रंगमंच पर आपने कई नाटक देखे होंगे। अब नाटक भी अलग-अलग तरह के होते हैं, और एकांकी भी एक तरह का नाटक ही है। और आज हम इसी के बारे में विस्तार से बात करेंगे कि एकांकी किसे कहते हैं? एकांकी और नाटक में अंतर क्या होता है, और एकांकी की विशेषताएँ क्या-क्या हैं?
सबसे पहले हम जानते हैं कि नाटक क्या होता है? तो अभिनय के माध्यम से समाज एवं व्यक्ति के चरित्रों का प्रदर्शन ही ‘नाटक’ है। परंपरागत रूप से नाटक के मुख्यतः पाँच अंक होते हैं, जिसमें आरम्भ, विकास, चरम और अंत दिखाया जाता है।
एकांकी किसे कहते हैं?
एकांकी नाटक से छोटी एक अंकवाली होती है। इसे नाम में ही है, एक अंक। एकांकी उस नाटक को कहते हैं, जिसमें सम्पूर्ण कथानक की समाप्ति एक ही अंक में हो जाती है।
नाट्य-साहित्य की परंपरा में एकांकी का अस्तित्व नहीं था; यह बाद में आया है इसलिए इसे एक स्वतंत्र विधा के रूप में माना जाता है। यद्यपि एकांकी नाटक का ही छोटा रूप है तथापि यह उससे अलग भी है। इसमें एक ही मुख्य घटना या जीवन की एक संवेदना को दृश्यबद्ध किया जाता है।
एकांकी और नाटक में अंतर क्या है?
- नाटक में जहाँ जीवन का विस्तार एवं चित्रण की विविधता होती है, वहीं एकांकी में जीवन का एक पहलू ही उभरकर सामने आता है।
- नाटक जहाँ मंथर गति से चरम की ओर बढ़ता है, वहीं एकांकी बड़ी ही तीव्र गति से चरम एवं अंत को बढ़ती है।
सम्प्रति मानव-जीवन की व्यस्तता और गतिमयता के कारण नाटकों का अस्तित्व खोता जा रहा है और उसके स्थान पर एकांकी लोकप्रिय हो रही है। सम्भव है कि भविष्य में एकांकी को ही लोग ‘नाटक’ की संज्ञा देने लगें।
एकांकी लेखकों में रामकुमार वर्मा, जगदीशचंद्र माथुर, उपेन्द्रनाथ अश्क, भारतभूषण अग्रवाल, लक्ष्मीनारायण मिश्र, गिरिजाकुमार माथुर, यशपाल, अमृतलाल नागर आदि उल्लेखनीय हैं।
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