गुप्तकाल को स्वर्णयुग क्यों कहा जाता है? स्वर्णयुग किसे कहते हैं? गुप्तकाल की विशेषताएँ

आपको मालूम होगा कि स्वर्ण का मतलब ‘सोना‘ होता है और युग का मतलब काल या समय होता है. यानि स्वर्णयुग उस युग को कहते हैं जो सोने की तरह मूल्यवान होता है. इतिहासकारों ने गुप्तकाल को स्वर्णयुग कहा है. अब आपके मन में सवाल होगा कि आखिर गुप्तकाल में ऐसा किया हुआ था. जिससे इस कला को ही स्वर्णयुग कहा गया. तो आज आप जानेंगे कि गुप्तकाल को स्वर्णयुग क्यों कहा जाता है? गुप्तकाल को स्वर्णयुग कहे जाने के प्रमुख कारण क्या है?

स्वर्णयुग किसे कहते हैं? 

स्वर्णयुग उस युग को कहा जाता है, जो सोने की तरह मूल्यवान, कीर्तिवान, शक्तिवान, धनवान, गुणवान और आकर्षक होता है. जिस काल या युग में देश की राजनीतिक, धार्मिक, साहित्य और कला तथा विज्ञान की उन्नति उच्च शिखर पर पहुँचती है तथा देश में सुख-शांति तथा समृद्धि आती है, उस युग को स्वर्णयुग का नाम दिया जाता है.

भारतीय इतिहास में गुप्तकाल का अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि गुप्तकाल अत्यंत सुख-शांति और समृद्धि का काल था. इसलिए भारत में गुप्तकाल को स्वर्णयुग कहा गया है.

गुप्तकालीन स्वर्णयुग की तुलना एलिजाबेथ के समय से की जाती है. इसमें जरा भी संदेह नहीं है कि गुप्तों का शासनकाल भारतीय इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि इस काल में भारत की सर्वागीण उन्नति हुई थी.

गुप्तकाल को स्वर्णयुग क्यों कहा जाता है? 

गुप्तकाल में भारत देश की राजनीतिक, धार्मिक, साहित्य और कला तथा विज्ञान की उन्नति उच्च शिखर पर पहुंची तथा देश में सुख-शांति तथा समृद्धि आयी, इसलिए गुप्तकाल को स्वर्णयुग कहा जाता है. गुप्तकाल वही काल था, जिसमें भारतियों को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त थी और भारत की सभ्यता तथा संस्कृति के गौरव का प्रचार विदेशों में बड़े पैमाने पर हुआ था.

गुप्तकाल शांति तथा सुव्यवस्था, राजनीतिक एकता, महान सम्राटों, धार्मिक सहिष्णुता, वैदिक सभ्यता एवं संस्कृति, साहित्य तथा कला की उन्नति का युग था. इसलिए इस काल को स्वर्णयुग कहा गया है.

स्वर्णयुग के प्रमुख तत्व: गुप्तकाल को स्वर्णयुग कहे जाने के कारण  

  • शांति तथा सुव्यवस्था का काल
  • महान सम्राटों का काल
  • कला तथा साहित्य की उन्नति काल
  • धार्मिक सहिष्णुता काल
  • राजनीतिक एकता का काल
  • वैदिक सभ्यता एवं संस्कृति का काल
  • भारतीय सभ्यता के प्रचार का काल
  • वैज्ञानिक उन्नति का काल

गुप्तकाल की विशेषताएँ 

शांति तथा सुव्यवस्था का काल 

भारतीय इतिहास में गुप्तकाल सुव्यवस्था और शांति का युग था. इस युग में प्रजा की काफी उन्नति हुई थी. गुप्तवंश के शासकों ने एक विशाल  साम्राज्य की स्थापना की, जो कई सदियों तक चलता रहा. गुप्तकाल में कठोर दंड का विधान नहीं था, फिर भी उस युग में शांति और सुव्यवस्था कायम रहा. उस युग में न्याय की उचित व्यवस्था थी.

गुप्तकाल में व्यापार और व्यवसाय अवस्था काफी उन्नत थी. कृषि की उन्नति के लिए राज्य कई कार्य करती थी. जैसे, खेत, बीज, फसलों की सिंचाई की उचित व्यवस्था आदि. राज्य की सरकारें देश के गरीब दीन-दुखियों को पर्याप्त सहायता देती थी.

महान सम्राटों का काल 

इस काल के सभी सम्राट महान थे. समुद्रगुप्त, स्कंदगुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितीय आदि सभी सम्राट महान शासक थे. गुप्तकाल के सम्राट विद्वान, साहसी और वीर योद्धा थे.

