ ग्रीन हाउस गैसों का संचयन बढ़ा है, वहीं वायु एवं जल प्रदूषण भी बढ़ा है। अम्लीकरण भी इसी का नतीजा है। कार्बन डाइऑक्साइड (CO,) का सबसे ज्यादा उत्सर्जन जहाँ कोयले के दहन के कारण होता है, वहीं इस समय तेल का दहन वायु में 30% तक CO, का उत्सर्जन करता है।
  • आधुनिक कृषि: जलवायु परिवर्तन में कृषि से जुड़े क्रिया-कलापों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। आज हम परम्परागत खेती के स्थान पर आधुनिक खेती की तरफ उन्मुख हैं। कृषि क्षेत्र में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग अत्यधिक बढ़ गया है। जलयुक्त धान के खेत की जुताई से मीथेन का उत्सर्जन होता है। जुगाली करने वाले पशु भी मीथेन का उत्सर्जन करते हैं। इससे ग्रीन हाउस गैस प्रभाव में वृद्धि होती है।
  • ग्रीन हाउस गैस: ग्रीन हाउस प्रभाव एक ऐसी घटना है, जिसके द्वारा पृथ्वी का वायुमण्डल गुजरते हुए सूर्य के प्रकाश से कार्बन-डाइऑक्साइड जलवाष्प तथा मीथेन जैसी गैसों की उपस्थिति में सौर विकिरण को न केवल अपने अन्दर समाहित कर लेता है, बल्कि उस ताप को भी अवशोषित कर लेता है, जो पृथ्वी की सतह तथा निचले वातावरण को सामान्य से अधिक गर्म कर देता है। जलवाष्प (H2O) तथा कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) ग्रीन हाउस गैसों में प्रमुख हैं। मीथेन (CH4), नाइट्रस ऑक्साइड (N2O), क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) तथा अन्य ग्रीन हाउस गैसें बहुत ही निम्न मात्रा में मौजूद हैं, लेकिन अपने कई गुना ताप अवशोषक गुणों एवं वायुमण्डल में दीर्घावधि तक बने रहने के गुणों के कारण इनका ताप प्रभाव भी काफी अधिक होता है।।
  • शहरीकरण: शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण लोगों की जीवन-शैली में काफी परिवर्तन आया है। विश्वभर की सड़कों पर वाहनों की संख्या काफी अधिक हो गई है। जीवन-शैली में परिवर्तन ने खतरनाक गैसों के उत्सर्जन में काफी अधिक योगदान दिया है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और परिणाम

Climate change यानी जलवायु परिवर्तन से सबसे पहले तो मानव जाति का अस्तित्व ही ख़तरे में पड़ गया है। इससे कई तरह के दुष्प्रभाव हो रहे हैं जैसे कि तापमान में वृद्धि, समुद्री जल-स्तर में वृद्धि, वर्षा के प्रारूप में परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं का ख़तरा, रोगों का प्रसार, जंगलों में आग की बारम्बरता की वृद्धि, आदि। ये सभी आपदाएँ मानव जीवन के लिए काफ़ी ख़तरनाक है।

आए दिन आप न्यूज़ में देखते ही होंगे कि जलवायु परिवर्तन के कारण पहले के जैसा अब बारिश सही से नहीं होती है, समय से नहीं होती है, गर्मी के दिनों में कुछ ज़्यादा ही गर्मी पड़ती है, ठंडी के दिनों में कुछ ज़्यादा ही ठंडी पड़ती है, आपके घर के आसपास जल स्तर कम हो रहा है, हिमनदों के पिघलने से भू-स्खलन तथा हिम-स्खलन की घटनाएँ सामान्य हो रही हैं। ये सभी जलवायु परिवर्तन के ही परिणाम हैं, जिनको अगर समय रहते हम कम या रोकते नहीं है तो मानव जीवन को काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

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