शादी-विवाह के समय आपने ‘दहेज’ शब्द तो ज़रूर सुना होगा। लेकिन क्या आपको पता है कि दहेज क्या होता है? अंग्रेजी में Dowry System से जाना जाने वाला दहेज प्रथा आज के समाज की एक काफ़ी बड़ी समस्या है। और आज हम दहेज प्रथा पर निबंध के रूप में विस्तार से बात करेंगे कि Dahej Kya Hota Hai? इसके कारण क्या हैं, अगर इसका समाधान करना है तो हमें क्या करना होगा?
दहेज क्या होता है?
लड़की के घर वालों और नाते-रिश्तेदारों की ओर से शादी के समय, शादी से पहले और शादी के बाद जो उपहार दिए जाते हैं, वे सब दहेज हैं। पुराने जमाने में बेटी के विवाह को कन्यादान के रूप में माना जाता था। बेटी माँ-बाप उसे घर-गृहस्थी की जरुरत की सारी चीजों देकर विदा करते थे, ताकि नई गृहस्थी बसाने में बेटी को कई परेशानी न आए।
यह दान अपनी इच्छा से अपनी सामर्थ्य के अनुसार दिया जाता था। धीरे-धीरे यह एक परम्परा सी बन गई, और आज के समय में तो लोग पैसे के भी माँग करते हैं। वर पक्ष के लोग इसे अपना अधिकार समझने लगे। दान की पुरानी परम्परा ने घिनौनी दहेज परम्परा का रूप ले लिया। समाज के लिए यह एक अभिशाप बन गया।
दहेज प्रथा के कारण
पहले दहेज प्रथा कुछ विशेष जातियों तथा वर्गों तक ही सीमित थी। अब तो सभी वर्गों तथा जातियों में यह कुप्रथा सामान रूप से व्याप्त है। दहेज प्रथा के इतने विस्तार तथा फैलाव के कई कारण हैं।
- आजकल शादी में धन लेना सामाजिक व पारिवारिक प्रतिष्ठा का आधार बन गया है। रंगीन टीवी, स्कूटर, फ्रिज, कार प्रतिष्ठा के मापदंड बन गए हैं। एक मध्यम वर्ग के परिवार के व्यक्ति के लिए ये सभी सामान जुटा पाना आसान काम नहीं है। इसलिए लड़के वाले लड़की वालों से माँगते हैं।
- हमारा समाज अनेक जातियों तथा उपजातियों में विभाजित है। सामान्यतः लड़की का विवाह अपनी ही जाति में किया जाता है। इससे उपयुक्त वर मिलने में कठिनाई होती है। यही कारण है कि वार पक्ष की ओर से अधिक दहेज माँगा जाता है।
- दहेज की कुप्रथा को बढ़ाने में दिखावे का भी बहुत बड़ा योगदान है। झूठी शान के कारण भी लोग दहेज की माँग करते हैं। दूसरों को बताते हैं कि उनके लड़के को इतना अधिक दहेज मिला है।
- यदि किसी परिवार को दहेज नहीं मिला है तो उसके परिवार वाले ही तरह-तरह की बातें बनाते हैं। लोग कहते हैं कि लड़के में कोई कमी होगी, जिसके कारण उसे दहेज नहीं मिला। कभी वधू पक्ष भी दिखाने के लिए अधिक दहेज देता है।
- वर्तमान युग में शिक्षा बहुत महँगी है, जिसके कारण माता-पिता को पुत्र की शिक्षा पर अपनी सामर्थ्य से अधिक धन खर्च करना पड़ता है। इस धन की पूर्ति वह पुत्र के विवाह के अवसर लड़के समाज में प्रतिष्ठा और अच्छी नौकरी प्राप्त करते हैं। इनकी संख्या कम ही है। शिक्षित वर के लिए दहेज की माँग अधिक बढ़ती जा रही है।
Dowry System Essay in Hindi
दहेज प्रथा ने हमारे सम्पूर्ण समाज को पथ-भ्रष्ट तथा स्वार्थी बना दिया है। लड़के को लोग बैंक का चेक समझते हैं। यदि लड़का अच्छे पद पर नियुक्त हो या डॉक्टर, वकील, इंजीनियर आदि हो तो दहेज की माँग और भी बढ़ जाती है। मज़े की बात है कि दहेज लेने वाले बड़े-बड़े लोग दहेज की निंदा करते हैं। दहेज प्रथा की हानियाँ हैं।
