भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत और आधुनिक भारत का जनक राजा राम मोहन राय को कहा जाता है. धर्मगत रुढियों, अंधविश्वासों तथा सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने के लिएइनका राजा राम मोहन राय द्वारा विभिन्न सामाजिक और धार्मिक आन्दोलन चलाये गए. उन आन्दोलनों में राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित ‘ब्रह्म समाज’ अग्रणीय स्थान रखता है. तो आज हम आपसे राजा राममोहन राय का जीवन परिचय और Raja Rammohan Roy ke Vichar के बारे में बात करेंगे.
राममोहन राय को आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है. क्योंकि उन्होंने भारतीय धार्मिक अंधविश्वासों और सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करके भारतीय सामाजिक जीवन को नई दिशा प्रदान की है. ‘ब्रह्म समाज’ की स्थापन राजा राममोहन राय ने की है. ब्रह्म समाज भारत में एक सामाजिक-धार्मिक आन्दोलन था, जिसने बंगाल के पुनर्जागरण युग को प्रभावित किया.
राजा राममोहन राय कौन थे?
आधुनिक भारत का जनक और भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत राजा राममोहन राय थे. इनके पिता का नाम रमाकांत राय तथा माता का नाम तारिणी देवी था. इनका पूरा परिवार सुसभ्य धर्मनिष्ठ और ईश्वर भक्त था. इनके पिता मूर्तिपूजक थे, परन्तु राममोहन इसके घोर विरोधी थे. इन्होनें ब्रह्म समाज की स्थापना की थी. भारतीय भाषीय प्रेस के प्रवर्तक, जनजागरण और सामाजिक सुधार आन्दोलन के प्रणेता तथा बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह थे.
राजा राममोहन राय का जीवन परिचय
इनका का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल के हुगली जिले के राधानगर ग्राम में हुआ था. राममोहन राय के परम पितामह कृष्णचन्द्र बनर्जी बंगाल के नवाब के यहाँ उच्च पद पर कार्यरत थे. उनकी सेवाओं से प्रभावित होकर नवाब ने उन्हें ‘राय-राय’ की सम्मानार्थ उपाधि से विभूषित किया. बाद में इस ‘राय-राय’ का संक्षिप्त रूप ‘राय’ इस परिवार के साथ जुड़ गया और इसने उनके जातिगत विभेद ‘बनर्जी’ का स्थान ले लिया .
राममोहन राय के पिताजी का नाम रमाकांत राय एवं माताजी का नाम तारिणी देवी था. उनके पिता रमाकांत राय परम्परावादी मूर्तिपूजक थे. उनका पूरा परिवार सुसभ्य तथा धर्मनिष्ठ और ईश्वर भक्त था. लेकिन राममोहन राय पर वैष्णव भक्ति के वे धार्मिक संस्कार नहीं पड़े,जिनकी आशा राममोहन के परिवार वाले करते थे.
राय बाल्यकाल से ही प्रतिभा के धनी थे और उनके पिता ने अपने पुत्र के लिए शिक्षा का श्रेष्ठ प्रबंध किया था. पंद्रह वर्ष की आयु में उन्होंने बंगला, फारसी, अरबी, हिंदी, संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया. 24 वर्ष की आयु में उन्होंने अंग्रेजी भाषा का अध्ययन शुरू और 40 वर्ष की आयु तक पहुँचते-पहुँचते इस भाषा का ज्ञान पूरी तरह से प्राप्त कर लिया. वे संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड पंडित थे और अरबी तथा फारसी के अधिकार पूर्ण ज्ञान के कारण उन्हें मौलवी की उपाधि प्रदान की गयी थी.
राजा राममोहन राय के विचार
आधुनिक भारत के निर्माण और भारतीय पुनर्जागरण में राजा राममोहन राय का मुख्य योगदान था. राजा राममोहन राय को भारतीय समाज के दिशा प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है. राममोहन राय ने भारतीय समाज के लिए कई नियम बनाएं हैं. जैसे धर्मगत रुढियों, अंधविश्वासों तथा सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने के लिए विभिन्न धार्मिक और सामाजिक आन्दोलन चलाएं. राजा राममोहन राय के कई राजनीतिक, धार्मिक. सामाजिक, आर्थिक एवं शिक्षा सम्बन्धी विचार थे.
राजा राममोहन राय के राजनीतिक विचार
इनका कार्यक्षेत्र मुख्यतया धार्मिक और सामाजिक जीवन था, किन्तु उन्होंने राजनीतिक सन्दर्भों से कभी भी अपने आपको अलग नहीं रखा. उन्हें देश-विदेश की राजनीति, विशेषकर भारत और इंग्लैण्ड की राजनीति में गहरी रूचि और पूर्ण ज्ञान था.राममोहन राय के पूर्व सम्पूर्ण देश की तो क्या बात, कलकत्ता जैसे महानगर में भी कोई राजनीतिक जीवन नहीं था.
