परिश्रम का महत्त्व पर निबंध (जहाँ चाह, वहाँ राह) मन के हारे हार है, मन के जीते जीत!

कोई भी मनुष्य हारता तभी है, जब उसका मन हार जाता है, जब उसका आत्मविश्वास डगमगा जाता है। हार या पराजय का मनोविज्ञान यही है। निराशा और भय, हार जाने का डर, मार्ग के विघ्न और बाधाओं का खौफ ही मनुष्य को पराजित करता है। ‘परिश्रम का महत्व पर निबंध‘ के माध्यम से आज हम मन की शक्ति और Importance of Hard Work in Hindi के बारे में बात करेंगे।

श्रम संसार में सफलता प्राप्त करने का महत्त्वपूर्ण साधन है। परिश्रम करके हम जीवन की ऊँची-से-ऊँची आकांक्षा पूरी करने का प्रयास करते हैं। संसार कर्म क्षेत्र है, अतः कर्म करना ही हम सबका धर्म है । किसी भी कार्य में हमें सफलता तब मिलती है, जब हम परिश्रम करते हैं।

परिश्रम का महत्व पर निबंध

श्रम ही जीवन को गति प्रदान करता है। यदि हम श्रम की उपेक्षा करते हैं, तो हमारे जीवन की गति रुक जाती है। अकर्मण्यता की स्थिरता हमें ऐसी मजबूती से घेर लेती है कि उसके घेरे से बाहर निकलना कठिन हो जाता है। परिश्रमी व्यक्ति सभी प्रकार की कठिनाइयों से जूझ कर स्वतंत्र वातावरण में साँस ले सकता है।

परिश्रमी व्यक्ति ही जीवन में लक्ष्मी का कृपा पात्र बनता है। वह भाग्य का सहारा छोड़ कर यथाशक्ति पुरुषार्थ करता है। प्रयत्न करने पर भी परिश्रमी व्यक्ति को यदि सफलता नहीं मिलती है तो वह निराश नहीं होता। वह यह जानने के लिए सचेष्ट रहता है कि कार्य में सफलता क्यों नहीं मिली, क्योंकि वह जानता है कि बिना परिश्रम के केवल इच्छा मात्र से सफलता नहीं मिलती।

मोती ढूँढने वाला गोताखोर सागर की गहराइयों और लहरों से डर जाय, तो वह कभी मोती नहीं पा सकता। मोती – चाहत की मंजिल, उद्देश्य का साफल्य – तो गहरे अतल में छिपा होता है – उसे खोजने, ढूँढने में प्राणों को संकट में डालना ही पड़ता है। साहस और आत्मविश्वास – यही दो चीजें है – जो मनुष्य को अपनी मंजिल पर पहुंचाते हैं। आत्मविश्वास के साथ परिश्रम ही जीवन को सफल बनाती है।

जहाँ चाह, वहाँ राह

असफलता की कोख से ही सफलता का जन्म होता है। मनुष्य प्रयास करता है, असफल होता है। जो व्यक्ति, असफलता को अपनी नियति नहीं मानते, वे हार कर पुनः दोगुने-चौगुने आत्मविश्वास एवं उत्साह से कर्म में प्रवृत्त होते हैं और अन्त में अपना लक्ष्य पाकर ही दम लेते हैं।

इस कहावत में बहुत दम है – “Where there is will, there is a way” अर्थात् जहाँ चाह, वहाँ राह। जहाँ दृढ़ इच्छा-शक्ति होती है सच्चा संकल्प होता है, घना आत्मविश्वास होता है, वहाँ सफलता की राह खुद-ब-खुद बन जाती है।

मनुष्य को जीवन में कभी निराश नहीं होना चाहिए। यह पंक्ति से आपने सुनी ही होगी – ‘नर हो, न निराश करो मन को।‘ इस संसार में मनुष्य को आघात लगता ही रहता है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि वह हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाय। जीवन में निराशावादी दृष्टिकोण का परित्याग और आशावादी दृष्टिकोण का स्वीकार ही मनुष्य को यही आत्मविश्वास उसे सफलता और यश के उच्च शिखर पर आसीन करता है।

Importance of Hard Work in Hindi

संसार में हमें प्रत्येक पथ पर संघर्ष करके अपना मार्ग स्वयं बनाना पड़ता है। यदि हम परिश्रम करते हैं, तब जीवन के संघर्ष में हमें विजय मिल पाती है। हम जितने भी शक्तिशाली और साधन-संपन्न हों पर यदि श्रम करने से जी चुराते हैं, तो हमारी शक्ति और साधन सम्पन्नता अकेले हमें लक्ष्य की ओर नहीं ले जा सकती।

श्रम का असली रूप तो सारी प्रकृति में देखने को मिलता है । पशु-पक्षी, जीव-जंतु सभी निरंतर श्रम में लगे रहते हैं। रंगीन तितलियाँ धूप में उड़ती फिरती हैं और सुगंधित सुमनों के सौरभ का पान करके सुखी होती हैं। मधुमक्खियों को फूलों के कोष से मधु निकाल कर संचित करने में कम श्रम नहीं करना पड़ता।

