कहानी बिना कथानक के भी हो सकती है, लेकिन उपन्यास में कथानक अनिवार्य होता है. कथानक को कहानी रचते समय अपनी दृष्टि किसी एक घटना या वस्तु पर केन्द्रित करनी पड़ती है. परन्तु उपन्यास में स्थानीय वातावरण का निर्माण पात्रों के चरित्र-चित्रण एवं उनका चारित्रिक विकास, उसके साथ ही उनका संघर्ष उपस्थित रहता है. कथानक और शैली की दृष्टि से कहानी उपन्यास के बहुत निकट है. उपन्यास सम्पूर्ण जीवन है और कहानी उस जीवन का एक अंश. तो आज हम आपसे कहानी और उपन्यास में अंतर के बारे में बात करेंगे.
कहानी किसे कहते हैं?
जीवन में ऐसे अनेक क्षण और ऐसी घटनाएँ आती हैं, जो थोड़े समय के लिए आकर भी हमें चमत्कृत कर जाती है. कहानी उन क्षणों और घटनाओं की विवरणात्मक यादगार है. जहाँ यह मानव-जीवन है, वहां उसकी कहानी भी अवश्य है. अत: कहानी कहने की परंपरा उतनी ही पुरानी है, जितना पुराना हमारा जीवन है.
संस्कृत साहित्य में कहानी के लिए आख्यायिका, कथानिका, कथा और वृत्तान्त शब्द प्रचलित रहे है. इसे गल्प और कथानक भी कहा जाता है. आचार्यों ने विस्तार और प्रयोजन की दृष्टि से इसे आख्यान, परिकथा, खंडकथा, उपकथा वृहत्कथा आदि उपभेदों में भी विभक्त किया है. साधारण बोलचाल की भाषा में कहानी को बात या किस्सा भी कह दिया जाता है.
उपन्यास किसे कहते हैं?
उपन्यास ‘गद्य’ लेखन की एक विधा है. यह ‘उप और न्यास’ दो शब्दों से मिलकर बना है. इसका मतलब होता है, कल्पित और लम्बी कहानी जो अनेक पात्रों और घटनाओं से युक्त हो. उपन्यास मनाव जीवन की काल्पनिक कथा है. प्रेमचंद के अनुसार “मैं उपन्यास को मानव जीवन का चित्रमात्र समझता हूँ. मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व है. श्यामसुन्दर दास के अनुसार,” उपन्यास मनुष्य के वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा हैं.”
कहानी और उपन्यास में अंतर
कथानक और शैली की दृष्टि से कहानी उपन्यास के बहुत निकट है. बाह्य दृष्टि से कहानी और उपन्यास में समानता अवश्य है, परन्तु सूक्ष्म दृष्टि से देखने में काफी अंतर भी है. कथानक उपन्यास का प्राण है. कहानी बिना कथानक के भी हो सकती है. कहानी में उपन्यास की तरह गौण कथाएँ नहीं होती, केवल एक मुख्य कथा ही होती है. कहानी में चरित्र का होना आवश्यक नहीं.
उपन्यास सम्पूर्ण जीवन है और कहानी उस जीवन का एक अंश. कहानी में लेखक अपनी कल्पना शक्ति के सहारे कम से कम पात्रों तथा चरित्रों द्वारा, कम से कम घटनाओं और प्रसंगों की सहायता से मनोवांछित कथानक, चरित्र, वातावरण, दृश्य अथवा प्रभाव की सृष्टि करता है. प्रभाव कहानी का प्राण है और स्वाभाविकता उसके स्वरूप की शपथ. उसका उद्देश्य जीवन जगत की प्रकृति के छोटे-छोटे किन्तु सुन्दर और मार्मिक चित्र उपस्थित करना है.
छोटी कहानी से प्राप्त मनोरंजन का आशय संतोष की उस साँस से है, जो क्षण-भर के लिए मनुष्य को नवीन स्फूर्ति तथा नवीन उत्साह से ओतप्रोत कर देता है. मनुष्य कल्पना की महत्ता है, न कि भूमिका और उपसंहार की. कहानी की दुनिया बहुत छोटी होती है. अत: यदि उपन्यास जीवन का पूर्ण चन्द्र है, तो कहानी उसकी एक छोटी कोमल किरण है.