विज्ञान के इस युग में मानव को जहाँ कुछ वरदान मिले हैं, वहाँ कुछ अभिशाप भी मिले हैं। प्रदूषण भी एक ऐसा ही अभिशाप है जो विज्ञान की कोख से जन्मा है और जिसे सहने के लिए अधिकांश जनता मजबूर है। और आज हम पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध के माध्यम से प्रदूषण के प्रकार, कारण और समाधान के बारे में बात करेंगे।
पर्यावरण किसे कहते हैं?
पर्यावरण ‘परि’ और ‘आवरण‘ शब्दों के मेल से बना है। ‘परि’ का अर्थ होता है चारों ओर, आवरण का अर्थ घेरा से है। अतः पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ हुआ- ‘पृथ्वी के चारों ओर है जो आवरण’।
अतः हमारी समस्त धरती और इसपर विद्यमान सभी वस्तु हमारा पर्यावरण है। इसके अंतर्गत वे सभी परिस्थितियाँ भी जा जाती हैं जो हमारे जीवन पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रभाव डालती है।
हमारे पर्यावरण के अंतर्गत मुख्यतः हवा, जल और भूमि आते हैं, किंतु इसमें साथ रहने वाले समस्त जीव जंतु और पेड़ पौधे भी आ जाते हैं। पर्यावरण को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है- भौतिक पर्यावरण के अंतर्गत हवा, जल और भूमि आते हैं। जैविक पर्यावरण के अंतर्गत पेड़-पौधे और छोटे-बड़े सभी जीव आते हैं।
प्रदूषण क्या है?
प्रकृति या पर्यावरण के अवयवों की संरचना या संतुलन में व्यवधान उत्पन्न करना पारिस्थितिकी असंतुलन या प्रदूषण कहलाता है। औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, जनसंख्या में वृद्धि का ह्रास तथा नाभिकीय कचरे इत्यादि प्रदूषण के मुख्य कारण हैं।
ज्ञान-विज्ञान का विकास और जनसंख्या की वृद्धि के साथ-साथ स्वच्छता की समस्या प्रादुर्भूत हुई हैं। बड़े नगरों में नालियों के गंदे पानी, मल-मूत्र, कारख़ानों की राख, रासायनिक गैस अधिक मात्रा में निकालते हैं, फलतः हवा, जल, पृथ्वी स्थित सभी जंतु प्रदूषण से प्रभावित होते हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार और कारण
प्रदूषण के कई प्रकार हैं, जैसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, आदि।
वायु प्रदूषण: पर्यावरण को प्रदूषित करने में मोटर-वाहनों की भूमिका सर्वाधिक है। इसके अलावे बड़े-बड़े नगरों में कारख़ानों की बड़ी-बड़ी चिमनियाँ काले एवं भयंकर धुआँ उगलती रहती हैं जो प्राणियों के लिए भयानक संकट उत्पन्न कर रही है। वायु प्रदूषण से कई जगहों पर लोगों को साँस लेना भी मुश्किल हो गया है।
जल प्रदूषण: औद्योगिक नगरों में बड़े पैमाने पर दूषित पदार्थ नदियों में प्रवाहित किया जा रहा है जिससे उसका पानी इस योग्य नहीं रह गया है कि उसका उपयोग किया जा सके। यह दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल-प्रदूषण पैदा करता है। बाढ़ के समय तो कारखाने का दुर्गंधित जल सब नदी-नालों में घुल मिल जाता है जिससे अनेक बीमारियाँ पैदा होती है।
ध्वनि प्रदूषण: मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण चाहिए। परंतु आज कल कारखानों का शोर, यातायात का शोर, मोटर-गाड़ियों की चिल्ल-पों, लाउडस्पीकरों की कर्णभेदी ध्वनि ने बहरेपन और तनाव को जन्म दिया है। और इस प्रकार विभिन्न प्रकार के परिवहन, कारख़ानों के सायरन, मशीन चलने से उत्पन्न शोर आदि के द्वारा ध्वनि प्रदूषण होते हैं।
स्थलीय प्रदूषण: पौधों को चूहों, कीटाणुओं तथा परजीवी कीड़ों से रक्षा के लिए रासायनिक पदार्थों का उपयोग किया जाता है। हवा में विसर्जित प्रदूषण तत्त्व सोखनेवाले अवांछनीय ध्वनि का शोषण करके शोर की तीव्रता को कम करनेवाले वृक्षों के उन्मूलन किए जाने से हमारे स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव पड़ रहा है।
रेडियोधर्मी प्रदूषण: वर्तमान युग में परमाणु बम-विस्फोट परीक्षणों से वायुमंडल में जो रेडियोधर्मी विष फैलता है उससे वर्तमान ही नहीं, भावी पीढ़ी भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती।
प्रदूषण की समस्या और समाधान
पर्यावरण प्रदूषण की समस्या आज विश्व के सामने एक भयंकर समस्या बनकर उपस्थित है। उपयुक्त प्रदूषणों के करण मानव के स्वस्थ जीवन को खतरा पैदा हो गया है। खुली हवा में लंबी साँस लेने तक तरस गया है आदमी। गंदे जल के कारण कई बीमारियाँ फसलों में चली जाती है, जो मनुष्य के शरीर में पहुँच कर घातक बीमारियाँ पैदा करती हैं।
यदि पर्यावरण को प्रदूषित होने से नहीं रोका गया तो शीघ्र ही वर्तमान सृष्टि समाप्त हो जाएगी। इसके लिए अभी आवश्यक है कि पेड़-पौधे, विभिन्न प्रकार जी झाड़ियों एवं फूलों के पौधे लगाए जाएँ। पेड़-पौधे हानिकारक गैसों को ही नहीं, अपितु स्थलीय एवं ध्वनि प्रदूषण को भी रोकते हैं और हमें साँस लेने के लिए पर्याप्त मात्रा में ऑक्सिजन प्रदान करते हैं। अतः बड़े पैमाने पर नए वन लगाने, भू-संरक्षण के उपाय करने और समुद्र के तटवर्ती क्षेत्रों में रक्षा कवच लगाने की आवश्यकता है।
विश्व के कुछ विकसित देशों, जैसे- अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस आदि में प्रदूषण को रोकने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। पर्यावरण प्रदूषण आज मानव अस्तित्व के लिए एक जटिल चुनौती है। यदि इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो यह धरती तपती रेत के सागर में लीन हो जाएगी।