मोहन राकेश कौन हैं? उपन्यासकार मोहन राकेश का साहित्यिक परिचय (जीवनी)

Mohan Rakesh Biography in Hindi: मोहन राकेश हिंदी साहित्य के उन चुनिंदा साहित्यकारों में से हैं जिन्हें ‘नयी कहानी आंदोलन‘ का नायक माना जाता है, और साहित्य जगत में अधिकांश लोग इन्हें उस दौर का ‘महानायक‘ कहते हैं।

मोहन राकेश ने ‘आषाढ़ का एक दिन‘ के रूप में हिंदी का पहला आधुनिक नाटक भी लिखा। कहानीकार-उपन्यासकार प्रकाश मनु भी ऐसे ही लोगों में शामिल हैं, जो नयी कहानी के दौर में मोहन राकेश को सर्वोपरि मानते हैं। आज हम मोहन राकेश का जीवन परिचय के साथ ही इनका साहित्यिक परिचय, रचना, कृतियाँ, भाषा-शैली, उपन्यास और नाटकों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

मोहन राकेश का जीवन परिचय (जीवनी)

हिंदी के महान उपन्यासकार मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी, 1925 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था। उनके पिता पेशे से वकील थे और साथ ही साहित्य और संगीत के प्रेमी भी थे। पिता की साहित्यिक रुचि का प्रभाव मोहन राकेश पर भी पड़ा। मोहन राकेश ने पहले लाहौर के ‘ऑरीएंटल कॉलेज’ से ‘शास्त्री’ की परीक्षा पास की।

किशोरावस्था में सिर से पिता का साया उठने के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पढ़ाई जारी रखी। इसके बाद उन्होंने ‘पंजाब विश्वविद्यालय‘ से हिंदी और अंग्रेजी में एम. ए. किया।

एक शिक्षक के रूप में पेशेवर जिंदगी की शुरुआत करने के साथ ही उनका रुझान लघु कहानियों की ओर हुआ। बाद में उन्होंने कई नाटक और उपन्यास लिखे। बाद में अनेक वर्षों तक दिल्ली, जालंधर, शिमला और मुंबई में अध्यापन कार्य करते रहे।

मोहन राकेश का साहित्यिक परिचय

अपनी साहित्यिक अभिरुचि के कारण मोहन राकेश का अध्यापन कार्य में मन नहीं लगा और एक वर्ष तक उन्होंने ‘सारिका’ पत्रिका का सम्पादन किया। इस कार्य को भी अपने लेखन में बाधा समझकर इससे किनारे कर लिया और जीवन के अंत तक स्वतंत्र लेखन ही इनके जीविकोपार्जन का साधन रहा।

मोहन राकेश हिंदी के बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न नाट्य लेखक और उपन्यासकार थे। समाज की संवेदनशील अनुभूतियों को चुनकर उनका सार्थक सम्बंध खोज निकलना उनकी कहानियों की विषय-वस्तु थी।

हिंदी नाटकों में भारतेंदु हरिश्चंद्र और जयशंकर प्रसाद के बाद का दौर मोहन राकेश का दौर है, जिसमें हिंदी नाटक दुबारा रंगमंच से जुड़े। हिंदी नाट्य साहित्य में भारतेंदु हरिश्चंद्र और जयशंकर प्रसाद के बाद यदि कोई लीक से हटकर नाम उभरता है तो वह मोहन राकेश का है।

बीच में और भी कई नाम आते हैं, जिन्होंने आधुनिक हिंदी नाटक की विकास-यात्रा में महत्वपूर्ण पड़ाव तय किए, किंतु मोहन राकेश का लेखन एक अलग ही स्थान पर नज़र आता है। इसलिए ही नहीं कि उन्होंने अच्छे नाटक लिखे, बल्कि इसलिए भी कि उन्होंने हिंदी नाटक को अंधेरे बंद कमरों से बाहर निकाला और एक नए दौर के साथ जोड़कर दिखाया।

मोहन राकेश की रचना/कृतियाँ 

मोहन राकेश की रचनाएँ पाठकों और लेखकों के दिलों को छूती हैं। एक बाद जो उनकी रचना को पढ़ता है तो वह पूरी तरह से राकेश के शब्दों में डूब जाता है। राकेश के उपन्यास ‘अंधेरे बंद कमरे‘, ‘न आने वाला कल‘, ‘अंतराल‘ और ‘बाकमला खुदा‘ है।

इसके अलावा ‘आधे अधूरे‘, ‘आषाढ़ का एक दिन‘ और ‘लहरों के राजहंस‘ उनके कुछ मशहूर नाटक हैं। ‘लहरों के राजहंस‘ उनका सबसे विख्यात नाटक रहा। मोहन राकेश ने नाटक, उपन्यास, कहानी, यात्रा वृत्तांत, निबंध आदि विधाओं में विपुल साहित्य की रचना की।

