राजीव गाँधी का जीवन परिचय: Rajiv Gandhi Biography in Hindi

नाम राजीव गाँधी
जन्म 20 अगस्त 1944
जन्म स्थान बॉम्बे, महाराष्ट्र
माता-पिता इंदिरा गाँधी, फिरोज गाँधी
भाई संजय गाँधी
नाना-नानी जवाहरलाल नेहरु, कमला नेहरु
पत्नी सोनिया गाँधी
बच्चे प्रियंका गाँधी, राहुल गाँधी
मृत्यु 21 मई, 1991
राजनैतिक पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

राजीव गाँधी का जीवन परिचय

इकीसवीं शताब्दी में भारत के अनुप्रवेश के संकल्पक, भविष्य के भारत की आधारशिला, युवा-राजनीति के ध्रुवनक्षत्र राजीव गाँधी संसार के इस सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री उस दिन हुए जिस उनकी माता यानी भारत के प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी का निधन हुआ। राजनीति के दलदल में उनकी छवि मानस-सरोवर में खिले कमल जैसी शुभ्र शोभन है। उनके नेतृत्व में भारत आधुनिकीकरण, विज्ञानीकरण और खुशहाली के नए युग में प्रवेश कर रहा था।

राजीव गाँधी न केवल इस देश के करोड़ों लोगों के हृदय सम्राट रहे, अपितु तीसरी दुनिया की सारी आशाओं के केंद्र में अवस्थित विश्वचर्चित राजनेता भी। अपने सौम्य व्यक्तित्व, निडर आचरण ,स्पष्ट भाषण और उदात्त संस्कारों के सहारे राजीव गाँधी ने भारत के प्रधानमंत्री पद को नया आयाम प्रदान किया। भारतीय राजनीति के सबसे ताजे और भास्वर प्रकाशपुंज राजीव गाँधी का जीवन स्वाधीनता-संग्रामियों की छत्रच्छाया एवं प्रधानमंत्री-परिवार की गरिमा के बीच बीता है।

स्वभावतः देशनिष्ठा और अभिजात संस्कार के गुण उनके व्यक्तित्व के अविभाज्य अंग बन गए है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू के नाती और भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के ज्येष्ठ पुत्र राजीव गाँधी का जन्म 20 अगस्त, 1944 को बंबई में हुआ था। उनके पिता जी फिरोज गाँधी भी स्वाधीनता-संघर्ष में जूझ रहे थे। नाना, माँ और पिता द्वारा देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ी जा रही लड़ाई के बीच राजीव गाँधी का बचपन बीता। 15 अगस्त 1947 को भारत के स्वाधीन होने पर पं० जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने, तो इंदिरा जी के साथ उनके बच्चे भी दिल्ली में तीनमूर्ति-भवन में रहने आ गए। दिल्ली में राजीव और उनके छोटे भाई संजय की प्रारंभिक शिक्षा शिव-निकेतन में शुरू हुई।

बाद में 1954 ई० में राजीव गाँधी देहरादून के बेलहाम विद्यालय में पढ़ने गए। वहाँ से आई० एस-सी० की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद राजीव गाँधी सीनियर कैंब्रिज की पढ़ाई के लिए इंगलैड चले गए। जनवरी, 1966 में जब उनकी माँ श्रीमती इंदिरा गाँधी भारत के तिसरे प्रधानमंत्री-पद की शपथ दिलाई गई, तब राजीव गाँधी कैंब्रिज में पढ़ रहे थे। पढ़ाई पूरी कर उन्होंने विमान-संचालन का प्रशिक्षण प्राप्त किया।

अपने कैंब्रिज-प्रवास के दिनों में ही उनकी मुलाकात इटली की कुमारी सोनिया माइनो से हुई थी। 1968 ई० में राजीव और सोनिया का विवाह हो गया। 1970 ई० में राजीव गाँधी को इंडियन एयरलाइंस में विमानचालक की नौकरी मिल गई। उन दिनों राजनीति के साथ उनका सीधा संबंध नहीं था, लेकिन 23 जून, 1980 को अनुज संजय गाँधी के विमान-दुर्घटना में असामयिक निधन के बाद वे धीरे-धीरे राजनीति में आए। जून, 1981 में वे अमेठी से भारतीय संसद के सदस्य निर्वाचित हुए।

राजनीति में आगमन

वे अखिल भारतीय कांग्रेस-समिति के महासचिव भी बनाए गए। राजनीतिक और लोकप्रियता के आकाश में ज्योतिर्मय शुक्र नक्षत्र की तरह छा रहे राजीव गाँधी को अचानक 1984 ई० के उत्तरार्द्ध में संसार के इस महत्तम देश की बागडोर सँभालनी पड़ी। उनकी माँ विश्वनेता श्रीमती इंदिरा गाँधी 31, अक्टूबर, 1984 को अपने ही अंगरक्षकों की गोलियों का निशाना बन गई और अत्यंत संकटपूर्ण एवं अस्तव्यस्त परिस्थितियों में उसी दिन राजीव गाँधी को प्रधानमंत्री-पद की शपथ दिलाई गई।

