स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय: जन्म, शिक्षा, कार्य, सामाजिक विचार और योगदान

स्वामी विवेकानंद वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे. इनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त है. स्वामी विकेकानंद रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे. इन्होनें रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी, जो आज भी कायम है. आज हम इस लेख में Swami Vivekanand ka Jivan Parichay और स्वामी विवेकानंद के विचार बारे में बात करेंगे.

विवेकानंद को एक देशभक्त संत के रूप में माना जाता है. इसलिए इनके जन्मदिन को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है. ये आधुनिक भारत के ऐसे विचारक और प्रचारक थे, जिन्होंने स्वंय राजनीति में भाग नहीं लिया. परंन्तु अपनी प्रखर प्रतिभा से देश में स्वतंत्रता प्रेम की ज्योति जगा दी.

स्वामी विवेकानंद का जन्म कब हुआ? 

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता के प्रतिष्ठित कायस्थ परिवार में हुआ था. इनका बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था. विवेकानंद नाम उन्होंने संन्यास ग्रहण करने के उपरांत शिकागो में धर्म सम्मलेन में भाग लेने के लिए बम्बई से प्रस्थान करते समय ग्रहण किया.

इनके पिताजी का नाम विश्वनाथ दत्त और माताजी का नाम भुनेश्वरी देवी था. स्वामी विवेकानंद के पिता पेशे से वकील थे और माँ गृहिणी थी. पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत करते थे. और माता धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी, उनका अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा अर्चना में व्यतीत होता था. विवेकानंद पर माताजी के सद्गुणों का विशेष प्रभाव पड़ा.

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय 

बचपन से ही नरेन्द्रनाथ दत्त की बुद्धि तीव्र थी. बुद्धिमान के साथ ही नटखट भी थे, अपने साथियों के साथ खूब शरारत करते और मौका मिलने पर अध्यापकों के साथ भी शरारत करते थे. माँ धार्मिक प्रवृति की थी, इस वजह से उनके घर में प्रतिदिन पूजा-पाठ और कथा होता था. नियमित रूप से कथा और भजन कीर्तन होता था. परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से नरेन्द्र में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार थे.

माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण बचपन से ही परमात्मा को जानने और परमात्मा को पाने की लालसा प्रबल थी. इस वजह से वे पहले ‘ब्रह्म समाज’ में गये, किन्तु वहाँ उनका मन संतुष्ट नहीं हुआ. वे वेदान्त और योग को पश्चिम संस्कृति में प्रचलित करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान देना चाहते थे.

स्वामी विवेकानंद की शिक्षा 

1871 में आठ साल की उम्र में नरेन्द्रनाथ ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में दाखिला लिया. और मन लगाकर पढाई करने लगा. वह एकमात्र छात्र थे, जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किये थे.

वे दर्शन, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य विषयों में रूचि रखते थे. वेद, उपनिषद, भगवद् गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त अन्य हिन्दू शास्त्रों में रूचि रखते थे.

नरेंद्र को भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित किया गया था. जबकि वे नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम व खेलों में भाग लिया करते थे.    इन्होनें पश्चिमी तर्क, पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्ययन जनरल असेम्बली इंस्टिटूशन में किया. 1881 में इन्होंने ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की. उसके बाद 1884 में कला में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. पश्चिमी दार्शनिकों के अध्ययन के साथ ही उन्होंने संस्कृत ग्रंथों और बंगाली साहित्य का भी अध्ययन किया.

स्वामी विवेकानंद के बारे में 

उनके पितामाह ने पच्चीस वर्ष की अल्प आयु में ही समस्त धन-दौलत का त्याग कर संन्यास ग्रहण कर लिया था. किन्तु इन सभी पारिवारिक प्रभावों से भी बढाकर स्वामी विवेकानंद को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला कारण, उनका श्री रामकृष्ण परमहंस का शिष्यत्व था. बंगाल के इस महँ संत का शिष्यत्व प्राप्त कर नरेन्द्रनाथ दत्त से ‘स्वामी विवेकानंद’ बन गए.

नवम्बर 1881 में स्वामी रामकृष्ण परमहंस से उनकी भेंट हुई. उनकी भेंट ने उनके जीवन में एक क्रांतिकारी मोड़ लायी. कुछ दिनों तक मानसिक प्रतिरोध की स्थिति में रहने के बाद उन्होंने अपने आप को गुरु रामकृष्ण परमहंस के आगे पूरी तरह समर्पण कर दिया. रामकृष्ण परमहंस के मृत्यु के समय विवेकानंद ही उनके सर्वप्रमुख शिष्य थे.