जनता में अपने नागरिक अधिकारों के प्रति कोई विचार नहीं था. और विदेशी हुकूमत के सामने अपनी शिकायतें रखने की बात कोई सोचता भी नहीं था. ऐसे में राजा राममोहन ने देश की राजनीति के विभिन्न पक्षों पर ध्यान दिया. राजा राममोहन राय ने समय-समय पर राजनीतिक विचार प्रकट किए, उनसे हमें उनके राजनीतिक चिंतन का बोध होता है. उनके राजनीतिक विचार कुछ इस प्रकार हैं,
- वैयक्तिक एवं राष्ट्रीय स्वतंत्रता का प्रतिपादन: राममोहन राय का मानना था कि व्यक्ति को स्वतंत्रता प्रदान की जानी चाहिए. जिससे व्यक्ति स्वतंत्र रूप से अपना जीवन जी सकें.
- प्रेस की स्वतंत्रता: लोगों को अपना विचार अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए. जो व्यक्ति बोलने में असमर्थ हो, वह अपनी बात प्रेस के द्वारा सकता है.
- न्यायिक व्यवस्था का स्वरूप
- प्रशासनिक व्यवस्था का स्वरूप
- मानवतावाद और विश्व-बंधुत्व
- राजनीति और कानून के माध्यम से समाज सुधार
राजा राममोहन राय के धार्मिक विचार
धार्मिक और सामाजिक पुनर्जागरण के संदेशवाहक राममोहन राय थे. धर्म के प्रति उनके मन में गहरी जिज्ञासा थी और इसी जिज्ञासा के कारण उन्होंने भारत ही नहीं बल्कि पुरे विश्व के सभी धर्मों का गहरा अध्ययन किया था.वाराणसी में उन्होंने संस्कृत में भारत के प्राचीन धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया था. उन्हें अरबी और फारसी का भी पूर्ण ज्ञान था. उनके प्रमुख धार्मिक विचार इस प्रकार हैं,
- एकेश्वरवाद का प्रतिपादन और बहुदेवाद का खंडन: राममोहन राय ने एकेश्वरवाद का प्रतिपादन किया और हिन्दुओं के बहुदेववादी विचारों का खंडन किया.
- मूर्ति- पूजा और बलि प्रथा का विरोध: राममोहन राय ने मूर्तिपूजा और बलि प्रथा का खुलकर विरोध किया था.
- उनका कहना था कि मूर्तिपूजा करने से ईश्वर का दर्शन नहीं होता बल्कि श्रद्धापूर्वक पूजा करने ईश्वर का दर्शन होता है.
- बलि देकर ईश्वर को खुश नहीं किजा जा सकता है, इसलिए उन्होंने बलि प्रथा का विरोश किया.
- धार्मिक सहिष्णुत्ता का प्रतिपादन: वे सहिष्णुत्ता को सर्वाधिक महत्व देते थे. सहिष्णुत्ता और शालीनता उनके जीवन और स्वभाव का अनिवार्य अंग था.
- किसी धर्म या संप्रदाय विशेष अथवा उनके भक्त के प्रति घृणा भाव के प्रबल विरोधी थे.
राजा राममोहन राय के सामाजिक विचार:
रुढ़िवादी, धर्मगत अंधविश्वासों और सामाजिक कुरीतियों से भारतीय समाज ग्रस्त था. स्त्री जाति को हीन भावना से देखा जाता था. सामाजिक जीवन में हीनता, रुढिवादिता और सामाजिक कुरीतियों समाहित थी. इस अन्धकार को दूर करने के लिए राजा राममोहन राय ने कई विचार दिए थे
- परम्परावादी का विरोध
- सती प्रथा का विरोध
- नारी अधिकार, नारी शिक्षा और नारी उद्धार
- जाति-प्रथा और जातिगत संकीर्णताओं का विरोध किया था.
आर्थिक विचार: Raja Rammohan Roy ke Vichar
राय ने आर्थिक क्षेत्र में भी अपना विचार दिया था. उन्होंने आर्थिक सिद्धांतों का प्रतिपादन नहीं किया, लेकिन देश की आर्थिक समस्याओं के प्रति वे निश्चित रूप से जागरूक थे. आर्थिक क्षेत्र में उनके विचार तीन श्रेणी में बंटे थे.
- प्रथम- भारत की साधारण जनता, किसानों और मजदूरों की जमींदारों-जागीरदारों और शासन के शोषण से रक्षा होनी चाहिए.
- द्वितीय- देश के नागरिक प्रशासन और सैनिक व्यय में कमी होनी चाहिए, जिससे सरकार को अधिक कर लगाने की जरुरत न पड़ें.
- तृतीय- देश से धन की निकासी को रोका जाना चाहिए और आर्थिक विकास के शासन द्वारा सभी संभव कदम उठाए जाने चाहिए.
राजा राममोहन राय के शिक्षा सम्बन्धी विचार
भारतीय पुनर्जागरण में राजा राममोहन राय के योगदान में एक योगदान शिक्षा सम्बन्धी विचार भी था. उन्होंने शिक्षा पर अधिक बल दिया, क्योंकि वे स्वंय बंगला, फारसी, अरबी, संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी इन सभी भाषाओँ के विद्वान थे. वे एक शिक्षाविद् थे और शिक्षा के प्रचार-प्रसार में उनकी गहरी रूचि थी.
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