चाणक्य कौन थे? Chanakya Niti (नीतिशास्त्र) चाणक्य नीति के अनमोल विचार

हमारे देश भारत में कई महान व्यक्तित्व रहे हैं, और उनमें से एक हैं चाणक्य। इनकी बुद्धि और कुटीलता के क़िस्से आपने कहीं-न-कहीं जरुर सुने होंगे। इनका Chanakya Niti काफ़ी लोकप्रिय है, और वर्तमान समय में भी कई लोग इनके नीतियों को अपने जीवन में अपनाते हैं। आज हम चाणक्य नीति के अनमोल विचार के साथ ही इनके बारे में विस्तार से जानेंगे कि Chanakya Kaun the? और चाणक्य नीति क्या है?

चाणक्य कौन थे?

चाणक्य भारत के एक महान राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री थे। चाणक्य को विष्णुगुप्त, वात्स्यायन, मल्लनाग, पक्षिलस्वामी, अंगल, द्रमिल और कौटिल्य भी कहा जाता है। प्राचीन भारतीय इतिहास में आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य अपने गुणों से मंडित, राजनीति विशारद, आचार-विचार के मर्मज्ञ, कूटनीति में सिद्धहस्त एवं प्रवीण रूप में ख्यातनाम हैं।

उन्होंने नंद वंश को समूल नष्ट कर उसके स्थान पर अपने सुयोग्य एवं मेधावी वीर शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य को शासक पद पर सिंहासनरूढ़ करके अपनी जिस विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया उससे समस्त विश्व परिचित है। मौर्य वंश की स्थापना आचार्य चाणक्य की एक बहुत ही बड़ी उपलब्धि है।

यह वह समय था जब मौर्य काल के प्रथम सिंहासनरूढ़ चंद्रगुप्त मौर्य शासक थे। उस समय चाणक्य राजनीति गुरु थे। आज भी कुशल राजनीति विशारद को चाणक्य की संज्ञा दी जाती है। चाणक्य ने संगठित, सम्पूर्ण आर्यावर्त का स्वप्न देखा था, तदनुरूप उन्होंने सफल प्रयास किया था।

Chanakya Biography in Hindi

कहा जाता है कि चाणक्य का जन्म तक्षशिला या दक्षिण भारत में 350 ई. पू. के आसपास हुआ था। उनके पिता चणक मुनि एक महान शिक्षक थे। चाणक्य अनोखे, अद्भुत, निराले, ऐसे कुशल राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने मगध देश के नंद राजाओं की राजसत्ता का सर्वनाश करके ‘मौर्य राज्य’ की स्थापना की थी।

चाणक्य का जन्म का नाम विष्णुगुप्त था और चणक नामक आचार्य के पुत्र होने के कारण वह ‘चाणक्य’ कहलाए। कुछ लोगों का मत है कि अत्यंत कुशाग्र बुद्धि होने के कारण उनका नाम ‘चाणक्य’ पड़ा। कुटिल राजनीति विशारद होने के कारण इन्हें ‘कौटिल्य’ नाम से भी संबोधित किया गया। पर संभवतः यह इनके गोत्र का नाम रहा हो, किंतु अनेक विद्वानों के मतानुसार कुटिल नीति के निर्माता होने के कारण इनका नाम कौटिल्य पड़ा। 

चाणक्य के जन्म-स्थान के बारे में इतिहास मौन है। परंतु उनकी शिक्षा-दीक्षा तक्षशिला विश्वविद्यालय में हुई थी। वह स्वभाव से अभिमानी, चरित्रिक एवं विषय-दोषों से रहित स्वरूप से कुरूप, बुद्धि से तीक्ष्ण, इरादे पक्के, प्रतिभा धनी, युगद्रष्टा एवं युगस्रष्टा थे। जन्म से पाटलिपुत्र के रहनेवाले चाणक्य के बुद्धि-बल का पूरा विकास तक्षशिला के आचार्यों के संरक्षण में हुआ।

चाणक्य की विशेषताएँ

अपने प्रौढ़ ज्ञान के प्रभाव से वहाँ के विद्वानों को प्रसन्न कर चाणक्य राजनीति का प्राध्यापक बना। देश की दुर्व्यवस्था को देखकर उनका हृदय द्रवित हो उठा। इसके लिए उन्होंने विस्तृत कार्यक्रम बनाकर देश को एक सूत्र में बांधने का संकल्प किया और इसमें उनकी सफलता भी मिली। कहा जाता है कि पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं। यह बात चाणक्य पर शत प्रतिशत सही साबित होती है।

जन्म के समय से ही चाणक्य के मुँह में पूरे दाँत थे। यह राज या सम्राट बनने की निशानी थी। लेकिन चूँकि उनका जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था, इसलिए यह बात सच नहीं हो सकती थी। इसलिए उनके दाँत उखाड़ दिए गए और यह भविष्यवाणी की गई कि वे किसी और व्यक्ति को राजा बनवाएँगे और उसके माध्यम से शासन करेंगे।