गुरु परमहंस की मृत्यु के समय विवेकानंद लगभग 24 वर्ष के थे. चौबीस वर्ष की अल्प आयु में ही उन्होंने यह प्रण लिया कि वह अपना सारा जीवन गुरु के सन्देश के प्रचार में लगा देंगे. उसके बाद विवेकान्द ने अपना गृहस्थाश्रम त्याग कर दिया और परिव्राजक बनकर हिमालय के जंगलों में साधना करने लगे. छः साल तक वे कड़ी संयम में रहे. परिव्राजक के रूप में उन्होंने भारत का भ्रमण किया, इससे उन्हें साधारण जनता के कष्टों को समझने का अवसर मिला.

विवेकानन्द ने रामकृष्ण परमहंस के धार्मिक सन्देश को लोकप्रिय बनाया और उसे ऐसे रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की जो सम-सामायिक भारतीय समाज की आवश्यकताओं के अनुकूल हो. स्वामी विवेकानंद ने सबसे अधिक सामाजिक कर्म पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि ज्ञान के साथ जिस वास्तविक संसार में हम रहते हैं, उसमें कर्म न किया जाए, तो ज्ञान निरर्थक है

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु कब और कैसे हुई?

4 जुलाई, 1902 को स्वामी विवेकानंद की मृत्यु बेलूर मठ, बंगाल में हुई।उन्होंने मृत्यु के पहले शाम के समय बेलूर मठ में 3 घंटे तक योग किया, उसके बाद शाम के 7 बजे अपने कक्ष में जाते हुए, उन्होंने किसी से भी उन्हें व्यवधान ना पहुंचाने की बात कही. उसके बाद उनकी मृत्यु की खबर रात के 9 बजकर 10 मिनट पर मठ में फैल गई. मठ के लोगों को उनकी मृत्यु का कारण भी नहीं पता चला. इस तरह से विवेकानंद की मृत्यु मात्र 39 वर्ष की अल्प आयु में ही हो गयी.
मेडिकल जाँच के रिपोर्ट के अनुसार स्वामी विवेकानंद की मृत्यु दिमाग की नसें फटने के कारण हुई थी. वहीँ मठकर्मियों का मानना है कि स्वामी जी ने महासमाधि ली थी.

स्वामी विवेकानंद के विचार 

  • उठो जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए.
  • सत्य को हजार तरीके से बताया जा सकता है, फिर भी सत्य हर बार ही होगा.
  • खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है.
  • तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता है और आध्यात्मिक नहीं बना सकता है.
  • बाहरी स्वभाव केवल आतंरिक स्वभाव का बड़ा रूप है.
  • शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है, विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु, प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है.
  • दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो.

स्वामी विवेकानंद की उपलब्धियां

विवेकानंद धर्मोपदेशक तथा सन्यासी थे, किन्तु उनके ह्रदय में जनता के लिए प्रगाढ़ प्रेम था. भारत में अनेक महापुरुषों पर विवेकानंद के व्यक्तित्व और विचारों का प्रभाव पड़ा है. सुभाषचन्द्र बोस विवेकानंद को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे. स्वामी विवेकानंद की कुछ उपलब्धियां इस प्रकार हैं,

  • उन्होंने हिन्दू पुनरुत्थान की अधिक पूर्ण एवं आत्मचेतनापूर्ण अवस्था प्रदान की. इस दिशा में उनका योगदान स्वामी दयानंद की तुलना में भी अधिक है. भारत द्वारा विदेशों में भेजे गए आध्यात्मिक दूतों में से सबसे अधिक विख्यात हुए.
  • स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्‍ण मठ, रामकृष्‍ण मिशन और वेदांत सोसाइटी की नींव रखी थी.
  • 1893 में अमेरिका के शिकागो में हुए विश्‍व धार्मिक सम्‍मेलन में उन्‍होंने भारत और हिंदुत्‍व का प्रतिनिधित्‍व किया था.
  • हिंदुत्‍व को लेकर उन्‍होंने जो व्‍याख्‍या दुनिया के सामने रखी, उसकी वजह से इस धर्म को लेकर काफी आकर्षण बढ़ा.
  • स्वामी विवेकानंद संस्कृत तथा वेदांत की शिक्षा के साथ-साथ स्पेंसर, मिल, कान्त, हीगल के दशानिक विचारों से भी पूर्णतया अवगत थे.
  • विवेकानंद ने प्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक स्वतंत्रता के सिद्धांत का प्रतिपादन नहीं किया, लेकिन उनकी शिक्षाओं और उनकी व्यक्तित्व का प्रभाव राष्ट्रवादी आन्दोलन, विशेकर बंगाल के राष्ट्रवादी आन्दोलन पर पड़ा.

