डॉ० राजेन्द्र प्रसाद का जीवन परिचय: डॉ० राजेन्द्र प्रसाद की मृत्यु कैसे हुई? Dr. Rajendra Prasad Biography in Hindi

राजेन्द्र प्रसाद आजाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे. इन्होंने तीन बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षता की. ये गाँधी जी के विचारों से प्रेरित थे, और इसलिए वे गाँधी जी के विचारों का प्रचार किया करते थें. राजेन्द्र प्रसाद जी का जीवन भारतवासियों के लिए बहुत प्रेरणादायक रहा है. अब आप सभी के मन में सवाल होगा कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की मृत्यु कैसे हुई? तो आज हम आपसे Dr. Rajendra Prasad Biography in Hindi के बारे में बात करेंगे.

डॉ० राजेन्द्र प्रसाद कौन थे?

डॉ० राजेन्द्र प्रसाद हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति थे. इनका जन्म 3 दिसंबर 1884 को जीरादेई (बिहार) में हुआ था. डॉ. राजेंद्र प्रसाद के पिता का नाम महादेव सहाय तथा माता का नाम कमलेश्वरी देवी था. उनके पिता संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे एवं माता धर्मपरायण महिला थी.
बिहार राज्य में भी सौभाग्यशाली है छपरा जिला की जीरादेई की वह धरती, जिसकी धूल में लेटकर बड़े हुए थे, हमारी आँखों के तारे देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद. इनकी प्रांरभिक पढ़ाई उर्दू-फारसी के माध्यम से हुई. इन्होनें अपनी प्रारंभिक शिक्षा बिहार से पूरी की थी.
उसके बाद 1902 ई० में ये प्रवेश परीक्षा में बैठे, तो कलकत्ता विश्वविद्यालय से सर्व प्रथम आए. इसके बाद इन्होंने एफ० ए०, बी० ए०, एम० ए० तथा एम० एल० की उपाधियाँ प्राप्त की. यदि किसी भारतीय नेता के विद्यार्थी-जीवन में उसकी उतरपुस्तिकाओं का परीक्षण करके, यह अभिशंसा की गई हो, ‘परीक्षार्थी परीक्षक से अधिक योग्य है’, तो वे हैं आदर्श कुशाग्रबुद्धि ‘राजेंद्रबाबू’ ही.

डॉ० राजेन्द्र प्रसाद का जीवन परिचय 

राजेन्द्र बाबू अपने विद्यार्थी-जीवन से ही राजनीति में भाग लेने लगे थें. कलकत्ता में 1960 ई० में इन्होंने बिहारी क्षेत्रों को संगठित करने के लिए ‘बिहार क्लब’ स्थापित किया. 1905-06 में बंगभंग की घटना ने इन्हें पीड़ित किया और इनके मन में अंग्रेज शासकों से लोहा लेने का संकल्प दृढ़ होने लगा.

1919 ई० में पंजाब में जलियाँवाला बाग-हत्याकांड से प्रभावित होकर, अंग्रेजों से जूझने के लिए राजेंद्रबाबू ने बिहार स्वयंसेवकों की एक विशाल वाहिनी बनाई. पटना में जब ‘सदाकत आश्रम’ की स्थापना हुई, तब उन्होंने उसमें पूरा योगदान दिया. 1923 ई० में इनके गुणों से प्रभावित होकर नेताओं ने इन्हें कांग्रेस का महामंत्री बनाया.

इन्हें 1942 ई० की अगस्त क्रांति में तीन वर्ष की सजा मिली और कारागार भेजा गया. 1945 ई० में इन्होंने शिमला- कॉन्फ्रेंस में भाग लिया, इसमें उन्होंने अत्यधिक कार्यकुशलता दिखाई. अब स्वतंत्रता की लालिमा छिटकने ही वाली थी, राष्ट्र-संचालन के निर्मित विधाननिर्मात्री सभा का आयोजन हुआ, उस सभा के ये अध्यक्ष चुने गए. 1946 ई० में केन्द्रीय मंत्रीमंडल में इन्होंने खाद्य मंत्री का पदभार सँभाला.

