दुर्गा पूजा पर निबंध (Dussehra Essay in Hindi) दुर्गा पूजा पौराणिक कथा/कहानी

भारत में त्योहारों का चलन बहुत पुराना है। त्योहार ही एक ऐसा पल है जो लोगों को परिवार के साथ जोड़ता है। दुर्गा पूजा भारत की प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है। इसे दुर्गोत्सव या षष्ठोत्सव भी कहा जाता है। दुर्गा पूजा की तैयारी 1-2 महीना पहले से ही शुरू हो जाती है जो 10 दिनों तक बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।

दुर्गा पूजा क्यों मनाया जाता है?

दुर्गा पूजा से जुड़ी कई कथाएँ हैं। ऐसा माना जाता है कि माँ दुर्गा ने इस दिन महिषासुर नामक असुर का संहार किया था, जो भगवान ब्रह्मा का वरदान पाकर काफी शक्तिशाली हो गया था।

महिषासुर को यह वरदान दिया गया था कि कोई भी देवता या दानव उसपर विजय प्राप्त नहीं कर सकता। परन्तु महिषासुर वरदान पाकर अपनी शक्तियों का गलत उपयोग करने लगे, पृथ्वी के लोगों को परेशान करने लगे, यहाँ तक की उन्होंने इंद्र देव भगवान को भी नहीं छोड़ा उन पर भी आक्रमण कर दिया।

इसी के साथ स्वर्ग लोक में जाकर देवी देवताओं को हराकर स्वर्ग लोक को अपने कब्जे में कर लिया। सभी देवी देवता इससे परेशान होकर त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने मिलकर माता दुर्गा जी का सृजन किया। जिसके बाद देवी दुर्गा ने नौ दिन तक महिषासुर से युद्ध करती है और दसवें दिन उसका वध करके विजय पाती है। इसी उपलक्ष्य में हिंदू दुर्गा पूजा का त्यौहार मनाते हैं, और दसवें दिन को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है।

दुर्गा पूजा पर निबंध

यदि हम विद्या-बुद्धि के लिए सरस्वती जी की अर्चना करते हैं, तो शक्ति-साहस के लिए दुर्गा की। हमें शास्त्रबल ही नहीं, बल्कि शस्त्रबल भी चाहिए। किसी राष्ट्र की सर्वतोमुखी प्रगति के लिए विद्यादायिनी और शक्तिदायिनी दोनों की आराधना जरुरी है।

इन शक्तिशालिनी माँ के निकट किसी दुष्ट दानव का पहुँचना बड़ा ही दुःसाध्य है। ये सभी देवों के लिए दुर्जेय है तथा दुर्गतिनाशिनी है- इसलिए दुर्गा कहलाई। दुर्गा पूजा विजयदशमी के नाम से भी विख्यात है।

यह भी कहा जाता है कि इसी तिथि को भगवान श्रीराम ने दुर्गा की पूजा कर आततायी रावण पर विजय पाई थी, इसलिए यह तिथि विजयादशमी के नाम से विख्यात हुई। यह भी कहा जाता है कि इस दशमी को यदि श्रद्धापूर्वक देवी की समाराधना की जाए, तो जीवन में जय अवश्यंभावी है।

मान्यता यह भी है कि महाविद्याओं एवं इंद्रियों की संख्या दस ही है। माता की आराधना से इन दसों महाविद्याओं एवं इंद्रियों पर अधिकार-विजय निश्चित ही समझिए। इसे ‘दशहरा’ के नाम से भी हम जानते हैं; क्योंकि इसी दिन दशमुख (रावण) का गर्वहरण किया गया।

‘दशहरा’ की व्युत्पत्ति इस प्रकार की जाती है-‘हरते दश पापानि तस्मात् दशहरा स्मृता‘- अर्थात दस पापों को हरने के कारण दशहरा कहलाया। अनवधानता, असमर्थता, आत्मवंचकता, अकर्मण्यता, दीनता, भीरुता, परमुखापेक्षिता, शिथिलता, संकीर्णता तथा स्वार्थपरता-ये ही दस पाप हैं—’दशहरा’ में ये सभी समाप्त हो जाते हैं।

Durga Puja Essay in Hindi

दुर्गा दुर्गतिनाशिनी हैं एवं दारिद्र्यदुःखभयहारिणी हैं। ये साधारण देवी नहीं, वरन् विश्वेश्वरी हैं। इसीलिए इनके अवतरण-आराधन के बारे में अनेक कथाएँ कही जाती हैं। इस समय कारे-कजरारे बादल शरद के मधुमय आगमन का संदेश देकर लौट जाते हैं और कीच-कर्दम के स्थान पर सर्वत्र स्वच्छता दृष्टिगत होने लगती है।