यदि चींटी की भाँति हम भी अपने जीवन में श्रम के महत्त्व को समझें तो कर्म में हमारी आस्था दृढ़ होती है। कर्म से तो मनुष्य को कभी छुटकारा मिलने वाला नहीं। फिर जब कर्म करना ही है, तो फिर श्रम से उस पर पूर्ण अधिकार क्यों न किया जाए। एक महापुरुष का कहना है कि मोची होना बुरा नहीं, मोची होकर खराब जूता सीना बुरा है।

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जीवन में श्रम का महत्व पर निबंध

हमारे समाज में बहुत से लोग भाग्यवादी होते हैं। ऐसे व्यक्ति समाज की प्रगति में बाधक होते हैं। आज तक किसी भाग्यवादी ने संसार में कोई महान कार्य नहीं किया। बड़ी-बड़ी खोजें, बड़े-बड़े आविष्कार और बड़े-बड़े निर्माण श्रम के द्वारा ही संपन्न हो सके हैं।

हमारे साधन और हमारी प्रतिभा हमें केवल उत्प्रेरित करते हैं और हमारा पथ प्रदर्शन करते हैं, पर लक्ष्य तक हम श्रम से ही पहुँचते हैं। श्रम करके ही प्रतिभासंपन्न कलाकारों ने अपने छेनी हथोड़े के द्वारा अजंता-एलोरा की बनाई भव्य गुफाओं को मूर्तिमान किया।

सामान्य व्यक्तियों ने अपने श्रम से बड़े-बड़े साम्राज्य खड़े कर दिए हैं। बाबर, शेरशाह, नेपोलियन सभी आरंभ में सामान्य व्यक्ति थे पर अपने श्रम से उन्होंने इतिहास में अपने नाम को अमर बना दिया । अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए, परिश्रम से नौकाओं का संचालन करके कोलंबस ने अमरीका को खोज निकाला।

श्रम-साधना करने वालों को यश भी प्राप्त होता है और वैभव भी। एक गरीब परिवार का बालक श्रम से अध्ययन करता है। उच्चशिक्षा प्राप्त करके वह किसी उच्च पद पर आसीन होता है और अपने परिवार की स्थिति ही बदल देता है। हमारे अनेक साहित्यकार ऐसे हैं, जिन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा नहीं मिली । श्रम से उन्होंने अध्ययन किया। अपनी शक्तियों को विकसित किया और सफलता से उच्च कोटि के साहित्य का सृजन किया । अनेक व्यापारी थोड़ी-सी संपत्ति से अपना व्यापार आरंभ करते हैं और दो-चार वर्षों में वे धनवान बन जाते हैं।

जब हम अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए श्रम करते हैं तो हमारे मन को अलौकिक आनंद मिलता है। अंतःकरण का सारा कलुष घुल जाता है और पूर्ण संतोष का अनुभव होता है।

हम उस किसान के जीवन को देखें जो दिन भर परिश्रम से अपना खेत जोतता है और सायंकाल अपनी झोपड़ी में आकर आनंद मग्न कोई ग्राम-गीत अलापता है उस समय उसके स्वरों में उस स्वर्गीय संगीत की सृष्टि होती है। जब कोई विद्यार्थी दिनभर परिश्रम से अध्ययन करता है तब वह सायंकाल खेलने में आनंद का अनुभव करता है।

परिश्रम करने के फ़ायदे 

  • शारीरिक श्रम से मनुष्य को संतोष तो मिलता ही है उसका शरीर भी स्वस्थ रहता है।
  • श्रम से उसकी मांसपेशियाँ सुदृढ़ हो जाती हैं ।
  • जो लोग श्रम नहीं करते आलसी बने पड़े रहते हैं, उनका तो भोजन भी नहीं पचता और उनके शरीर को अनेकों व्याधियाँ घेरे रहती हैं।
  • शारीरिक श्रम हर एक व्यक्ति के लिए आवश्यक है।
  • शारीरिक श्रम करने वाले लोग दीर्घजीवी होते हैं।
  • श्रम के साथ-साथ ही मानसिक श्रम करने वाले का ही बौद्धिक विकास होता है। वह गंभीर-से-गंभीर तथ्य सहज ही ग्रहण कर लेता है।
  • विषम परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाने पर भी घबराता नहीं बल्कि साहस से उनका सामना कर लेता है। वह हर एक समस्या का आसानी से समाधान खोज लेता है।
  • मानसिक श्रम के महत्व को समझ कर हमारे ऋषि-मुनि चिंतन में लीन रहते थे और चिन्तन के लिए लोगों को उत्साहित करते थे। हमारा उपनिषद् साहित्य हमारे मानसिक श्रम का ही परिणाम है।

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