हाथ कंगन को आरसी क्या मुहावरे का अर्थ (कहावत/लोकोक्ति)

अक्सर आपने कई लोगों को यह कहते हुए सुना होगा कि हाथ कंगन को आरसी क्या? और कहीं-न-कहीं शायद आप भी इस कहावत या लोकोक्ति का प्रयोग करते होंगे। आइए जानते हैं की हाथ कंगन को आरसी क्या मुहावरे का अर्थ क्या है?

हाथ कंगन को आरसी क्या मुहावरे का अर्थ

यह लोकोक्ति चाहे जिस नवविवाहिता के सौंदर्य को सिद्ध करने के लिए बनी हो, अब इसमें संदेह नहीं कि प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। आसमान में इंद्रधनुष उगे हुए हों और बारिश की फुहारें गिर रही हों, तो मोर के लिए किसी सबूत की जरूरत नहीं होती कि वर्षा ऋतु आ गई है।

हमारे दैनिक जीवन में लगातार ऐसी घटनाएं घटती रहती हैं, जिन्हें देखने के बाद किसी प्रमाण या उदाहरण की आवश्यकता नहीं पड़ती। हमारे चारों ओर भ्रष्टाचार और छल का साम्राज्य फैला हुआ है, झूठ और अनाचार की आँधी आई हुई है, इन विसंगतियों की वास्तविकता की पहचान के लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है।

जब हमारे अपने अनुभव ही प्रमाण का रूप धारण कर लेते हैं, तब किसी बाह्य कथन की जरूरत शेष नहीं रह जाती। किसी के कहने पर हमारे भोगे हुए यथार्थ में कोई अंतर नहीं आता। हमारे जीवन में उपलब्ध वास्तविकता ही अपने-आप में प्रमाण हैं। जब हाथ के कंगन में ही अपनी छवि देखी जा सकती है, तब किसी दर्पण की आवश्यकता भला किसे होगी?

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