कई लोगों को आशंका थी कि वे अनुभवहीन होने के कारण शायद असफल हों, लेकिन जितने कौशल के साथ राजीव गाँधी ने देश का संचालन प्रारंभ किया, उससे दिग्गज अनुभवी राजनीतिज्ञों -प्रशासकों की आँखें चौधीयाँ गई। दिसंबर, 1984 में उन्होंने लोकसभा के चुनाव कराए और समूचे देश से अपने दल को अभूतपूर्व विजय दिलाई। चुनाव में राजीव गाँधी का हाथ मजबूत कर देश ने उसी प्रकार का आचरण किया, जिस प्रकार एक सहायतापेक्षी पिता अपने जवान बेटे को परिवार की सारी बागडोर सौंप देता है।

प्रधानमंत्री के रूप मे राजीव गाँधी का जीवन 

31 दिसंबर, 1984 को राजीव गाँधी ने नई लोकसभा के सदस्यों के नेता के रूप में नए सिरे से प्रधानमंत्री का पद सँभाला। अगली शताब्दी और भावी भारत के बारे हमारे युव प्रधानमंत्री के मन में स्पष्ट कल्पनाएँ थी। वे भारत को कंप्युटर-युग में ले जाना चाहते थे और संसार के अन्य देशों के बीच इस देश की विशिष्ट छवि बनाने को वचनबद्ध थे।उन्होंने शिक्षा की नई नीति की प्रस्तावना की, नए भारत के निर्माण का संकल्प किया।

अपने प्रधानमंत्रित्व-काल के एक वर्ष के भीतर ही उन्होंने अनेक उल्लेखनीय कार्य किए। बेतरह उलझी हुई पंजाब-समस्या का समाधान उन्होंने 24 जुलाई, 1985 को 5 बजकर 45 मिनट पर शिरोमणि अकालीदल के अध्यक्ष सन्त हरचंद सिंह लोगोंवाल के साथ एक सम्मानपूर्ण समझौते के द्वारा किया। फिर, उसके बाद उन्होंने पंजाब में लोकसभा और विधानसभा का चुनाव कराकर जनतंत्र की नींव मजबूत की।

इसके बाद उन्होंने आसाम की गुत्थियों को सुलझाया और वहाँ 16 दिसंबर, 1985 में चुनाव कराया। अपनेप्रधानमंत्रित्व-काल के एक वर्ष के अंदर ही उन्होंने चार बार विदेश की यात्राएँ कीं। जिन देशों की उन्होंने यात्राएँ की, उनमें प्रमुख देश है- रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, अल्जीरिया मिस्त्र, स्विट्जरलैंड आदि।/

उन्होंने 7 सितंबर, 1985 को ढाका (बांग्लादेश) में आयोजित दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग (सार्क) के सात देशों के द्विदिवसीय शिखर-सम्मेलन में भारत का प्रभावकारी प्रतिनिधित्व किया। इन यात्राओं के द्वारा उन्होंने विभिन्न देशों के साथ भारत के सुंदरता संबंध बनाने की दिशा में श्लाघ्य कार्य किए।

24 अक्टूबर, 1985 को उन्होंने राष्ट्रसंघ की चालीसवीं वर्षगाँठ के अवसर पर भाषण किया। उनके विचारगर्भ भाषण को सुनकर संसार के अनेक नेताओं ने एक स्वर से कहा की राजीव गाँधी नेनिःसंदेह अपने को तीसरे विश्व के नेता के रूप में स्थापित कर लिया है। लेकिन, 1989 ई० के अंत में सपन्न नौवीं लोकसभा के आम चुनाव में राजीव गाँधी का राष्ट्रीय काँग्रेस दल बहुमत नहीं प्राप्त कर सका। इसके बाद राजीव गाँधी ने 1 नवंबर, 1989 को प्रधानमंत्री-पद से त्यागपत्र दे दिया और वे संसद में विपक्ष के सर्वसम्मत नेता बन गए।

मगर विधि की विडम्बना देखिए की जनता से उनकी करीबी ही जान ले बैठी। 21 मई, 1991 को मद्रास से 50 किलोमीटर दूर स्थित श्री पेरुमबुदूर में एक चुनाव सभा में लोगों से हार लेते समय श्री गाँधी एक भयंकर बम विस्फोट का शिकार हो गए।

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