15 अगस्त 1947, भारतीय इतिहास का सबसे महत्वपू्र्ण और भाग्यशाली दिन था, जब हमारे देश के जवानों और क्रांतिकारियों ने अपना सब कुछ न्योछावर करके देश को आजाद कराया। और उस दिन से हर भारतीय 15 अगस्त के दिन को बड़ी खुशी और उत्सव से मनाते हैं। भारत की आजादी के साथ ही भारतीयों ने अपने पहले प्रधानमंत्री का चुनाव पंडित जवाहर लाल नेहरु के रुप में किया।
स्वतंत्रता दिवस पर निबंध
15 अगस्त, 1947 का दिन भारतीय इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ है, जहाँ से उन्मुक्त भारत का अभिनव अध्याय खुलता है। इसी 15 अगस्त को विदेशी शासन के काले बादल छँटे थे, विदेशियों से अत्याचारों का करकापात बंद हुआ था। उनके शोषण का शोणितस्त्राव रुका था।
उस दिन की उषा बंदिनी नहीं थी, उस दिन की सुहावनी किरणों पर दासता की कोई परछाई नहीं थी। उस दिन कहीं भी गुलामी की वह दुर्गंध नहीं थी। उस दिन का सिंदूरी सबेरा पंक्षियों की चहचहाहट और देशवासियों की खिलखिलाहट से अनुगुंजित हो रहा था। जनजीवन ने मुछत के बाद नई अँगड़ाई ली थी। एक नई ताजगी का ज्वार सर्वत्र लहरा रहा था।
1292 ई० में ही तराइन के मैदान में पृथ्वीराज की पराजय के साथ-साथ हमारे स्वातंत्र्य-सूर्य को ग्रहण लग गया था, किन्तु 1757 ई० के पलासी-युद्ध में तो उसे अँगरेज-असुर ने पूरी तरह ग्रास लिया। परिणामत; भारतमाता पूरी बंदिनी हो गई और हम उनकी संतान पूर्णतः लौह-शृंखलित। हम जानते हैं कि स्वतंत्रता चली जाती है, तब जीवन निस्तेज होता है, उसमें कोई उत्साह नहीं रहता। स्वतंत्रता यदि स्वर्ग है, तो परतंत्रता साक्षात नरक।
परतंत्रता संसार का सबसे घृणित पाप है। सुप्रसिद्ध चिंतक सुकरात ने कभी कहा था कि परतंत्रता अत्याचार और डकैती की अमानुषी प्रणाली है। आर० जी० इगरसोल ने कहा था कि नेत्रों के लिए जैसे प्रकाश है, फेफड़ों के लिए जैसे वायु है, हृदय के लिए जैसे प्यार है, उसी प्रकार मनुष्य की आत्मा के लिए स्वतंत्रता है। इस खोई हुई स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए हमारे अनगिनत नौजवान फाँसी से तख्ते पर हँसते-हँसते झूल गए।
कितनी माताओं ने अपने नौनिहालों को ममता की गोद से उछलकर भाले की नोकों पर टँग जाने के लिए हृदय पर पत्थर रख लिया, कितनी बहनों ने अपने माथे में सिंदूर के बदले राख का टीका लगाना स्वीकार किया। आजादी का इतिहास लिखने में काली स्यही कभी सक्षम नहीं हो पाती, उसे लिखने के लिए खून की धारा बहानी पड़ती है।
वीर भगतसिंह, चंद्रशेखार आजाद, खुदीराम, सुभाषचंद्र बोस जैसे विरबांकुरों की शहादत पर, गौखले-तिलक-गाँधी की तपस्या पर, वीर सुभाष और सावरकर के दुर्दत साहस पर, जालियाँवाला बाग की रक्तसिंचित भूमि की बयार पर स्वतंत्रता का सूरज दमका था- इसी 15 अगस्त, 1947 के दिन। अँगरेज-शासकों ने अपना बोरिया-बिस्तर गोल किया था और भागे थे सात समुन्द्र पार।
Independence Day Essay in Hindi
