सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जीवन परिचय, रचनाएँ, कविताएँ एवं साहित्यिक परिचय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ प्रयोगवाद एवं नई कविता के एक सशक्त और लोकप्रिय कवि थे। इनकी कविताओं में आपको अनेक आत्मानुभूतियों की झलक मिल जाएगी, जो अन्य कवियों से काफ़ी अलग है। आइए जानते हैं सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जीवन परिचय, रचनाएँ एवं साहित्यिक योगदान।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जीवन परिचय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जन्म 7 मार्च, 1911 ई. को भगवान बुद्ध की जन्मभूमि कुशीनगर कसवा में हुआ था। उनके पिता का नाम हीरानंद वात्स्यायन था। ‘अज्ञेय’ का बचपन लखनऊ, श्रीनगर और जम्मू में व्यतीत हुआ।

पहले वे विज्ञान के विद्यार्थी थे। उन्होंने सन् 1929 ई. में पंजाब विश्वविद्यालय से बी. एस-सी. की परीक्षा पास की, किन्तु बाद में साहित्य में रुचि होने के कारण अंग्रेजी विषय में एम. ए. करने की ठानी। अंग्रेजी में एम. ए. करते समय क्रांतिकारी आंदोलन में कूद पड़े। सन् 1930 ई. के अंत में पकड़े गए। आपको स्वतंत्रता आंदोलन के चक्कर में कई बार जेल जाना पड़ा। उन्होंने अपने जीवन में सेना सहित अनेक नौकरियाँ कीं।

‘अज्ञेय’ जी को घुमक्कड़ी का बड़ा शौक था। उन्होंने देश-विदेश की यात्राएँ कीं। उन्होंने सैनिक, विशाल भारत, प्रतीक, दिनमान, नवभारत टाइम्स एवं नया प्रतीक आदि पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। 4 अप्रैल, 1987 ई. को नई दिल्ली में उनका देहान्त हो गया।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का साहित्यिक परिचय

‘अज्ञेय’ की प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत और अंग्रेजी में हुई, यही कारण है कि वे संस्कृतनिष्ट परंपरा में पले अंग्रेजी संस्कारों के व्यक्ति रहे। उनकी काव्यवस्तु से ही नहीं, वरन् उनके काव्यशिला से भी सुरुचि और शालीनता प्रकट होती है।

‘अज्ञेय’ जी हिन्दी में ‘प्रयोगवाद’ और ‘नयी कविता’ के प्रवर्तक माने जाते हैं। उनके काम में लौकिक प्रेम की अभिव्यक्ति से लेकर प्रकृति के विविध रूपों के चित्रणं के साथ बौद्धदर्शन के महाशून्यवाद तक की अभिव्यक्ति हुई है। उन्होंने शब्दों का सटीक चयन कर, सटीक अ भरने का प्रयास किया है। सन् 1978 ई. में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं— भग्नदूत, चिंता, इत्यलम्, हरी घास पर क्षण भर, इंद्रधनुष रौंदे हुए ये, कितनी नावों में कितनी बार, सागर मुद्रा, नदी की बाँक पर छाया, सदानीरा (दो भाग) आदि काव्य-संग्रह हैं। उन्होंने तीनों ‘तार सप्तकों’ का सम्पादन भी किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने कई कहानी-संग्रह, उपन्यास, यात्रा-वृतांत आदि भी लिखे।

अज्ञेय की भाषा-शैली 

इनकी भाषा संस्कृतनिष्ट खड़ी बोली है, जिसमें छन्दों के साथ-साथ छन्द मुक्तकता भी है। उनकी भाषा में नए बिम्बों और नए प्रतीकों का भी प्रयोग मिलता है। काव्य-शिल्प की विशेषताएँ : भाव-पक्ष-अज्ञेय जी को ‘नई कविता’ का प्रवर्तक माना जाता है। अज्ञेय की कविताओं में विषयवस्तु की नवीनता है।

उनकी कविताएँ आत्मानुभूति से उपजे विवेक का काव्यात्मक प्रतिरूप हैं। अज्ञेय प्रकृति-प्रेम और मानव-मन के अंतर्द्वद्वों के कवि हैं। उनकी कविता में व्यक्ति की स्वतंत्रता का आग्रह है और बौद्धिकता का विस्तार भी। मानवीय संबंधों में सद्भावना, शालीनता और ईमानदारी उनके काव्य की प्रमुख विशेषता है।

उनकी रचनाओं में भावों की विविधता भी है और व्यापकता भी। उन्होंने कविता को नई शक्ति और अभिव्यक्ति दी है। अज्ञेय जी ने शब्दों को नया अर्थ देने का प्रयास करते हुए हिंदी काव्य-भाषा को विकसित करने में महान योगदान दिया है। उनकी रचनाओं में नई शिल्प-दृष्टि है। उन्होंने अपने काव्य में हिंदी के अतिरिक्त देशी-विदेशी छन्दों और शास्त्रीय लोक धुनों का भी प्रयोग किया है। उनकी भाषा में सरलता, गंभीरता व प्रवाहमयता है।

इसे भी पढ़ें: फणीश्वरनाथ रेणु का जीवन परिचय एवं रचनाएँ

Leave a Comment