  • दुर्गा पूजा के अवसर पर माँ दुर्गा की रंग-बिरंगी भव्य मूर्तियाँ बनाई जाती हैं, किंतु उनका सिंहवाहिनी महिषमर्दिनी रूप ही अधिक जनप्रिय है।
  • महिषासुर की छाती में बरछा साए हुए उनका एक पैर महिषासुर के कंधे पर रहता है और दूसरा पैर सिंह की पीठ पर।
  • उनके मस्तक पर रणक्रीड़ा में बिखरे केश हैं।
  • उनका मुख इस रण में भी त्रासक नहीं, प्रत्युत निर्भय पूर्णेदुसदृश है।
  • उनके शरीर की आभा कुंदपुष्प-सी अवदात है।
  • वे इस रण में भी अक्लांतयौवना तथा सर्वाभूषणभूषिता रहती हैं। उनके दस हाथ हैं।
  • दाएँ पाँच हाथों में त्रिशूल, खड्ग, चक्र, बाण तथा शक्ति (साँग) हैं तथा बाएँ पाँच हाथों में गदा, धनुष, पाश, अंकुश (गजबाँक) तथा फरसा हैं।
  • उनके दाएँ भाग में लक्ष्मी और बाएँ भाग में सरस्वती विराजती हैं।
  • लक्ष्मी के दाएँ भाग में गणेश तथा सरस्वती के बाएँ भाग में कार्तिकेय विराजते हैं।

दशमी के दिन तो समारोह अपनी पराकाष्ठा पर रहता है और प्रायः सारे भारतवर्ष के आबालवृद्ध नए वस्त्रों में सुसज्जित होकर माँ दुर्गा के दर्शन करते हैं, प्रसाद चढ़ाते हैं, जयजयकार करते हैं तथा मिष्टान्न से परितृप्त होते हैं। रात्रि में गाने-बजाने के साथ जुलूस निकाला जाता है, जिसमें भक्तजन माता को सुसज्जित रथासन पर चढ़ाकर घुमाते हैं और बाद में किसी सरोवर या नदी में प्रतिमा-विसर्जन करते हैं।

दशहरा- Dussehra Essay in Hindi

माता दुर्गा का पूजन बड़ा ही गूढ़ रहस्य रखता है। हम यदि मेवा-मिष्टान्न, भूषण-परिधान से ही केवल तुष्ट-तृप्त हो जाएँ, तो इसके मर्म को नहीं समझ सकेंगे। वस्तुतः, दुर्गा की प्रतिमा संपूर्ण राष्ट्र की प्रतीक है। व्यक्ति या व्यक्तियों का सम्मिलित रूप राष्ट्र शारीरिक बल, संपत्तिबल और ज्ञानबल से सिंह के समान है। उस व्यक्ति और राष्ट्र पर शक्तिस्वरूपिणी दुर्गा प्रकट होती हैं।

राष्ट्र को पशुबल (कार्तिकेय), संपत्तिबल (लक्ष्मी) और ज्ञानबल (सरस्वती) अवश्य चाहिए, किंतु बुद्धिविरहित बल, संपत्ति और ज्ञान निरर्थक ही नहीं, वरन् संहारक है। इसीलिए इनके साथ बुद्धि के महाकाय गणेश रहते हैं, जिनकी विशाल बुद्धि के भार से विघ्नों के चूहे दबे रहते हैं। सभी दिशाओं में फैली दुर्गा की दसों भुजाओं के अस्त्र-शस्त्र अमित राष्ट्रशक्ति की ओर संकेत करते हैं। कोई व्यक्ति और राष्ट्र ऐसा नहीं, जिसका विरोधी न हो। अतः, दुर्गा की उपासना और कुछ नहीं, वरन् अपराजेय महिमामयी भारतशक्ति की ही उपासना है।

मन के धरातल पर एक बात और स्मरण रखनी चाहिए कि मधुकैटभ, महिषासुर और शुंभ-निशुंभ महामोह या घोर अविद्या के ही प्रतीक हैं। यदि हम महामोह या घोर अविद्या का नाश चाहते हैं, तो हमें माता दुर्गा का अर्चन-आराधन करना ही होगा। शत्रुओं से पराजित राजा सुरथ तथा स्त्री-पुत्र से निष्कासित समाधि वैश्य ने इन्हीं देवी की आराधना कर भोग और मोक्ष की प्राप्ति की थी।

दूसरे शब्दों में, सुरथ-रूपी कर्म और एकाग्रता-रूपी समाधि के समक्ष विघ्न आने पर भी माँ दुर्गा ही सहायिका सिद्ध होती हैं। यदि हम भी उनकी उपसना करें, तो केवल महारोग, महोत्पात, महासंकट, महादुःख और महाशोक से ही मुक्त नहीं हों, वरन् जीवन्मुक्त हो जा सकते हैं।

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