समाचार-पत्र के संपादक प्रतिदिन ज्वलंत विषयों पर विचार अपना व्यक्त करते हैं. संपादक द्वारा लिखा गया लेख संपादकीय लेखन होता है. इस लेख में संपादक किसी सामाजिक, राजनीतिक ज्वलंत समस्या को समाचार-पत्र में लिखता है. संपादकीय लेख में संपादक समाचार पत्रों की नीति, सोच और विचारधारा को प्रस्तुत करता है. तो, आज हम आपसे इसी के बारे में बात करेंगे कि Sampadakiya Lekhan Kya Hai? संपादकीय लेखन की विशेषताएँ क्या है?
एक संपादक ज्वलंत समस्या या प्रमुख घटनाओं पर संपादकीय लेखन करता है. संपादकीय लेख में किसी घटना पर प्रतिक्रिया हो सकती है या किसी विषय पर अपने विचार हो सकते हैं. लेख में किसी आंदोलन की प्रेरणा हो सकती है या किसी उलझी हुई समस्या का विश्लेषण हो सकता है.
संपादकीय लेखन का अर्थ
संपादकीय लेखन का शाब्दिक अर्थ समाचार-पत्र के संपादक के अपने विचार से हैं. प्रत्येक समाचार-पत्र में संपादक प्रतिदिन ज्वलंत
विषयों पर अपने विचार व्यक्त करते हैं. संपादक प्रतिदिन किसी ज्वलंत समस्या या प्रमुख सामयिक घटनाक्रम पर संपादकीय लेखन करता है. लेख में समाचार पत्रों की नीति, सोच और विचारधारा को प्रस्तुत करता है. संपादकीय लेखन के लिए संपादक स्वयं जिम्मेदार होता है.
संपादकीय लेखन क्या है?
समाचार पत्र का संपादक प्रतिदिन देश की ज्वलंत समस्याओं, घटनाओं पर संपादकीय लेखन करता है. संपादक द्वारा लिखे गए लेख में व्यक्त विचार किसी सामाजिक, राजनीतिक, सामयिक ज्वलंत समस्या पर समाचार-पत्र की नीति को प्रकट करता है. अत: संपादकीय लेख वह लेख है, जिसमें समाचार-पत्र के संपादक का अपना नजरिया दिखता है. संपादकीय लेख वास्तव में अखबार के संपादक द्वारा लिखा जाना चाहिए. परन्तु अधिकतर लेख उप-संपादक या अन्य ही लिखते हैं. लेकिन उप-संपादक द्वारा लिखे गए लेख को एक बार अवश्य संपादक पढता है और उसमें आवश्यकतानुसार संशोधन भी करता है.
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संपादकीय लेखन की विशेषताएँ
- संपादक द्वारा लिखा गया लेख न अधिक बड़ा और न अधिक छोटा होता है.
- एक आदर्श संपादकीय लेखन 800 से 1000 शब्दों के बीच में होता है.
- लेख का विषय प्राय: ज्वलंत समस्या या तात्कालिक घटनाक्रम से लिया जाता है.
- विशिष्ट समाचार या समसामयिक घटना को भी सम्पादकीय अग्रलेख का आधार बनाया जा सकता है.
- सम्पादकीय लेख संक्षिप्त होते हुए, भी अपने आप में पूर्ण होती है.
- समाचार-पत्र के नीति-निर्धारक तत्त्वों से संपादकीय लेख जुड़ा होता है. समाचार पत्र अपनी नीति के अनुरूप ही टिप्पणी करता है.
- अत: संपादक को पूर्वाग्रह से मुक्त होकर अपनी लेखन तटस्थता व निरपेक्षता से करनी चाहिए.
- विश्वसनीयता, आत्मीयता, रोचकता जैसे गुण संपादकीय लेख में होनी चाहिए.
- गंभीर विषय का संपादन भी सरल, सहज भाषा-शैली में इस प्रकार करना चाहिए कि विषय पाठकों की समझ में आ जाए और वे उस विषय पर अपनी स्पष्ट राय बता सकें.
- आलोचनात्मक शैली में लिखा गया संपादकीय लेख पाठकों को अधिक रुचिकर लगता है.
- जिसमें विषय के गुण-दोष, पक्ष-विपक्ष दोनों के बारे में लिखा गया हो.
- प्रत्येक संपादक की अपनी शैली होती है, अपनी शैली में संपादक लेख लिखता है.
- संपादकीय लेखन निर्वेयक्तिक होकर लिखे जाने चाहिए, जो व्यक्तिगत आपेक्ष से मुक्त हो तथा निश्चित विचार एवं दृष्टिकोण का प्रतिपादन करें.
- समाचार लेखन की भाषा से संपादकीय लेखन की भाषा भिन्न होती है.
- उसकी अपनी शैली है, किन्तु भाषा कठिन न होकर पाठक की समझ में आने वाली सामान्य भाषा ही उसमें प्रयुक्त होती है.
- एक उत्तम संपादकीय लेख पाठकों के विचारों में उत्तेजना उत्पन्न करता है, उन्हें विषय पर सोचने एवं अपनी विचार व्यक्त करने में सहायता करता है.
- संपादकीय लेख में सबसे महत्वपूर्ण समाचार या केंद्रीय भाव सबसे पहले लिखा जाता है.
- उसके बाद सम्पूर्ण समाचार का विस्तार किया जाता है और अंत में अपना विचार निष्कर्ष के रूप में दिया जाता है.
खुप महत्व पुर्ण महिती आहे पुढे आम्हा सर्वाना खुप फायदा होईल सर thank you so much.