15 अगस्त, 1947 को सारे भारतवर्ष में यह स्वतंत्रता-दिवस किस धूमधाम,किस शान-शौकत से मनाया गया था- इसे वे ही जानते हैं, जिन्होंने अपनी आँखों देखा होगा। लगता था। हमारी धरती के भाग्य फिर से जग उठे हैं। क्या गाँव, क्या नगर, क्या खेत, क्या पहाड़, क्या रेगिस्तान-सर्वत्र आनंद का पारावार लहरा उठा था।
गली-गली में उमगों के कुंकुम उड़ रहे थें -खुशियों के हिंडोले पर जनमत हिल्लोलित हो रहा था। बहुत दिनों से बीमारी मुक्त व्यक्ति को जिस प्रकार भोजन आच्छा लगता है। बहुत दिनों तक अंधेरे बंद कमरे में कैद रहने के बाद खुली हवा जितनी मनभावन लगती है, वही स्थिति उस दिन भारत में बच्चे-बच्चे की थी। हमारे मन प्राणों में एक रागिनी बज रही थी-
नहीं चाहते हम धन-वैभव, नहीं चाहते हम अधिकार।
बस स्वतंत्र रहने दो हमको और स्वतंत्र कहे संसार ।।
– मैथिलीशरण गुप्त
तब से हर वर्ष यह 15 अगस्त हमारे सक्षम एक राष्ट्रीय पर्व की भाँती आता है, खुशियों की बहार लूटा जाता है। इस दिन देश भर में जन-अवकाश (Public Holiday) रहता है। कचहरी, कार्यालय, न्यायालय, राजकीय भवन, विद्यालय-माहविद्यालय- सब पर तिरंगा झंडा फहराया जाता है, ‘जन-गण-मन-अधिनायक जय है भारत भाग्यविधाता’-यह राष्ट्रीय गीत गया जाता है। स्वतंत्रता के महत्व को समझानेवाले भाषण दिए जाते हैं। मिठाइयाँ खिलाई और खाई जाती है, नाच-गाने कविगोष्ठी, मुशायरे आदि के विशेष कार्यकर्म रहते हैं।
रात में घर बाहर दीपमालिकाओं से सजाया जाता है। नगर के मुख्य द्वारों पर विशेष सजावट रहती है। लगता है एक बार पुनः समय से पूर्व ही दीपावली आ गई हो। होटलों में गजब बहार होती है। पत्रिकाएँ तो रंग-बिरंगे चित्रों, तरह-तरह की कहानियाँ और निबंधों से सज जाती है।
15 अगस्त आनंद और त्याग का मंगलपर्व तो है ही, साथ ही हमारी वेदना और कचोट, हमारे आत्मदर्शन एवं आत्मपरीक्षण का स्मारक दिवस भी है। यदि हम अपने इस कर्दममय वर्तमान से सोचते नहीं हुए, तो हमरी आजादी की नैया इसी में फँस जाएगी, जिससे उबर पाना बहुत ही मुश्किल है। यदि हमने समय रहते समस्याओं की अंध घाटियों को पार नहीं किया होता, तो हमारी स्वतंत्रता का सूरज डूब जाएगा और तब पता नहीं, कितनी लंबी रातों के बाद पुनः नया सबेरा दमकेगा।
हमें स्मरण रखना चाहिए कि शताब्दियों की साधना का यह पौधा अक्षयवट तभी बन सकता है, जब हम अपने स्वार्थी के कुत्सित घेरे मिटा दे, राष्ट्रप्रेम का दिव्य उत्स हमारे रोम-रोम से फूटे, इसके संरक्षण और संवर्द्धन के लिए हम त्याग और तपस्या के अग्निपथ की यात्रा निरंतर जारी रखे।
15 अगस्त पर कविता
हम नन्ने मुन्ने बच्चे हैं,
दांत हमारे कच्चे हैं,
हम भी सरहद जायेंगे,
सीने पे गोली खाएंगे,
मर जायेंगे मिट जायेंगे,
देश की शान बढ़ाएंगे,
देश की शान बढ़ाएंगे।
स्वतंत्रता दिवस पर कविता
पन्द्रह अगस्त देश की शान है
यह मेरे देश का अभिमान है
गर्व होता है इस दिन पर मुझे
यही मेरी आन यही मेरा पहचान है।
देश की आजादी के लिए
शहीदों ने प्राण गवाएं
उन शहीदों की शहादत का
पन्द्रह अगस्त सम्मान है।
न भूलना कभी इस दिन को
यह देश की पहचान है
स्वतन्त्रता दिवस के नाम से
प्रसिद्ध देश की शान है।
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