हिंदी में यथार्थवादी कहानियों की शुरूआत प्रेमचंद से होती है। उनके पहले जो कहानियां लिखी जाती थी, उनमें आदर्शवाद अथवा मनोरंजन होता था। उन कहानियों का जीवन से कोई प्रत्यक्ष संबंध दिखाई नहीं देता है. मुंशी प्रेमचंद बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक दौर में कहानी लेखन के क्षेत्र में कदम रखे. कहानीकार के रूप में प्रेमचंद ने लेखन की शुरूआत भावनात्मक रूप से राष्ट्रीय चेतना से की. तो आज हम आपसे कहानीकार के रूप में प्रेमचंद का परिचय के बारे में बात करेंगे|
कहानीकार प्रेमचंद का परिचय
प्रेमचंद बीसवीं शताब्दी के प्रांरभिक दौर में कहानी लेखन के क्षेत्र में आये। वह दौर राष्ट्रीयता की भावना के उभार का दौर था| नवजागरण आंदोलन का श्रीगणेश दयानंद के नेतृत्व में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद हो चुका था और द्विवेदी युग के साहित्य में उसकी अभिव्यक्ति होने लगी थी, वहीं दौर प्रेमचंद के कथा लेखन के क्षेत्र मे आने का था|
बीसवीं सदी के दूसरे दशक में गाँधी जी अफ्रीका से भारत आये और विदेशी साम्राज्यवाद के दमन के खिलाफ उन्होंने आंदोलन शुरू किया। उस समय प्रेमचंद गाँधी जी से प्रभावित हुए। तब से लेकर लगभग तीस के दशक के शुरूआती काल तक उनपर गाँधी जी का प्रभाव था।
लेकिन जीवन के अंतिम दौर तक आते-आते उनकी राह अलग हो जाती है। इस प्रकार उनकी कहानियों में संवेदना और यथार्थ की दृष्टि से, जो एक विकास क्रम दिखाई देता है। उसे अध्ययन की सुविधा के लिए तीन चरणों में बाँटा जा सकता है।
कहानीकार के रूप में प्रेमचंद का परिचय
कहानीकार के रूप में प्रेमचंद ने लेखन की शुरूआत भावनात्मक रूप से राष्ट्रीय चेतना से की। इस दौर में जो कहानियाँ इन्होंने लिखी, उनमें कुछ उसी तरह का भाव था जो माखनलाल चतुर्वेदी की कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ में मिलती है। यानी देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे देना। प्रेमचंद की प्रारंभिक कहानियो में इसी तरह का भाव दिखाई देता है| जो ‘सोते वतन’, नामक संकलन में संकलित था।
इस संकलन को ब्रिटिश सराकर ने प्रतिबंधित कर दिया था और खोज-खोज कर इसकी प्रतियाँ जला दी गई थी। इसके बाद भी इस संकलन की कुछ कहानियाँ मिलती हैं| जिनमें ‘दुनिया का अनमोल रत्न’ शीर्षक कहानी ध्यान देने योग्य है। इस कहानी में राष्ट्रवाद और देशभक्ति की भावनात्मक अभिव्यक्ति झलकती है।
इस दौर की इनकी कहानियों पर आदर्शवाद का प्रभाव दिखलाई देता है जो शुरूआती दौर के कहानीकारों के आर्दशवाद से बिल्कुल अलग है। यह शास्त्र और पौराणिक धारणाओं में बद्ध आदर्शवाद नहीं हैं बल्कि देश की आजादी और नए भारत के निर्माण का, जो सपना प्रेमचंद देख रहे थे उनकी आकांक्षाओं से जुड़ा राष्ट्रवाद था।
मुंशी प्रेमचंद की कहानी
इनकी प्रसिद्ध कहानी ‘नमक का दारोगा’ इसी चरण की कहानी है। इसका नायक बंशीधर बहुत सामान्य परिवार का युवक होने के बावजूद हजारों रूपये की रिश्वत ठुकरा देता है और इलाके के नामी जमींदार पं० अलोपीदीन की तस्करी के नमक से लदी गाड़ियाँ पकड़ ही नहीं लेता बल्कि उनको गिरफ्तार भी कर लेता है।
लेकिन अदालत में जाने पर अलोपीदीन अपने पैसे और प्रभाव के बल पर बरी हो जाता है| और बंशीधर उल्टे नौकरी से हाथ धो बैठता है। लेकिन इसके बाद कहानी में एक अप्रत्याशित मोड़ आता है। एक दिन वहीं अलोपीदीन उसके घर आते हैं और ज्यादा वेतन देकर उनको अपनी जायदाद का मैनेजर बना देते हैं।
