भाषा क्या है? भाषा किसे कहते हैं? भाषा का महत्त्व, प्रकृति और विशेषताएँ

भाषा विचारों, भावों के आदान-प्रदान का एक माध्यम है. भाषा के द्वारा हम अपनी भावों, विचारों को दुसरे तक पहुंचाते हैं. यह भावों के विचार-विनिमय का साधन है. भाषा के बिना मनुष्य ‘पशु’ के समान है, भाषा के कारण ही मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी है. भाषा का आविष्कार व विकास मनुष्य का विकास है. मनुष्य के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में भाषा का अत्यंत महत्त्व है. तो आज हम इसी के बारे में बात करेंगे कि भाषा का महत्त्व (Bhasha ka Mahatv) क्या है? 

हम सभी अपनी बातों को दुसरे तक पहुंचाने के लिए भाषा का प्रयोग करते हैं. विचारों के विनिमय और व्यक्तित्त्व निर्माण में भाषा का योगदान होता है. भाषा के कई प्रकार के होते हैं, मातृभाषा, राष्ट्रभाषा, अन्तराष्ट्रीय भाषा और प्रादेशिक भाषा. मानव के जीवन में भाषा का अत्यंत महत्त्व हैं, इसके बिना मनुष्य का व्यक्तिगत निर्माण असंभव है.

भाषा क्या है?

भाषा शब्द संस्कृत के ‘भाष्‘ धातु से बना है, इसका सामान्य अर्थ ‘जो बोली जाती है’ (बोलना) होता है. भाषा विचारों, भावों के आदान- प्रदान का माध्यम है. इसके माध्यम से मनुष्य अपनी विचारों, भावों को बोलकर, पढ़कर या लिखकर एक-दुसरे तक आदान-प्रदान करते हैं.

यह वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने भावों, विचारों को व्यक्त करते हैं. हम अपनी मन की बातों को भाषा के माध्यम से ही दुसरे व्यक्ति तक पहुंचाते हैं. भाषा मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों, वाक्यों आदि का समूह है. भाषा का अर्थ दो रूपों में होता है, व्यापक और सीमित अर्थ.

भाषा का व्यापक अर्थ ‘वे सभी साधन भाषा हैं, जिनका प्रयोग कोई प्राणी समुदाय अपने विचार-विनिमय के लिए करता है’. भाषा का संकुचित अर्थ ‘स्वैच्छिक ध्वनि संकेतों की वह व्यवस्था जिसके माध्यम से कोई मानव समुदाय परस्पर सहयोग तथा व्यवहार करता है’.

भाषा का महत्त्व क्या है? 

मानव के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में भाषा का अत्यंत महत्व है. भाषा के बिना मनुष्य पशु के समान है. भाषा के माध्यम से मनुष्य अपनी मन के भावों, विचारों को दुसरे तक पहुंचाते हैं. Bhasha ka Mahatv इस प्रकार हैं,

ज्ञान प्राप्ति का साधन

इसके माध्यम से ही एक पीढ़ी समस्त संचित ज्ञान सामाजिक विरासत के रूप में दूसरी पीढ़ी को सौंपती है. भाषा के माध्यम से ही प्राचीन और नविन, आत्मा और विश्व पहचानने की सामर्थ्य प्राप्त करते हैं. भाषा के द्वारा ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है.

विचार-विनिमय का सरलतम एवं सर्वोत्कृष्ट साधन

बालक जन्म के कुछ ही दिनों के पश्चात् परिवार में रहकर भाषा सीखने लगता है. यह भाषा वह स्वाभाविक एवं अनुकरण के द्वारा सीखता है. इसे सिखाने के लिए किसी अध्यापक की आवश्यता नहीं होती है. यह विचार विनिमय का सर्वोत्तम साधन है, क्योंकि भाषा संकेतों एवं चिन्हों से श्रेष्ठ है.