- पुत्र के विवाह के अवसर पर घर वाले नियम-कानून सब भूल जाते हैं। अधिक-से-अधिक दहेज की माँग करते हैं। कभी-कभी तो कुछ लालची लोग बारात तक वापस ले जाने की धमकी दे देते हैं।
- दहेज की माँग को पूरा करने के लिए कन्या के पिता को कर्ज़ लेना पड़ता है। उस ऋण को चुकाने में ही उसकी जिंदगी बीत जाती है।
- दहेज न देने के कारण कभी-कभी लड़की की शादी अधिक उम्र के लड़के के साथ करनी पड़ती है, क्योंकि उसको उपयुक्त वर नहीं मिल पाता।
- इच्छानुसार दहेज न मिलने के कारण ससुराल में लड़कियों को परेशान किया जाता है। कभी-कभी लड़कियाँ आत्महत्या कर लेती हैं।
- कभी-कभी दहेज न होने के कारण लड़कियों का विवाह समय से नहीं हो पाता। इससे माता-पिता पर निर्भर रहने वाली लड़कियाँ परेशान रहती हैं, जिसके कारण लड़कियाँ आत्महत्या कर लेती हैं।
- दहेज न दे पाने के कारण निर्माण परिवार की लड़कियों को उपयुक्त वर नहीं मिल पाते। आर्थिक दृष्टि से कमजोर परिवारों की जागरूक लड़कियाँ कम पढ़े-लिखे अथवा सामान्य स्तरीय लड़कों से विवाह कर लेने की अपेक्षा अविवाहित रहना अधिक पसंद करती हैं। अतः अनेक युवतियाँ अविवाहित रह जाती हैं।
दहेज प्रथा को कैसे रोका जाए?
वैसे तो सरकार दहेज प्रथा को रोकने के लिए बहुत से कानून बनाती है, लेकिन उसका असर नहीं दिखता। इसके लिए हमको अपनी सोच बदलनी होगी। नवयुवकों को पहल करनी होगी। तभी नर और नारी एक समान का नारा सार्थक हो सकेगा। स्त्रियों पर अत्याचार समाप्त होंगे।
9 मई, 1961 को भारतीय सांसद द्वारा दहेज प्रतिषेध कानून पारित किया गया। सन 1983 में उच्चतम न्यायालय में केंद्रीय व सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि शादी से पहले सात वर्षों के भीतर संदेह की परिस्थिति में होने वाले सभी मौतें की पूरी-पूरी जाँच की जाए।
- अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन दिया जाए।
- लड़कियों को स्वावलंबी बनाया जाए।
- लड़कियों को शिक्षित किया जाए।
- स्वयं जीवन साथी चुनने का अधिकार दिया जाए।
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दहेज प्रथा पर निबंध
कानून की नजर में दहेज लेना और देना दोनों ही अपराध हैं। दहेज को रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा सन 1961 में एक कानून लागू किया गया था। इसे दहेज प्रतिषेध अधिनियम-1961 के नाम से जाना जाता है।
इस अधिनियम में दहेज के लेन-देन में किसी भी रूप में शामिल सभी व्यक्ति सजा के भागीदार होते हैं। इसका मतलब यह कतई नहीं कि बेटी के विवाह में कोई भी उपहार नहीं दिए जा सकते। उपहार दिए जा सकते हैं, परंतु वही, जो माता-पिता की सामर्थ्य में हों और अपनी ख़ुशी से बिना किसी दबाव के दिए जाएँ।
विवाह के पहले, विवाह के समय या विवाह के बाद जो उपहार अपनी ख़ुशी से बिना किसी दबाव के दिए जाते हैं, वे दहेज नहीं माने जाते। उन्हें स्त्री-धन कहा जाता है। इस स्त्री-धन पर केवल उस स्त्री का हक़ होता है। और किसी का उस पर कोई अधिकार नहीं होता।
स्त्री उन उपहारों को जिसे चाहे, दे सकती है। विवाह के समय वधू को मिलने वाले सभी उपहारों की सूची जरुर बनानी चाहिए। इस सूची में उपहार का नाम, उसकी कीमत और देने वाले का नाम और पता आदि साफ-साफ लिखा जाना चाहिए। सूची के अंत में वर-वधू दोनों के दस्तखत या अंगूठे के निशान होने चाहिए।