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के कायस्थ बंगाली परिवार में हुआ था. इनका बचपन का नाम ‘नरेन्द्रनाथ दत्त’ था. लोग इन्हें प्यार से नरेन्द्र या नरेन भी कहते थे. नरेन्द्रनाथ अपने ज्ञान और कार्यों के बल पर विवेकानंद बने. उन्होंने अपने कार्यों के द्वारा भारत का नाम पुरे विश्व में रोशन किया.

इनके पिताजी का नाम विश्वनाथ दत्त और माताजी का नाम भुनेश्वरी देवी था. पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत करते थे, पेशे से वह एक वकील थे. माता गृहणी थी, वह धार्मिक प्रवृति की महिला थी. नरेन्द्र अपने माता-पिता के नौवें  बच्चा थे. पिता के तर्कसंगत मन एवं  माता के धार्मिक स्वभाव के कारण इनका व्यक्तित्व का विकास हुआ था.

वह बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक थे एवं हिन्दू धर्म के भगवान शिव, हनुमान आदि का पूजा किया करते थे. वह अपने समय के घूमने वाले सन्यासियों और भिक्षुओं से प्रभावित हुए थे. विवेकानंद बचपन में बहुत शरारती थे, वे अपने माता-पिता के नियंत्रण में नहीं रहते थे. उनकी माता उन्हें भूत कहती थी. उनकी माता का एक कथन के अनुसार, “मैंने भगवान शिव से एक पुत्र के लिए प्रार्थना की थी और उन्होंने मुझे अपने भूतों में से एक भेज दिया.”

आठ वर्ष की उम्र में 1871  में उन्होंने पढाई के लिए चंद्र विद्यासागर महानगर संस्था में दाखिला लिया. वहां आठ साल तक पढाई करने के बाद 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिए. उस समय विवेकानंद सामाजिक विज्ञान, दर्शन, इतिहास, धर्म, कला और साहित्य जैसे विषयों में पढ़ने में बहुत अच्छे थे. उन्होंने पश्चिमी तर्क, यूरोपीय इतिहास, पश्चिमी दर्शन, संस्कृत और बंगाली साहित्य का भी गहन अध्ययन किया.

Swami Vivekanand ka Jivan Parichay 

धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति होने के कारण वह हिन्दू धर्म के शास्त्रों जैसे वेद, रामायण, भगवदगीता, महाभारत, उपनिषद, पुराण आदि में बहुत अधिक रुचि रखते थे. भारतीय शास्त्रीय संगीत, खेल, शारीरिक व्यायाम और अन्य क्रियाओं में भी विवेकानंद की रुचि थी. वह आध्यत्मिक और प्रतिभाशाली व्यक्ति थे.

उनकी राष्ट्रवादी विचारों से कई भारतीय नेता उनसे प्रभावित हुए थे. कई भारतीय महापुरुषों पर विवेकानंद के व्यक्तित्व और विचारों का प्रभाव पड़ा है. सुभाषचन्द्र बोस विवेकानंद को अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे. भारत की आध्यात्मिक जागृति के लिए श्री अरबिंद ने उनकी प्रशंसा की थी.

हिन्दू धर्म को बढ़ावा देने वाले महान हिंदू धर्म सुधारक महात्मा गाँधी ने भी विवेकानंद की प्रशंसा की. उनके विचारों ने लोगों को हिंदु धर्म का सही अर्थ समझाया और वेदांतों और हिंदु अध्यात्म के प्रति पाश्चात्य जगत के नजरिये को भी बदला.

उनके इन्हीं कार्यों के लिए चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने हिन्दू धर्म तथा भारत को बचाया था. स्वामी विवेकानंद को सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा “आधुनिक भारत के निर्माता” भी कहा गया था.

4 जुलाई, 1902 को स्वामी विवेकानंद की मृत्यु बेलूर मठ, बंगाल में हुई. मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार इनकी मृत्यु दिमाग की नसें फटने के कारण हुई.

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