आपने कई बार सुना होगा कि किसी ने किसी चीज़, घटना या किसी दूसरे व्यक्ति पर कोई टिप्पणी कर दी। आज के सोशल मीडिया के जमाने में इसे हम comment करना कहते हैं। लेकिन हिन्दी साहित्य में टिप्पणी लेखन की एक अलग विशेषता और महत्व है।
टिप्पणी किसे कहते हैं?
किसी सुने गए अथवा पढ़े गए संभाषण, वार्तालाप, पत्र, लेख, कविता, ग्रंथ आदि, देखे गए दृश्य तथा घटना पर अपना मत मौखिक अथवा लिखित रूप में प्रकट करना ही टिप्पणी कही जाती है।
टिप्पणी-लेखन की कोई एक मानक शब्द-सीमा नहीं होती है। और आकार की दृष्टि से टिप्पणी की कोई निश्चित सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती, किंतु संक्षिप्त, साथ ही सारगर्भित टिप्पणी ही अच्छी समझी जाती है, जो एक शब्द से लेकर चार-पाँच वाक्यों तक की हो सकती है।
टिप्पणी के प्रकार कितने हैं?
टिप्पणी तीन प्रकार के होते हैं, कार्यालयी टिप्पणी, सम्पादकीय टिप्पणी और सामान्य टिप्पणी।
कार्यालयी टिप्पणी: इस प्रकार की टिप्पणी कार्यालय में प्राप्त होने वाले दैनंदिन पत्रों, शासनादेशों अथवा किसी कार्यवाही के विवरणों पर कार्यालय से संबंधित लिपिकों द्वारा तैयार की जाती है। अधिकारी-वर्ग निर्णय लेते समय प्रायः इन टिप्पणियों को आधार बनाते हैं।
संपादकीय टिप्पणी: समाचार पत्रों अथवा पत्रिकाओं के संपादकों द्वारा किसी सरकारी अथवा ग़ैर-सरकारी कानून, निर्णय, आंदोलन अथवा घटनादि पर की गई टिप्पणी, संपादकीय टिप्पणी कहलाती है।
सामान्य टिप्पणी: जनसाधारण द्वारा की गई टिप्पणी सामान्य टिप्पणी कही जा सकती है।
टिप्पणी व्यक्ति की आजीविका, जन-मत तथा ने जीवन-गत व्यवहारों को बड़ी दूर तक प्रभावित करती है। अतः टिप्पणीकर्ता को निष्पक्ष तथा सूझ-बूझ वाला होना चाहिए।