चाणक्य में जन्मजात नेतृत्वकर्ता के गुण मौजूद थे। वे अपने हमउम्र साथियों से कहीं अधिक बुद्धिमान और तार्किक थे। चाणक्य कटु सत्य को कहने से भी नहीं चूकते थे। इसी कारण पाटलिपुत्र के राजा घनानंद ने उन्हें अपने दरबार से बाहर निकल दिया था। तभी चाणक्य ने प्रतिज्ञा की थी कि वे नंद वंश को जड़ से उखाड़ फेकेंगे। अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए चाणक्य ने बालक चंद्रगुप्त को चुना, क्योंकि उसमें जन्म से ही राजा बनने के सभी गुण मौजूद थे।

चाणक्य नीति के अनमोल विचार 

  • श्रेष्ठ कार्य करते हुए एक पल का भी जीवन सार्थक माना जाता है जबकि आचरण के विरुद्ध किए गए 100 साल का जीवन भी बेकार है।
  • भाग्य उनका साथ देता है जो कठिन परिस्थितयो का सामना करके भी अपने लक्ष्य के प्रति ढृढ रहते हैं।
  • खुद का अपमान करा के जीने से तो अच्छा है मर जाना क्योकि प्राणों को त्यागने से एक ही बार कष्ट होता है पर अपमानित होकर जिंदा रहने से बार-बार कष्ट होता है।
  • भय से उस समय तक डरना चाहिए जब तक कि उससे सामना ना हो। लेकिन यदि भय सामने आ जाए तो निडर होकर उसका सामना करना चाहिए। यही पुरुष की सार्थकता है।
  • अपमान से भरी ज़िन्दगी से तो मृत्यु ही बेहतर है क्योंकि मरने की पीड़ा तो क्षणभर की होती है लेकिन अपमान की पीड़ा तो जीवन भर पल-पल सताती रहती है।
  • जनमानस की सुख-संपन्नता ही राजा की सुख-संपन्नता है। उनका कल्याण ही उसका कल्याण है।
  • राजा को अपने निजी हित या कल्याण के बारे में कभी नहीं सोचना चाहिए, बल्कि अपना सुख अपनी प्रजा के सुख में खोजना चाहिए।
  • राजा का गुप्त कार्य है निरंतर प्रजा के कल्याण के लिए संघर्षरत रहना। राज्य का प्रशासन सुचारु रखना उसका धर्म है। उसका सबसे बड़ा उपहार है- सबसे समान व्यवहार करना।
  • आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था श्रेष्ठ अर्थव्यवस्था है, जो विदेश व्यापार पर निर्भर नहीं होनी चाहिए।
  • समतावादी समाज हो, जहाँ सबके लिए समान अवसर हों।
  • चाणक्य के अनुसार, संसाधनों के विकास के लिए प्रभावी भू-व्यवस्था होनी आवश्यक है।
  • शासक के लिए यह जरुरी है कि वाज ज़मींदारों पर नजर रखे कि वे अधिक भूमि पर क़ब्ज़ा न करें और भूमि का अनधिकृत इस्तेमाल न करें।
  • राज्य को कृषि-विकास पर सतत नजर रखनी चाहिए। सरकारी मशीनरी को बीज बोने से लेकर फसल काटने तक की प्रक्रियाओं के उन्नयन की दिशा में कार्यरत रहना चाहिए।
  • राज्य का कानून सबके लिए समान होना चाहिए।
  • जिस देश में आदर-सत्कार ना हो, आजीविका का कोई साधन ना हो, भाई बंधु या मित्र ना हों। विद्या पाने का कोई साधन ना हो, ऐसे स्थान पर कभी भी नहीं रहना चाहिए। ऐसे स्थान पर रहने वाला व्यक्ति हमेशा दुःख प्राप्त करता है।
  • अपने परिवार की रक्षा के लिए स्वयं का बलिदान कर देना चाहिए, गाँव की रक्षा करने के लिए अपने परिवार का भी बलिदान दे देना चाहिए और देश की रक्षा करने के लिए पूरे गाँव को भी बलिदान करने में संकोच नहीं करना चाहिए।
  • सज्जनों की संगति मिले और अच्छी बातें करने को मिले, यही संसार रूपी वृक्ष के दो ऐसे फल हैं जो जीवन को सार्थक बनाते हैं।
  • मनुष्य कितना ही बलवान, मनमोहक और कितने ही कुलीन परिवार से उत्पन्न क्यों ना हुआ हो, यदि वह विद्याहीन है, तो वह बिल्कुल वैसा ही है जैसे कोई फूल, बिना सुगंध के हो अर्थात विद्याहीन मनुष्य का कोई महत्त्व नहीं है।
  • श्रम और संचय बेहद आवश्यक है क्योंकि एक-एक बूंद संग्रह करके घड़ा भरा जा सकता है। उसी प्रकार व्यक्ति एक-एक बूंद का ज्ञान संग्रह करके विद्वान और संपन्न हो सकता है।

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