सामाजिक जीवन में प्रगति का साधन 

यह समाज के सदस्यों को एक सूत्र में बांधती है, भाषा के माध्यम से ही समाज प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता है. भाषा जितनी विकसित होगी, समाज उतना ही विकासशील होगा. भाषा के माध्यम से समाज के नैतिक व्यापर ही संपन्न नहीं होते, अपितु संस्कृति भी विकसित होती है.

वह भाषा ही है, जिसके आधार पर विभिन्न क्षेत्रों, विभिन्न जातियों एवं धर्मों के लोग मिल-जुलकर रहते हैं. वस्तुत: भाषा समाज को जोड़ने में सहायक है, अतएव यह कहा जा सकता है कि भाषा सामाजिक जीवन में प्रगति का साधन है.

व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक 

भाषा व्यक्तित्व के विकास का महत्वपूर्ण साधन है. व्यक्ति अपने आतंरिक भावों को भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करता है तथा इसी अभियक्ति के साथ अन्दर छिपी अनंत शक्ति अभिव्यक्त होती है.

अपने विचारों एवं भावों को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त कर सकना तथा अनेक भाषाएँ बोल सकना विकसित व्यक्ति के ही लक्षण हैं. किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति जितनी स्पष्ट होगी, उसके व्यक्तित्व का विकास भी उतने ही प्रभावशील ढंग से होगा.

भाषा राष्ट्र की एकता का आधार

समस्त राष्ट्र प्रशासन का संचालन भाषा के माध्यम से होता है. भाषा ‘राष्ट्रीय एकता’ का मूलाधार है, इसके साथ ही कोई अन्य भाषा भी विभिन्न राष्ट्रों के बीच विचार-विनिमय, व्यापार एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान का साधन बनती है. ऐसी भाषाओँ के अभाव में विभिन्न राष्ट्रों के विद्वानों की विचारधाराएँ राष्ट्र विशेष तक ही सीमित रह जाती है.

मानक भाषा किसे कहते हैं? 

भाषा की प्रकृति 

इसकी प्रकृति अत्यंत सूक्ष्म हैं, इसकी तुलना हिम शिलाखंड से की जाती है. भाषा का कुछ अंश जैसे उच्चरित ध्वनियाँ, भाव-भंगिमा ध्वनियों का वायु तरंगों द्वारा प्रसारण तथा श्रवण तो स्पष्ट है, परन्तु इसके अधिकतर अंश जैसे, वाक् की मस्तिष्क में रचना, श्रोता द्वारा भाव ग्रहण की प्रक्रिया, संकेतों का वर्त्तमान तथा विगत अनुभूतियों के साथ सम्बन्ध, उनका सामाजिक, सांस्कृतिक पक्ष अदृश्य होते हैं. भाषा की प्रकृति इस प्रकार हैं,

  • भाषा का विचार से अटूट सम्बन्ध होता है, इनको एक-दुसरे से अलग नहीं किया जा सकता है. विचार के अभाव में भाषा का कोई मूल्य नहीं होता है.
  • यह अभिव्यक्ति का एक सांकेतिक साधन है, भाषा के रूप में प्रयुक्त संकेतों द्वारा समाज के सदस्य अपने भाव व्यक्त करते हैं.
  • इसका सम्बन्ध परंपरा से होता है, यह एक पीढी से दूसरी पीढी द्वारा ग्रहण की जाती है.
  • मनुष्य भाषा का अर्जन अपने चारो ओर के वातावरण से करता है. अत: भाषा अर्जित सम्पति है.
  • सामाजिक संपर्क से भाषा अर्जित होता है. भाषा का जन्म समाज में ही होता है और उसका विकास भी समाज ही होता है.
  • मौखिक और लिखित दो प्रकार का भाषा हैं, वस्तुत: भाषा के मौखिल रूप को भाषा कहा जाता है.
  • ज्ञान प्राप्ति का प्रमुख साधन भाषा है. इसके माध्यम से ही एक पीढी समस्त संचित ज्ञान सामाजिक विरासत के रूप में दूसरी पीढी को सौंपती  है.

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