पश्चिमीकरण का मतलब है पश्चिमी देशों की संस्कृति और रहन-सहन की तरह अपने जीवन में बदलाव कर लेना। अक्सर शिक्षाविदों को आपने पाश्चात्यीकरण के प्रभाव के बारे में बात करते हुए सुना होगा कि westernisation से किस तरह हमारी अपनी संस्कृति विलुप्त होती जा रही है, क्योंकि सभी लोग पश्चिमी देशों की तरह बनना चाह रहे हैं। और आज हम पश्चिमीकरण की परिभाषा, अवधारणा, स्वरूप, विशेषताएँ और भारतीय संस्कृति पर प्रभावों के बारे में विस्तार से बात करने वाले हैं कि पश्चिमीकरण क्या है?
पश्चिमीकरण क्या है?
ब्रिटिश शासन के फलस्वरूप, भारतीय समाज एवं संस्कृति में होने वाले परिवर्तनों को पश्चिमीकरण कहा गया है। इसमें प्रौद्योगिकी, संस्थाओं, विचारधारा एवं मूल्यों आदि में परिवर्तन को शामिल किया जाता है। इस अवधारणा में ब्रिटेन, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की तरह बनने की बात भी सम्मिलित है।
पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में, उन भौतिक मूल्यों का विकास होता है, जो पश्चिमी दुनिया में प्रस्फुटित होते हैं। पश्चिमीकरण के लिए, पश्चिमी दुनिया से सम्पर्क आवश्यक है। और पश्चिमीकरण एक तटस्थ प्रक्रिया है, जिससे किसी संस्कृति के अच्छे या बुरे होने का संकेत नहीं मिलता है।
भारतीय संस्कृति पर पश्चिमीकरण के प्रभाव
भारतीय संस्कृति में पश्चिमीकरण के प्रभावों को कई अलग-अलग स्वरूपों में देखा जा सकता है, जैसे सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक और प्रशासनिक। यदि आप अपने आस-पास ही देखें, तो कई मायनों में आज हम पश्चिमी देशों की तरह ही जीवन-यापन कर रहे हैं।
पहनावे से लेकर सामाजिक परिवेश और भौगोलिक विकास, अलग-अलग स्वरूपों में हम अन्य देशों की नकल कर रहे हैं, और इससे हम अपनी मूल संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। अब ऐसा भी नहीं है कि हमें परिवर्तन नहीं अपनाना चाहिए, लेकिन उसकी भी एक सीमा होनी चाहिए जहाँ हम आधुनिक होने के साथ ही अपनी संस्कृति से जुड़े भी रह सकें।
पश्चिमीकरण के सामाजिक प्रभाव
- पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति के सम्पर्क से भारत में जाति प्रथा के अन्य बंधन शिथिल हुए तथा अस्पृश्यता के उन्मूलन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव रीति-रिवाजों, खान-पान, रहन-सहन, वेश-भूषा आदि पर भी पड़ा। इन सभी में पश्चिमी तत्त्वों का प्रवेश हुआ।
- पश्चिमीकरण के कारण ख़ासकर महिलाओं की स्थिति में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया। शिक्षा और संपत्ति का अधिकार उन्हें प्राप्त हुआ।
- पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से संयुक्त परिवार तेजी से एकाकी परिवार में परिवर्तित होते चले गये।
- शिक्षा का प्रसार तेजी से हुआ। शिक्षा सभी को सुलभ हुई। शिक्षा के विकास ने विकास की संभावनाओं को रेखांकित किया।
- इसी के साथ सुधारवादी आंदोलनों के माध्यम से सती, बाल-हत्या, बाल-विवाह, दहेज, बलि आदि कुरीतियों का उन्मूलन संभव हुआ।
पाश्चात्यीकरण के राजनीतिक प्रभाव
राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता जैसे महान विचार भारत में, पश्चिमीकरण के माध्यम से आये। इसने भारत में राजनीतिक और राष्ट्रीय चेतना को जन्म दिया। स्वतंत्रता आंदोलन को इससे प्रोत्साहन मिला।
समानता और लोकतंत्र की अवधारणा ने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को समृद्ध बनाया। समानता की मांग, राजनीतिक स्तर पर ही नहीं बल्कि विभिन्न सामाजिक स्तरों पर भी की जाने लगी।
धार्मिक प्रभाव
पश्चिमीकरण ने धर्म में सुधार का मार्ग प्रशस्त किया। धार्मिक आडंबर अब आकर्षणहीन लगने लगे। सीधे व सरल उपासना पद्धति की ओर लोगों का झुकाव हुआ।
धार्मिक सुधार आंदोलन के माध्यम से धर्म के नाम पर हो रहे पाखंडों के उन्मूलन का प्रयास आरंभ हुआ। इसमें राजा राममोहन राय, दयानन्द सरस्वती, विवेकानन्द आदि जैसे महापुरुषों ने अपना योगदान दिया।
पश्चिमीकरण के आर्थिक प्रभाव
उन शहरों में जहाँ अँगरेजी शासन की गतिविधियाँ व्यापक थी, वाणिज्य-व्यापार का विस्तार तेजी से हुआ। भू-राजस्व के क्षेत्र में स्थाई बन्दोबस्ती, रैयतवाड़ी तथा महलवाड़ी व्यवस्था को लागू किया गया। राजस्व का हिसाब रखने के लिए भूमि-कर मानचित्र तैयार किये गये। बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना हुई। सामंतवाद का अन्त तथा पूँजीवाद का प्रारंभ हुआ।
प्रशासनिक प्रभाव
सेना, पुलिस और नागरिक प्रशासन का आधुनिकीकरण किया गया। सेना और पुलिस का गठन पश्चिमी सिद्धान्तों के आधार पर किया गया। नागरिक सेवा को व्यापक बनाया गया अर्थात् उसके अधिकार क्षेत्र में वृद्धि की गयी। जीवन का प्रत्येक पहलू प्रशासन के अन्तर्गत आ गया।
इसे भी पढ़ें: Honesty is the Best Policy in Hindi
Best notes