काँग्रेस के लखनऊ-अधिवेशन में महात्मा गाँधी की दृष्टि उन पर पड़ी. 1971 ई० में जब महात्मा गाँधी चंपारण-आंदोलन के सिलसिले में बिहार आए, तब इन्होंने पूरा सहयोग दिया. लोग इन्हें ‘बिहार का गाँधी’ कह कर पुकारने लगे.अंग्रेजों के साथ भारतीयों के स्वतंत्र-संघर्ष को यदि देवासुर-संग्राम मानें, तो राजेन्द्र-बाबू ने उसमें जो भूमिका निभाई है, वह हमारे स्वतंत्र इतिहास का स्वर्णिम अध्याय बन चुका है.

Dr. Rajendra Prasad Biography in Hindi 

भारत में गणतंत्र का सूरज चमका, तो पूरे राष्ट्र ने इनकी त्याग-तपस्या से प्रभावित होकर 1950 ई० में इन्हें स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति पद पर आसीन किया. शताब्दियों से परतंत्रता की चक्की में पिसता हुआ राष्ट्र नेताओं के अथक प्रयास से स्वतंत्र हुआ. स्वतंत्रता के बाद से 1962 ई० तक ये भारत के राष्ट्रपति बने रहें.

उन दिनों राष्ट्रपति का मासिक वेतन दस हजार रुपये था. किन्तु इसे घटाकर इन्होंने स्वेच्छा से ढाई हजार कर दिया था. एक निर्धन देश का राष्ट्रपति इतनी मोटी रकम लें, यह इन्हें स्वीकार्य नहीं था. त्याग से भी अहंकार उत्पन्न होने का खतरा बना रहता है, किन्तु राजेन्द्रबाबू में कभी ऐसा नहीं हुआ. राष्ट्रपति होने के पश्चात राजेन्द्रबाबू जनता के उतने ही निकट रहे, जितने उसके पहले थें. इन्होंने राष्ट्रपति भवन का द्वार सबके लिए उन्मुक्त यानि खोल दिया था.

राष्ट्र के महत्तम व्यक्ति से देश का लघुत्तम व्यक्ति समान भाव से मिल सकता है, यह तो इनके हृदय की विशालता थी. जनता और राजकीय निवास के बीच जो दूरी थी, उसे इन्होंने बारह वर्षों के कार्यकाल में समाप्त कर दिया था.

राजेन्द्रबाबू ने गाँधी-धर्म को पूर्णत आत्मसात कर लिय था. इन्होंने अपने राष्ट्रपति-पद पर अनेक कार्य किए, इनका सहयोग पाकर उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री पड़ित जवाहरलाल नेहरू सारे संसार में पंचशील का सूत्र लागू किये.

डॉ० राजेन्द्र प्रसाद की मृत्यु कब हुई?

स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की मृत्यु 28 फरवरी, 1963 को पटना में हुई. 78 वर्ष की उम्र (1962 ई०) के होते ही, इनका स्वास्थ्य बहुत गिरने लगा, जिससे वे हमेशा बीमार रहने लगे. उस समय इन्होनें डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन को अपने पद पर सुशोभित कर, दिल्ली के भव्य प्रसाद को छोड़कर, सदाकत आश्रम, (पटना) की अपनी पुरानी कुटिया में रहने लगे.

जहाँ से इन्होंने राजनीतिक जीवन और तूफानी कार्यक्रम का आरंभ किया था. यही रहकर इन्होंने अपना शेष जीवन बिताने का विचार किया, किन्तु परमात्मा ने इन्हें बहुत दिनों तक हमारे बीच रहने नहीं दिया. 28 फरवरी, 1963 को इन्होंने पटना के सदाकत आश्रम में अंतिम साँस ली.

इनके प्राण जाते ही लगा कि प्रेरणा का स्रोत सुख गया, प्रकाश का पर्वत ही जैसे उखड़ गया. इनकी शव-यात्रा में लाखों लोगों की भीड़ थी. जिस पथ पर खड़े होकर लोगों ने कभी चन्द्रगुप्त, अशोक, बुद्ध और महावीर की अंतिम विदाई सही होगी, उसी पथ से लोगों ने अपने राष्ट्रदेवता देशरत्न राजेंद्र बाबु की अंतिम विदाई दी.

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