इन महान सम्राटों ने विदेशियों को भारत की पवित्र भूमि से मार भगाया था और सम्पूर्ण भारत में विजयी का झंडा लहराया था. गुप्तकाल में भारत पूर्णरूप से स्वतंत्र हुआ था.

कला तथा साहित्य की उन्नति का काल 

गुप्तकाल में भारतीय कला तथा साहित्य की उन्नति हुई. कला के क्षेत्र में वास्तुकला, मूर्तिकला, शिल्पकला एवं संगीतकला की काफी उन्नति हुई. अजंता की गुफाएँ तथा एलोरा की गुफाएँ गुप्तकाल में ही बनी थी. अजंता और एलोरा की गुफाओं की चित्रकारी आज भी यह कहती है, गुप्तकाल स्वर्णयुग था.

साहित्य की उन्नति शांति काल में होती है. गुप्तकाल शांति का युग था, इसलिए इस युग में साहित्य की भी उन्नति हुई थी. गुप्तवंश के शासक साहित्य के प्रेमी थे. साहित्यकारों, लेखकों, कवियों और प्रसिद्ध दार्शनिकों से सम्राट का दरबार भरा रहता था. उनमें श्री कालिदास, राजा हरिषेन व विशाखदत्त आदि प्रसिद्ध साहित्यकार हैं.

धार्मिक सहिष्णुता का काल 

गुप्तकाल धार्मिक सहिष्णुता का युग था. इस युग के सम्राटों के नजर में सभी धर्म का अपना अलग-अलग महत्त्व था. किसी भी धर्म को वे बुरा नहीं मानते थे, उनके अनुसार सभी धर्म अपनी-अपनी जगह ठीक है. गुप्तकाल में सभी धर्मावलम्बी अपनी इच्छा के अनुसार स्वतंत्रतापूर्वक अपने-अपने धर्म को मानते थे.

धार्मिक क्षेत्र में राज्य किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करता था. धार्मिक सहिष्णुता की नीति से केवल भारतियों को ही लाभ नहीं हुआ. बल्कि कई देशों को इस नीति से लाभ हुआ. यूनानी, शक और कुषाणों को हिन्दू समाज में स्थान दिया गया .

राजनीतिक एकता का काल 

राजनीतिक एकता गुप्तकाल को स्वर्णयुग कहने का एक प्रमुख कारण था. सम्राट अशोक की मृत्यु के बाद देश की एकता बिखरकर कई भागों में बाँट गयी थी. गुप्तकाल के सम्राटों ने अपनी दिग्विजय नीति के द्वारा भारत की एकता को फिर से स्थापित की.

इससे भारत की गौरव में चार-चाँद लग गयी थी. गुप्तकाल के सम्राटों ने भारत में राजनीतिक एकता स्थापित की थी, इसलिए गुप्तकाल को स्वर्णकाल कहा गया है.

वैदिक सभ्यता एवं संस्कृति का काल 

गुप्तकाल में बहुत से ‘शैव तथा वैष्णव‘ मंदिर थे. वैदिक भाषा एवं संस्कृति को काफी उच्च स्तर पर पहुँचाया गया. संस्कृति को फिर से अपना पुराना महत्त्व, गौरव तथा स्थान मिल गया.

वैदिक सभ्यता एवं संस्कृति को गुप्त सम्राटों का संरक्षण मिल जाने से सभ्यता तथा संस्कृति को विकसित होने का  पर्याप्तअवसर प्राप्त हो गया. अत: गुप्तकाल वैदिक सभ्यता एवं संस्कृति का काल था, इसलिए इस युग को स्वर्णयुग कहा गया है.

भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रचार का काल 

इस काल में विदेशों में भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति का काफी प्रचार हुआ था. और उस समय भारतीय उपनिवेशों की स्थापना भी विदेशों में हुई थी. गुप्तकाल में भारतीय साहित्य का प्रचार कई विदेशी क्षेत्रों में हुआ था जैसे, जावा, सुमात्रा, चम्पा, कम्बोडिया आदि कई द्वीपों में. इस काल में भारतीय साहित्य का प्रचार विदेशों में खूब हुई थी, इसलिए इस काल को स्वर्णयुग कहा जाता है.

वैज्ञानिक उन्नति का काल  

कला, साहित्य एवं संस्कृति की उन्नति के साथ ही गुप्तकाल काल में विज्ञान की भी काफी उन्नति हुई थी. इस काल में रसायन विज्ञान, पदार्थ विज्ञान, धातु विज्ञान, गणित एवं ज्योतिष शास्त्र का विकास हुआ था. भिन्न, दशमलव और रेखा गणित की खोज भी इसी युग में हुई थी. आर्यभट्ट गुप्तकाल के ही गणितज्ञ और ज्योतिष थे.

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