मोहन राकेश पहले कहानी विधा के ज़रिए हिंदी में आए। उनकी ‘मिसपाल‘, ‘आद्रा‘, ‘ग्लासटैंक‘, ‘जानवर‘ और ‘मलबे का मालिक‘ आदि कहानियों ने हिन्दी कहानी का परिदृश्य ही बदल दिया। वे ‘नयी कहानी आंदोलन’ के शीर्ष कथाकार के रूप में चर्चित हुए।

मोहन राकेश हिंदी के बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न नाट्य लेखक और उपन्यासकार हैं।

उनकी कहानियों में एक निरंतर विकास मिलता है, जिससे वे आधुनिक मनुष्य की नियति के निकट से निकटतर आते गए हैं। उनकु खूबी यह थी कि वे कथा-शिल्प के उस्ताद थे और उनकी भाषा में ग़ज़ब का सधाव ही नहीं, एक शास्त्रीय अनुशासन भी है।

कहानी से लेकर उपन्यास तक में उनकी कथा-भूमि शहरी मध्य वर्ग है। कुछ कहानियों में भारत-विभाजन की पीड़ा बाहर सशक्त रूप में अभिव्यक्ति हुई है। कहानी के बाद राकेश को सफलता नाट्य-लेखन के क्षेत्र में मिली है।

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मोहन राकेश का भाषा-शैली 

मोहन राकेश की भाषा परिष्कृत, परिमार्जित, संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है। इनकी भाषा विषय, पात्र और देशकाल के अनुसार बदलती रहती है। एक ओर इनकी भाषा में संस्कृत की तत्सम शब्दावली दिखाई देती है तो दूसरी ओर सरल एवं काव्यात्मक भाषा भी मिलती है।

बोलचाल के सरल शब्दों और स्थान-स्थान पर उर्दू, अंग्रेजी आदि के प्रचलित शब्दों के प्रयोग से इनकी भाषा में आधुनिकता का गुण आ गया है। मोहन राकेश जी की भाषा यद्यपि मुख्य रूप से संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त है, तथापि उनमें अंग्रेजी, उर्दू एवं क्षेत्रीय भाषा के प्रयोग भी दृष्टिगोचर होते हैं। इस कारण इनकी भाषा वातावरण, प्रकृति एवं पात्रों का सजीव चित्र प्रस्तुत करने में समर्थ है।

कहानियों, उपन्यासों और यात्रा-संस्मरणों में मोहन राकेश जी ने वर्णात्मक शैली में किया है। सरल भाषा के द्वारा इन्होंने यथार्थ चित्र उपस्थित करने का कार्य भी इसी शैली में किया है। इन्होंने अपनी रचनाओं में भावात्मक शैली का सर्वाधिक प्रयोग किया है। भावात्मक एवं काव्यात्मक गुणों पर आधारित इनकी यह शैली बड़ी रोचक एवं लोकप्रिय रही है।

मोहन राकेश मूलतः नाटककार हैं; अतः इनके निबंधों में संवाद शैली की बहुलता है। इससे नाटकीयता तो आती ही है, साथ ही रोचकता भी बढ़ती है और पात्र का चरित्र भी निखार उठता है।

इन्होंने यात्रा निबंधों में प्रायः चित्रात्मक शैली का प्रयोग किया है। इससे प्राकृतिक चित्र सजीव हो उठे है। इन्होंने अपनी रचनाओं में अपनी बिम्ब-विधायिनी शक्ति का परिचय दिया है। राकेश जी ने अपने यात्रा वृत्तांतों में विवरणात्मक शैली का भी अद्भुत प्रयोग किया है।

मोहन राकेश जी की भाषा-शैली किसी भी पाठक को सहज ही आकर्षित कर लेने में समर्थ है। विचारों एवं भावों के अनुकूल प्रयुक्त की गई उनकी भाषा-शैली अत्यंत प्रभावपूर्ण है।

Mohan Rakesh Biography in Hindi

आधुनिक साहित्यकारों में मोहन राकेश अद्वितीय हैं। इन्होंने अपनी प्रखर बुद्धि से हिंदी-साहित्य जगत की जो श्रीवृद्धि की है, उसके लिए हिंदी-साहित्य जगत सदैव इनका आभारी रहेगा। मुझे आशा है कि आपको यह लेख ‘मोहन राकेश का जीवन-परिचय‘ अच्छा लगा होगा। अगर आपके मन में किसी भी तरह का कोई सवाल हो, तो नीचे comment करके बता सकते हैं। धन्यवाद!

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