Diwali Kyon Manate Hain? दीपावली पर्व का पौराणिक महत्व (कथा) Dipawali Poem कविता

दीप जलाओ, दीप जलाओ, आज दिवाली रे! इस कविता को सुनने के बाद दिवाली की याद आ जाती है। क्या आपको पता है कि Diwali Kyon Manate Hain? आज हम दीपावली पर्व के पौराणिक कथाओं के बारे में थोड़ा विस्तार से बात करेंगे, तो आप भी ख़ुशियाँ मनाइए क्योंकि दिवाली भी आने ही वाली है।

वैसे मुझे बताने की जरुरत नहीं है कि दिवाली में क्या-क्या होता है। हर तरफ दियों से पूरी दुनिया प्रकाशमय तो हुई ही रहती है, लेकिन जो बेहद ज़रूरी चीज़ है लोगों के बीच ख़ुशी और सौहार्द। और इस वर्ष 2020 me Diwali 14 November को है।

Diwali Kyon Manate Hain?

दीपावली से जुड़े कई रोचक तथ्य हैं, जो इतिहास के पन्नों में अपना विशेष स्थान बना चुके हैं। इस पर्व का अपना ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व भी है, जिस कारण यह त्योहार किसी खास समूह का न होकर सम्पूर्ण राष्ट्र का हो गया है।

त्रेतायुग में भगवान राम जब रावण को हराकर अयोध्या वापस लौटे, तब श्रीराम के आगमन पर दीप जलाकर उनका स्वागत किया गया और ख़ुशियाँ मनाई गईं।

यह भी कथा प्रचलित है जब श्रीकृष्ण ने आततायी नरकासुर जैसे दुष्ट का वध किया, तब ब्रजवासियों ने अपनी प्रसन्नता दीपों को जलाकर प्रकट की।

राक्षसों का वध करने के लिए माँ देवी ने महाकाली का रूप धारण किया। राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध काम नहीं हुआ, तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर के स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई। इसी रात इनके रौद्र रूप काली की पूजा का ही विधान है।

Diwali/Dipawali की पौराणिक कथा

त्योहार तो एक ही है, लेकिन कथाएँ कई। Diwali Kyon Manate Hain? इन प्रसंगों से काफ़ी कुछ पता चल जाएगा। और हाँ, आप इनमें से किन-किन कथाओं के बारे में पहले से जानते हैं, ज़रूर बताइएगा।

महाप्रतापी तथा दानवीर राजा बलि ने अपने बाहुबल से तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली, तब बलि से भयभीत देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर प्रतापी राजा बलि से तीन पग पृथ्वी दान के रूप में माँगी। महाप्रतापी राजा बलि ने भगवान विष्णु की चालाकी को समझते हुए भी याचक को निराश नहीं किया और तीन पग पृथ्वी दान में दे दी।

विष्णु ने तीन पग में तीनों लोगों को नाप लिया। राजा बलि की दानशीलता से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पाताललोक का राज्य दे दिया साथ ही यह भी आश्वासन दिया कि उनकी याद में भू-लोकवासी प्रत्येक वर्ष दीपावली मनाएँगे।

दिवाली पर्व का महत्व

  • कार्तिक अमावस्या के दिन सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह जी बादशाह जहांगीर को क़ैद से मुक्त होकर अमृतसर वापस लौटे थे।
  • कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध दीपावली के एक दिन पहले चतुर्दशी को किया था। इसी ख़ुशी में अगले दिन अमावस्या को गोकुलवासियों ने दीप जलाकर ख़ुशियाँ मनाई थीं।
  • 500 ईसा पूर्व की मोहन जोदड़ो सभ्यता के प्राप्त अवशेषों में मिट्टी की एक मूर्ति के अनुसार उस समय भी दीपावली मनाई जाती थी। उस मूर्ति में मातृ-देवी के दोनों ओर दीप जलते दिखाई देते हैं।
  • बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के समर्थकों एवं अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के स्वागत में हज़ारों-लाखों दीप जलाकर दीपावली मनाई थी।
  • सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक दीपावली के दिन हुआ था इसलिए दीप जलाकर ख़ुशियाँ मनाई थीं।
  • ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में रचित कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार कार्तिक अमावस्या के अवसर पर मंदिरों और घाटों (नदी के किनारे) पर बड़े पैमाने पर दीप जलाए जाते थे।
  • अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का निर्माण भी दीपावली के ही दिन शुरू हुआ था।

जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने दीपावली के दिन ही बिहार के पावापुरी में अपना शरीर त्याग दिया। महावीर-निर्वाण संवत् इसके दूसरे दिन से शुरू होता है इसलिए अनेक प्रांतों में इसे वर्ष के आरम्भ की शुरुआत मानते हैं।

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Dipawali Kyo Manaya Jata Hai?

दीपोत्सव का वर्णन प्राचीन जैन ग्रंथों में मिलता है। कल्पसूत्र में कहा गया है कि महावीर-निर्वाण के साथ जो अंतरज्योति सदा के लिए बुझ गई है, आओ हम उसकी क्षतिपूर्ति के लिए बर्हीज्योति के प्रतीक दीप जलाएँ।

पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व मगाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगा तट पर स्नान करते समय ‘ओम्‘ कहते हुए समाधि ले ली।

महर्षि दयानंद ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की।

दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे।

मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेते थे।

शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लाल क़िले में आयोजित कार्यक्रमों में हिंदू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे।

Diwali Poem: दीपावली पर्व पर कविता 

तो ये सारे प्रसंग काफ़ी लोकप्रिय हैं, जिससे हमें दिवाली की पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं के बारे में पता चलता है कि Diwali Kyon Manate Hain? अब हम एक कविता के बारे में बात करते हैं, जो बच्चों को काफ़ी पसंद है।

दीप जलाओ, दीप जलाओ,
आज दिवाली रे।
खुशी-खुशी सब हंसते आओ,
आज दिवाली रे।

मैं तो लूंगा खेल-खिलौने,
तुम भी लेना भाई।
नाचो, गाओ, खुशी मनाओ,
आज दिवाली आई।

आज पटाखे खूब चलाओ
आज दिवाली रे।
दीप जलाओ, दीप जलाओ
आज दिवाली रे।

नए-नए मैं कपड़े पहनूं,
खाऊं खूब मिठाई।
हाथ जोड़कर पूजा कर लूं,
आज दिवाली आई।

खाओ मित्रों, खूब मिठाई,
आज दिवाली रे।
दीप जलाओ, दीप जलाओ,
आज दिवाली रे।

आज दुकानें खूब सजी हैं,
घर भी जगमग करते।
झिलमिल-झिलमिल दीप जले हैं,
कितने अच्छे लगते।

आओ, नाचो, खुशी मनाओ,
आज दिवाली रे।
दीप जलाओ, दीप जलाओ,
आज दिवाली रे।

Happy Diwali!

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