करमा पूजा कब होता है? History of Karma Puja in Hindi करम एकादशी कथा

अगर आप झारखंड, बंगाल या छत्तीसगढ़ के निवासी हैं, तो करम पूजा के बारे में जानते ही होंगे। कर्मा पूजा यानि करम महोत्सव प्रकृति की महाशक्ति पर आधारित है, और आज हम History of Karma Puja in Hindi के बारे में विस्तार से बात करेंगे।

भाषा संस्कृति मानव समाज में चरित्र गठन का मूल आधार है. विविधता भरा हमारा देश अनेक भाषा-संस्कृतियों का पोषक क्षेत्र है, लेकिन झारखण्ड की भाषा-संस्कृति की एक अलग ही विशिष्टता है, जो देश की एक प्राचीनतम आदिम संस्कृति है.

इसी प्राचीनतम विशिष्टता का सूचक है झारखण्ड का करम महोत्सव. यह सांस्कृतिक त्यौहार प्रकृति की महाशक्ति पर आधारित है. अति प्राचीन होते हुए भी हर साल इसमें नयापन झलकता है एवं यह एहसास दिलाता है कि यह कभी भी पुराना यानि उबाऊ नहीं हो सकता. तो आज मैं आपको Karma Puja ka Itihas aur Katha के बारे में बताने जा रहा हूँ कि करम पर्व कैसे मनाया जाता है?

Jharkhand’s Karma Puja in Hindi

फ्रेंड्स, सबसे पहले मैं आपको बता दूँ कि Karma Festival को हम करम पर्व या फिर करम महोत्सव के नाम से भी जानते हैं.

प्राचीन काल में हमारे पुरखों ने बहुत ही गहन चिंतन-मनन करके प्रकृति महाशक्ति के गुणों को परख कर इस महान पर्व के विधि-नियम स्थापित किये, जिनका विधिवत अनुपालन करने पर मानव समाज में सद्चरित्र-सद्भाव गठन पीढ़ी-दर-पीढ़ी होता रहेगा एवं समाज सुख-शांतिपूर्वक जीवन निर्वाह कर सकेगा.

गीत, धुन एवं नाच के नियमों से भरपूर यह पर्व सामूहिक रूप से संगीत लयबद्ध करम-आराधना का एकमात्र वैश्विक मिसाल है.

Karam Parv Kiske Liye Hai?

प्रकृति महाशक्ति के गुणों से ही संसार में जीवों का सृजन, पालन एवं विलय होता आया है, यह तथ्य वैज्ञानिक रूप से युक्ति सांगत एवं वास्तविक है. समाज गठन का आधार नारी एवं पुरुष का सृजन भी प्राकृतिक नियमानुसार ही होता है.

नारियों में कुछ विशेष सृजनशील क्षमता होती है. इन्हीं नारियों का प्रथम रूप है कुमारी अवस्था का रूप एवं इन कुंवारी बालाओं को ही इस परब में विधि-नियम पालनपूर्वक व्रती होने की योग्यता प्राप्त है.

इसके निष्ठापूर्वक अनुपालन से व्रतियों के तन-मन में समतावादी विचार, विशेष सृजनशील शक्ति से प्रभावित होता है.

Naming of Karma Puja in Hindi

झारखण्ड की जनजातीय भाषा कुडमाली में work यानि ‘कर्म’ को ‘करम’ कहा गया है एवं इसी करम से ही इस पर्व का नामकरण हुआ है. प्राचीन काल में करम यानि काम को तीन श्रेणी (उच्चतम, मध्यम एवं निम्न) में बांटा गया है.

पूर्वज महापुरुषों का एक सुस्थापित उपदेश वाणी है- “उच्चतम खेती, मध्यम बाण, नीच चाकरी भीख निदान.” यहाँ कर्मों में कृषि को उच्चतम, वाणिज्य को मध्यम तथा नौकरी को निम्न माना गया है एवं भीख मांगना सबसे अधम कृत्य है, जो कर्म के दायरे में ही नहीं आता.

कृषि यानि श्रेष्ठ कर्म का ही एक प्रारंभिक चरण होता है- बिज को मिटटी में ढँक कर बिचड़ा या पौधा तैयार करना एवं संसार के सर्वप्रथम एवं श्रेष्ठ कर्म कृषि की आराधना हेतु इसी चरण के रूप को आराध्य स्वरूप ‘जाउआ डाली’ में देखने को मिलता है. इस तरह यह पर्व करम चेतना को पीढ़ी-दर-पीढ़ी जागृत रखने का माध्यम है.

Karam Parv ke Niyam/Karma Puja in Hindi

करम परब में कुमारी बालाओं को ‘जाउआ’ बुनने से लेकर ‘डाइरपूजा’ तक कई प्रकार के नियम-पालन करने पड़ते हैं. जैसे- जाउआ में रोज सुबह-शाम हल्दी पानी सिंचन एवं रोज शाम को पवित्र अखाड़े में जाउआ रख कर गीत गाते हुए उसकी भक्ति परिक्रमा-नृत्यपूर्वक वन्दना करना.

उन सात या नौ दिन (जैसी परिस्थिति हो) तक साग नहीं खाना, खट्टा दही नहीं खाना, अपने हाथ से दातून नहीं तोडना, खाने में स्वयं ऊपर से नमक नहीं लेना, ‘हबू’ (एक विशेष प्रकार की डुबकी) देकर नहीं नहाना, गुड नहीं खाना आदि ग्यारह ऐसे अनुशासनात्मक नियम-पालन के विधान हैं.

इनके उल्लंघन या अवमानना पर जाउआ में उसका तदनुरूप असर देखने को मिलता है. इस प्रकार में नियम व्रती के मन में संयम-साधना शक्ति का संचार करते हैं.

हमारे पूर्वजों ने मानव समाज में कुमारी बालों को ही पुष्प सदृश माना है, इसलिए अक्सर हम इनकी तुलना फूलों से करते हैं एवं फूलों के नाम पर ही इनके नाम रखते आये हैं. अतः यह बात सिद्ध है कि मानव समाज के फूल कुंवारी बालाएं ही हैं.

Science behind Karma Puja in Hindi

जैसे हर साल माघ मास में ही हमारे इस प्रायद्वीपीय क्षेत्र के आम के पेड़ों में मंजरि एवं फल-सृजन होता है. इस क्रिया से पता चलता है कि पृथ्वी अपनी विशिष्ट सीमा-रेखा में घूमती हुई हर साल माघ महीने में महाकाश के ठीक उसी स्थान पर पहुंचती है और ठीक उस स्थान की गुण-शक्ति के प्रभाव से ही इन मंजरि एवं फलों का सृजन होता है.

इस तरह महाकाश के सभी क्षेत्र एक-एक विशिष्ट प्रकार के गुण-शक्तियों से लैस है. इसी तरह भादों में एकादशी तिथि के समय काल में पृथ्वी एक ऐसा निर्दिष्ट विशेष स्थान पर पहुँचती है, जहाँ महाकाश सृजन-शील गुण क्षमता से भरपूर है.

विदित हो कि यही क्षण देश के प्रमुख खाद्यान्न शस्य धान सही अन्य तिलहन, दलहन आदि शास्यों के गर्भधारण एवं पल्लवित होने का समयकाल होता है. यही गुण-शक्तियां करम परब के विधि-नियमों द्वारा करमइति व्रती बालाओं को प्राप्त होती हैं.

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