1947 में जब भारत आजाद हुआ उस समय लगभग 565 रजवाड़े या देशी रियासतें थीं, जिन्हें princely states कहा जाता था। और सरदार पटेल के प्रयासों से रजवाड़ों का भारतीय संघ (Union of India) में विलय हुआ।
भारत सरकार ने राजाओं-महाराजाओं को वचन दिया था कि उन्हें अपने परिवार, निजी स्टाफ और राजमहलों के रख-रखाव के लिए सरकारी कोष से कुछ धनराशि दी जायेगी। इस संबंध में यह भी व्यवस्था की गयी थी कि राजाओं के जीवन काल में यह धनराशि उन्हें मिलती रहेगी, पर उसके उत्तराधिकारियों के लिए यह राशि धीरे-धीरे कम कर दी जायेगी। इसी राशि को प्रिवी पर्स (privy purse) कहते हैं।
प्रिवी पर्स क्या है?
प्रिवी पर्व उस धनराशि को कहते हैं जो भारत आज़ाद होने के बाद भारत सरकार द्वारा रियासतों के राजाओं को भारत में विलय होने पर दिया जा रहा था। और यह धनराशि इसलिए दी जाती थी ताकि राजा-महाराजा अपने राजमहल का अच्छे-से रख-रखाव कर सकें।
प्रिवी पर्स की समाप्ति कब हुई?
प्रिवी पर्स की समाप्ति सन 1971 में हुई। सितंबर 1970 में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने प्रिवी प्रर्स को समाप्त करने के लिए लोकसभा में एक संविधान संशोधन विधेयक पेश किया। लोकसभा में तो इसे दो-तिहाई बहुमत मिल गया, पर राज्यसभा में इसके पक्ष में आवश्यक विशेषाधिकार समाप्त कर दिये।
15 दिसंबर, 1970 को उच्चतम न्यायालय ने इस अध्यादेश को अवैध करार दे दिया। परंतु इंदिरा गाँधी की सरकार इस प्रिवी पर्स को खत्म करने के लिए दृढ़ संकल्प थी। 1971 में इंदिरा सरकार को शानदार जीत हासिल हुई और फिर 25वें संशोधन अधिनियम द्वारा देशी रियासतों के शासकों के प्रिवी पर्स और विशेषाधिकार समाप्त कर दिये गये।