प्रेमचंद की राष्ट्रीय चिंता का सबसे उत्कृष्ट प्रमाण इनकी कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ है। मीर और मिर्जा अपने शतरंज के बादशाह के लिए आपस में लड़कर मर जाते हैं| लेकिन उनके नवाब को अंग्रेज गिरफ्तार करके उनके सामने से ले जाते हैं और उन्हें जरा भी अफसोस नहीं होता। प्रेमचंद इस कहानी के माध्यम से बताते हैं कि लोगों में राष्ट्र की भावना की किस प्रकार कमी है। उनके लेखन के पहले चरण में खास तौर से परिवार के टूटने को लेकर बहुत चिंता दिखाई पड़ती है।
‘बड़े घर की बेटी’, ‘ईदगाह‘, ‘अलग्योझा’ आदि कहानियों को उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है। ‘बड़े घर की बेटी’ की कहानी में बहू भाइयों के बीच झगड़े का कारण बनती है| जब छोटा भाई घर छोड़कर जाने लगता है तब वही बहू उसका हाथ पकड़कर रोकती है।
‘ईदगाह’ शीर्षक कहानी में छोटा बच्चा हामिद मेले में जाता है| थोड़े से पैसे हैं पर वह खाने-पीने, घूमने में खर्च न करके, उन पैसों से अपनी दादी के लिए चिमटा खरीद कर लाता है क्योंकि रोटियाँ बनाते समय उसके हाथ जल जाते हैं। प्रेमचंद बच्चे हामिद की गहरी संवेदना और संबंध की भावपरकता का बहुत ही सूक्ष्म और हृदयग्राही वर्णन किया है।
कहानीकार के रूप में मुंशी प्रेमचंद का परिचय
1930 के आसपास प्रेमचंद की कहानी की विकास यात्रा का दूसरा चरण शुरू होता है| जब वे वर्गीय चेतना से संपन्न होने लगते हैं। इस दौर की इनकी प्रमुख कहानियां ‘सवा सेर गेहूँ’, ‘कफन’, और ‘पूस की रात’ है। ‘सवा सेर गेहूँ’ कहानी महाजनों और सामंतों द्वारा गरीब और पीढ़ी दर पीढ़ी मजदूरी करने वाले लोगों की पीड़ा का चित्रण किया है।
‘कफन’ कहानी भूख, गरीबी और सामाजिक विषमता के कारण अमानवीकरण की प्रवृत्ति का चित्र प्रस्तुत करती है। घीसू और माधव पिता-पुत्र है। भूख और गरीबी ने इनके भीतर से श्रम के प्रति आस्था खत्म कर दी है। यही नहीं, मानवीय भावनाएं भी इनकी मर चुकी है। माधव की पत्नी बुधिया प्रसव पीड़ा में मर जाती है।
गाँव के लोग चंदा करके उन्हें कफन खरीदने के लिए पैसे देते हैं मगर इन पैसों से वे पूड़ियाँ, कलेजी खाते हैं और शराब पीते हैं। असल में प्रेमचंद इस कहानी में यह दिखाना चाहते हैं कि निरंतर भूख से लड़ते आदमी किस प्रकार सामाजिक, धार्मिक पाखण्डों से किस प्रकार अनास्थावान बन जाते हैं।
इसी प्रकार श्रम के प्रति अनास्था की कहानी ‘पूस की रात’ है। हल्कू नामक छोटा किसान बड़ी मेहनत से फसल लगाता है लेकिन उपज होने पर महाजन का कर्ज चुकाने में फसल का बड़ा हिस्सा चला जाता है और एक दो महीने का अनाज ही घर आ पाता है। फिर बाकी के महीने के लिए महाजन से कर्ज लेना पड़ता है। जाड़े की हड्डियों को कंपा देने वाली ठण्ड में वह खेतों की रखवाली करता है।
तभी नीलगायों का झुण्ड आकर फसल खाने लगता है और वह उन्हें भगाने नहीं जाता है और सोचता है कि चलो अच्छा हुआ, अब जाड़े-पाले में सोना नहीं पड़ेगा। खेती पर निर्भर किसान जब इस तरह की बात सोचता है| अपने सामने फसल बर्बाद हो जाने देता है और खुश होता है, तो इससे पता चलता है कि हमारे देश के किसान उस समय किस तरह शोषण और अत्याचार झेल रहे थे।
उपर्युक्त कहानियों के अध्ययन से पता चलता है कि मुंशी प्रेमचंद देश के निम्न वर्ग के लोगों की अमानवीय स्थिति को कितनी बारीकी से देख सकते थे| और अपनी कहानियों में लोगों की अमानवीय स्थिति का कितना मार्मिक चित्रण कर सकते थे। मानवीय भावनाओं की पूरी गहराई में जाकर वे चित्रण करते थे।
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