भाषा तो हम सभी जानते हैं कि वह माध्यम है जिससे मनुष्य बोलकर, लिखकर या संकेत कर परस्पर अपना विचार सरलता, स्पष्टता, निश्चितता तथा पूर्णता के साथ प्रकट करता है। लेकिन क्या आपको पता है कि Bhasha Parivar Kise Kahte Hai? आज हम भाषा परिवार का अर्थ, वर्गीकरण, संख्या, विश्व भाषाएँ और भारतीय आर्य भाषा-परिवार के बारे में ही जानेंगे।
भाषा परिवार किसे कहते हैं?
किसी मूल भाषा से विकसित अन्य सभी भाषाओं के समूह को एक भाषा-परिवार कहते हैं। जिस प्रकार मनुष्यों का परिवार होता है, उसी प्रकार भाषाओं का भी परिवार होता है। किसी एक भाषा-परिवार की भाषाओं का जन्म किसी एक मूल भाषा से हुआ माना जाता है।
समय के साथ-साथ एक भाषा बोलने वाली कई जातियाँ विश्व के अलग-अलग क्षेत्रों या देशों में जाकर बसती चली गईं, जिससे उनकी भाषाओं में कहीं कम, कहीं ज़्यादा परिवर्तन आता चला गया और इतिहास के क्रम में कई नई भाषाएँ बनती चली गईं।
ऐसे भाषाएँ जो एक ही वंश या मूल भाषा से निकलकर विकसित हुई या फैली हैं, एक भाषा-परिवार का निर्माण करती हैं। फिर उनके भी उपपरिवार बनते चले जाते हैं।
भाषा परिवार एवं विश्व-भाषाएँ
हिंदी तथा उत्तर की अधिकांश भाषाएँ जैसे बांग्ला, गुजराती, पंजाबी, मराठी, आदि आर्य परिवार की भाषाएँ मानी जाती हैं जिनका मूल स्रोत संस्कृत है। संस्कृत स्वयं जिस मूल भाषा से विकसित हुई उसी से ग्रीक, ईरानी आदि भाषाएँ भी निकली हैं, जिनकी आज अंग्रेजी, जर्मन आदि अनेक वंशज हैं।
इस समस्त परिवार को भारत-यूरोपीय भाषा परिवार कहा जाता है। भारत-यूरोपीय भाषा परिवार की वे भाषाएँ जो भारत में बोली जाती हैं, भारतीय आर्य भाषाएँ कहलाती हैं। भारत में एक दूसरा भाषा परिवार द्रविड़ कुल है, जिसकी मुख्य भाषाएँ हैं: तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़। विश्व में इन भारत-यूरोपीय और द्रविड़ भाषा परिवार के अतिरिक्त अनेक भाषा परिवार है।
भारतीय आर्य भाषा-परिवार
भारत-यूरोपीय भाषा परिवार की एक महत्वपूर्ण शाखा भारतीय आर्यभाषा है, जिसका प्राचीनतम रूप हमें वैदिक संस्कृत में सुरक्षित मिलता है। वैदिक संस्कृत से आधुनिक युग की भारतीय भाषाओं तक आने में इसे इन चार चरणों से होकर गुजरना पड़ा।
- वैदिक संस्कृत
- लौकिक संस्कृत
- पालि और प्राकृत
- अपभ्रंश
हिंदी तथा अन्य आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ
आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का विकास अपभ्रंश से हुआ है जिसका प्रचलन एवं प्रयोग 500 से 1000 ई. के बीच हुआ करता था। देश में उस समय अपभ्रंश के कई रूप प्रचलित थे। जैसे शौरसेनी, मागधी, महाराष्ट्री। इन्हीं से विभिन्न आधुनिक भारतीय भाषाओं की धारा निकलती है। अपभ्रंश स्वयं पालि-प्राकृत से विकसित है और पालि-प्राकृत वैदिक संस्कृत से।
आर्य परिवार की आधुनिक भारतीय भाषाओं में प्रमुख हैं: हिंदी, पंजाबी, उर्दू, कश्मीरी, सिंधी, गुजराती, मराठी, बांग्ला, उड़िया और असमिया। संस्कृत से विकसित होने के कारण इन भाषाओं में न केवल संस्कृत के शब्द प्रचुर मात्रा में मिलते हैं, बल्कि व्याकरण के कई रूप भी इनमें समान या लगभग समान हैं। यही कारण है कि भारतीय आर्य परिवार की इन भाषाओं को परस्पर समझने या सीखने में कोई कठिनाई नहीं होती है।
किसी भी भाषा पर केवल अपने परिवार की अन्य भाषाओं का ही प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि पड़ोसी भाषाओं का भी पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। चाहे वे भाषाएँ अन्य भाषा परिवार की हों। भारत के दक्षिण में द्रविड़ भाषा परिवार की भाषाएँ हैं, जिनके साथ शताब्दियों से आर्य भाषाओं का सम्पर्क रहा है। फलस्वरूप दोनों परिवारों की भाषाओं के बीच न केवल संस्कृति की समान धारा बहती है बल्कि ध्वनि, शब्द तथा व्याकरण के स्तर पर भी परस्पर आदान-प्रदान का अद्भुत दृष्टांत मिलता है।
संस्कृत भाषा के तत्व इन सभी भाषाओं में समान रूप से मिलते हैं। मुगल काल में हिंदी भाषा पर प्रभाव डालने वाली दो प्रमुख भाषाएँ थीं— अरबी और फ़ारसी, जिन्होंने विशेषतः उर्दू के माध्यम से हिंदी के शब्द-भंडार को अत्यधिक प्रभावित किया। इसी प्रकार आजकल हिंदी के शब्द-भंडार तथा वाक्य-रचना को गहराई से प्रभावित करने वाली दूसरी भाषा है अंग्रेजी। अंग्रेजी का प्रभाव मुख्यतः ज्ञान-विज्ञान की भाषा के रूप में अधिक महत्वपूर्ण है।
भाषा परिवार का वर्गीकरण और संख्या
ग्रियर्सन के अनुसार भारत में 6 भाषा-परिवार, 179 भाषाएँ और 544 बोलियाँ हैं।
- भारोपीय परिवार: उत्तरी भारत में बोली जानेवाली भाषाएँ।
- द्रविड़ परिवार: तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम।
- आस्ट्रिक परिवार: संताली, मुंडारी, हो, सवेरा, खड़िया, कोर्क, भूमिज, गदवा, पलौंक, वा, ख़ासी, मोनख्मे, निकोबारी।
- तिब्बती-चीनी: लुशेइ, मेइथेइ, मारो, मिश्मी, अबोर-मिरी, अक।
- अवर्गीकृत: बुरुशास्की, अंडमानी।
- करेन तथा मन: बर्मा की भाषा (जो अब स्वतंत्र है)
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