Rule of Law का मतलब कानून का शासन होता है जिसका तात्पर्य यह है कि कानून सर्वोपरि है और सभी लोगों पर एक समान कानून लागू होती है। यहाँ तक कि सरकार भी कानून के दायरे में ही रहकर काम कर सकती है। कोई भी व्यक्ति या संस्था कानून से ऊपर नहीं है; बल्कि संविधान सर्वोपरि है।
इसे कानून का शासन, विधि का शासन या कानून का राज कई नामों से लोग जानते हैं। और कई बार लोग इसका अलग-अलग अर्थ निकाल लेते हैं। इसी से विश्व के बहुत प्रसिद्ध संविधानविद् ने इस जुमले को एक बिगड़ैल घोड़ा (an unruly horse) कहा है। ठीक-ठीक इसकी व्याख्या करना बहुत आसान नहीं है फिर भी इस सिद्धान्त के कुछ लक्षणों पर चर्चा की जा सकती है।
कानून का शासन का महत्व
किसी भी देश में लोगों की भलाई के लिए कानून का शासन काफ़ी महत्वपूर्ण है। विधि का शासन होने से सभी लोग कानून के अंदर कार्य करते हैं और समूचे जनमानस की भलाई होती है।
जब जॉन एडम ने कहा था कि कोई सरकार कानून से बँधी होनी चाहिए किसी व्यक्ति से नहीं, इसका तात्पर्य है कि कोई भी कानून किसी वर्ग या व्यक्ति विशेष के प्रति दुर्भावना या पक्षपात से नहीं बनाया गया है।
कानून सार्थक, अर्थवान और समाज के सभी लोगों के लिए लाभकारी होना चाहिए परन्तु किसी भी एक वर्ग या एक व्यक्ति के प्रति प्रतिशोध के रूप में न बनाया गया हो। भारत में बहुत से कानून ब्रिटिश शासन काल में उपर्युक्त कसौटी पर खरे नहीं उतरते । मुक्त भारत में भी अनेक बार कुछ कानूनों को लेकर न्यायालयों के हस्तक्षेप की माँग की जाती रही है।
कानून का राज समाजवादी जनतान्त्रिक समाज की धुरी है। ऐसा कानून निरंकुश या पक्षपाती नहीं हो सकता। भारत में अभी भी अनेक कानून लागू हैं जो किसी विदेशी शासन व्यवस्था में भारतीयों को गुलाम बनाने के लिए कानून की पुस्तिका में रखे गये। आजादी के 75 वर्ष बाद भी अभी तक इन कानूनों में बदलाव नहीं हुआ है यद्यपि इसकी माँग बराबर उठती रही है।
अनेक बार ऐसे विवाद खड़े हो जाते हैं जिनकी व्याख्या अलग-अलग लोग अपने-अपने तरीके से करते हैं। किसी फिल्म का प्रदर्शन क्यों रोका जाये? क्या यह अभिव्यक्ति को स्वतन्त्रता पर अंकुश नहीं है? किसी पुस्तक पर ‘बैन’ क्यों लगाना चाहिए? प्राय: ऐसे मसलों पर विभिन्न न्यायालयों की अलग-अलग राय देखने को मिलती है? धार्मिक स्वतन्त्रता का क्या यह अर्थ है कि आप अपने घर में होने वाले धार्मिक कार्यक्रम में लाउडस्पीकर लगाकर दूसरे की नींद खराब करें या विद्यार्थियों को परीक्षा के दिनों में पढ़ने में बाधा पहुँचायें? क्या रात्रि को दस बजे के बाद दिवाली पर पटाखे छोड़ना गैर-कानूनी होना चाहिए?
असल में कानून का तात्पर्य ‘सर्वजन हिताय‘ भी होता है। जो बाद में समाज के ज्यादातर लोगों के लिए लाभकारी होती है उसे कानून सम्मत माना जा सकता है। परन्तु कानून का राज्य और कानून से राज्य में अन्तर है। ब्रिटिश शासन काल में कानून का राज्य था, परन्तु वह कानून का राज्य न था। इसी से स्वतन्त्रता सेनानियों का उत्पीड़न सम्भव हुआ।
भारत में बढ़ते साम्प्रदायिक दंगों, आतंकवादी गतिविधियों और विघटनकारी तत्वों के कारण अनेक ऐसे कानून बने हैं जो ऊपरी दृष्टि से मानवाधिकारों का हनन लगे, परन्तु ऐसे कानून एक शान्त, समृद्ध और सुशील व सुशासन के राज्य के लिए आवश्यक हैं। भारत में अनेक लोगों के बीच सद्भाव के लिए कानून के राज्य की महती आवश्यकता है। इसकी पहली शुरुआत विद्यालयों से की जा सकती है ताकि भावी नागरिक कानून के पालन के पक्षधर हो जायें। हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने देश में कानून राज्य की स्थापना में अहम भूमिका निभायी है। उसके बहुत से आदेश इसी दिशा में संकेत करते हैं।
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