पृथ्वी पर सुनामी, बाढ़, चक्रवात, भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट जैसी कई प्राकृतिक आपदाएं घटित होती है. इन प्राकृतिक आपदाओं को मानव द्वारा रोका नहीं जा सकता है. प्राकृतिक आपदाओं में ज्वालामुखी एक विनाशकारक आपदा है. यह एक प्राकृतिक दरार है, जिसने होकर पृथ्वी के आतंरिक भाग से पिघला हुआ पदार्थ विस्फोट के साथ बाहर निकलता है. ज्वालामुखी के लावा, राख से जन-जीवन काफी प्रभावित होता है. तो आज हम आपसे ज्वालामुखी के प्रकार और ज्वालामुखी क्या है? के बारे में बात करेंगे.
ज्वालामुखी क्या है?
ज्वालामुखी दो शब्दों ज्वाला और मुखी से मिलकर बना है. ज्वाला का मतलब ‘आग‘ और मुखी का मतलब ‘मुख‘ होता है. ज्वालामुखी भूपटल पर वह प्राकृतिक छेद या दरार है, जिससे होकर पृथ्वी के आतंरिक भाग से पिघला हुआ विस्फोट के रूप में बाहर निकलता है. पिघला हुआ पदार्थ लावा, राख, भाप और गैस के रूप में बाहर निकलता है. बाहर हवा में उड़ा हुआ लावा शीघ्र ही ठंडा होकर छोटे ठोस टुकड़ों में बदल जाता है, जिसे सिन्डर कहते हैं. उदगार में निकलने वाली गैसों में वाष्प का प्रतिशत सर्वाधिक होता है.
बहुत से ज्वालामुखी क्षेत्रों में उदगार के समय दरारों तथा सुराखों से होकर जल तथा वाष्प कुछ अधिक ऊँचाई तक निकलने लगते हैं, इसे गेसर कहा जाता है. जैसे- ओल्ड फेथफुल गेसर. यह यूएसए के यलोस्टोन पार्क में है, इसमें प्रत्येक मिनट में उदगार होता है.
Jvalamukhi ke Prakar: ज्वालामुखी कितने प्रकार का होता है?
मुख्यत: ज्वालामुखी तीन प्रकार की होती है, सक्रिय ज्वालामुखी, प्रसुप्त ज्वालामुखी, मृत या शांत ज्वालामुखी.
सक्रिय ज्वालामुखी
सक्रिय ज्वालामुखी में अक्सर उदगार होता है. इसमें सदैव लावा, राख, धुआं, पत्थर के टुकडें, धुल, जलवाष्प एवं गैसें निरंतर निकलती रहती है. वर्त्तमान समय में विश्व में इस ज्वालामुखी की संख्या पंद्रह सौ है. इनमें प्रमुख है, इटली का एटना तथा स्ट्राम्बोली. स्ट्राम्बोली भूमध्य सागर में सिसली के उत्तर में लिपारी द्वीप पर अवस्थित है. इसमें सदा प्रज्वलित गैस निकलती है, जिससे आस-पास का भाग प्रकाशित रहता है. इस कारण इस ज्वालामुखी को भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ कहा जाता है.
कुल सक्रिय ज्वालामुखी का अधिकांश भाग प्रशांत महासागर के तटीय भाग में पाया जाता है. प्रशांत महासागर के परिमेखला को ‘अग्नि वाले’ भी कहा जाता है. सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी अमेरिका एवं एशिया महाद्वीप के तटों पर स्थित है. ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में एक भी ज्वालामुखी नहीं है.
प्रसुप्त ज्वालामुखी
यह ऐसी ज्वालामुखी है जिसमें बीते पिछले कई वर्षों में उदगार नहीं हुआ है. लेकिन भविष्य में इसमें कभी भी उदगार हो सकता है. शांत ज्वालामुखी काफी विनाशकारी होता है, कभी भी घटित हो सकता है. कुछ महत्वपूर्ण प्रसुप्त ज्वालामुखी इस प्रकार है, विसुपियस भूमध्य सागर (इटली), क्राकाटोवा सुंडा जलडमरूमध्य, माउन्ट फ्यूजीयामा (जापान), मेयन (फिलीपिंस) आदि.
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मृत या शांत ज्वालामुखी
ऐसा ज्वालामुखी जिनमें एतिहासिक काल से कोई उदगार नहीं हुआ है और भविष्य में पुन: उदगार होने की भी संभावना नहीं है. मृत ज्वालामुखी इस प्रकार है, कोह सुल्तान एवं देमवंद (ईरान), पोप (म्यांमार), किलिमंजारो (अफ्रीका), चिम्बराजों (दक्षिण अमरीका.
विश्व का सबसे ऊँचा ज्वालामुखी पर्वत कोटापैक्सी है. विश्व की सबसे ऊँचाई पर स्थित सक्रिय ज्वालामुखी ओजस डेल सलाडो एंडीज पर्वतमाला में अर्जेंटीना चिली देश के सीमा पर स्थित है. एंडीज पर्वतमाला पर ही विश्व की सबसे ऊँची शांत ज्वालामुखी एकांकागुआ स्थित है.
ज्वालामुखी के कारण
ज्वालामुखी की उत्त्पति पृथ्वी पर मौजूद टेक्टोनिक्स और सब-टेक्टोनिक्स प्लेट्स के कारण होती है. पृथ्वी पर मुख्य रूप से सात टेक्टोनिक्स प्लेट और छब्बीस सब-टेक्टोनिक्स प्लेट है. इन्हीं प्लेटों के कारण ही पुरे धरती में भूकंप भी होता है. जब पृथ्वी के भूगर्भ में टेक्टोनिक्स प्लेट सरकती है और एक-दुसरे से आपस में टकराती है, तब भारी प्लेट हल्की प्लेट के नीचे दब जाती है.
जब भारी टेक्टोनिक्स प्लेट पृथ्वी के अंदरूनी हिस्से की ओर जाती है, तो वहां मौजूद भूतापीय उर्जा धातु और चट्टानें पिघलकर मेग्मा का रूप ले लेती है. इससे उत्पन्न हुई भीषण गर्मी के कारण पृथ्वी के गर्भ में बहुत अधिक दाब उत्पन्न होता है. जिसके बाद यह मेग्मा हल्की टेक्टोनिक्स प्लेट पर दबाव बनाता है, जो बहुत अधिक गर्म होता है. गर्म मेग्मा लावा के रूप में पृथ्वी की ऊपरी सतह को तोड़कर विस्फोट के साथ बाहर निकलता है, जिससे ज्वालामुखी की उत्त्पति होती है.
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