चंद्र ग्रहण कब, क्यों और कैसे लगता है? नियम, मतलब और प्रभाव

Chandra Grahan Kya Hai? और ये क्यों लगता है? आपने कभी ना कभी चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण के बारे में जरूर ही सुना होगा। लेकिन क्या आपको पता है कि चंद्र ग्रहण क्यों लगता है? हमारे देश में चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण का अपना एक धार्मिक महत्व है।

अगर धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो हमारे भारत में ग्रहण का लगना शुभ नहीं माना जाता है। क्यों और कैसे वो सब कुछ हम जानेंगे इस लेख में और साथ में ग्रहण लगने के धार्मिक और वैज्ञानिक कारण भी। तो चलिए देखते हैं ग्रहण के बारे में एक विस्तृत लेख।

चंद्र ग्रहण कब लगता है?

चंद्रग्रहण तब लगता है जब चंद्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी आ जाती है, और चाँद तक सूर्य की रोशनी नहीं पहुँच पाती हैं।

हमारे ब्रह्मांड में जितने भी दूसरे ग्रह हैं वो सभी सूर्य के चक्कर लगाते हैं। लेकिन चंद्रमा ही एक ऐसा उपग्रह है जो सूर्य नहीं बल्कि पृथ्वी के चक्कर लगाती है। क्योंकि चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है। तो इसलिए पृथ्वी के आजू-बाजू घूमते हुए एक समय ऐसा आता है जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य तीनों एक ही क्रम में घूमने लगते हैं। और पृथ्वी, चाँद और सूर्य के ठीक बीच में स्थित हो जाता है जिससे सूर्य की रोशनी चंद्रमा तक नहीं पहुँच पाता है।

और इसी को हम चंद्र ग्रहण के नाम से जानते हैं। वहीं अगर चक्कर लगाते-लगाते चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीच आता है जिससे पृथ्वी में सूर्य की रोशनी पड़नी बंद हो जाती है। इस चीज को हम सूर्य ग्रहण कहते हैं। और यह चंद्र ग्रहण का वैज्ञानिक कारण है।

चंद्र ग्रहण का धार्मिक दृष्टिकोण

चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण के न सिर्फ वैज्ञानिक कारण हैं बल्कि हमारे शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है। अगर हम धार्मिक पक्ष से देखें तो ग्रहण लगने के कारण बताए गए हैं। हिन्दू धर्म में ग्रहण लगने के कारण राहू और केतु को मानते हैं।

दरअसल समुद्र मंथन के दौरान जब देवताओं और असुरों के बीच अमृत को पीने के लिए युद्ध चला तो भगवान विष्णु को मोहिनी का रूप लेकर आना पड़ा ताकि वो समस्या का हल कर सकें।

भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग-अलग कतारों में बैठने को कह दिया और देवताओं के बीच अमृत बटने लगा। लेकिन विष्णु के इस चाल को, राहू नाम का एक असुर भांप लिया और जाकर देवताओं के कतार में बेठ गया अमृतपान के लिए और देवताओं के साथ-साथ उसे भी अमृत मिल गया।

लेकिन ये बात सूर्य और चंद्र देवता समझ गए और विष्णु को इस बात की शिकायत कर दी जिसके बाद विष्णु ने राहू नाम के असुर का सिर धड़ से अलग कर दिया। उसके बाद उसके धड़ को राहू और सिर को केतु के नाम से जाना जाने लगा। उस दिन के बाद से राहू- केतु ,चंद्रमा और सूर्य को अपना दुश्मन मानने लगे और इस वजह से वो पूर्णिमा के दिन चंद्र को ग्रास लेते हैं अथवा निगल लेते हैं।

दोस्तों आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि चंद्र ग्रहण हमेशा पूर्णिमा के ही दिन लगता है। हालांकि ऐसा जरूरी नहीं है कि हर पूर्णिमा में चंद्र ग्रहण लगे, लेकिन हर चंद्र ग्रहण में पूर्णिमा होता ही है।

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