सरहुल पूजा पर निबंध: आदिवासियों का प्रकृति-पर्व सरहुल पूजा (Sarhul)

झारखंड, उड़िसा, बंगाल और मध्य भारत के आदिवासी क्षेत्रों में सरहुल या बाहा पोरोब एक प्रमुख त्योहार है। सामान्यतः सरहुल पर्व उराँव नामक आदिवासी जाती द्वारा मनाया जाता है। यह खेती-किसानी शुरू करने का प्रकृति-पर्व है, जिसे सरहुल पूजा भी कहा जाता है।

सरहुल का त्योहार पर निबंध

सरहुल का अर्थ है साल का पूजा। सरहुल उराँव नामक आदिवासी जाति का सबसे बड़ा त्योहार है। यह कृषि आरंभ करने का त्योहार है। इस त्योहार को ‘सरना’ के सम्मान में मनाया जाता है।

सरना वह पवित्र कुंज है, जिसमें कुछ शालवृक्ष होते हैं। यह पूजनस्थान का कार्य करता है। इस त्योहार के लिए निश्चित दिन को गाँव का पुरोहित-जिसे पाहन कहते हैं—सरनापूजन करता है। इस अवसर पर मुर्गे की बलि दी जाती है तथा हँड़िया (चावल से बनाया गया मद्य) का अर्घ्य दिया जाता है।

आदिवासी-चाहे वे निकट के नगरों में, असम के चाय-बागानों में या बंगाल की जूटमिलों में काम करने गए हों-सरहुल के समय घर अवश्य आ जाते हैं। लड़कियाँ ससुराल से मायके लौट आती हैं।

वे लोग अपने घरों की लिपाई-पुताई करते हैं। मकानों की सजावट के लिए दीवारों पर हाथी-घोड़े, फूल-फल आदि रंग-बिरंगे चित्र बनाते हैं। उनकी कलाप्रियता देखते ही बनती है। जिधर देखिए उधर ही चहल-पहल है, आनंद-उछाह है, मौज-मस्ती का आलम है। इस दिन खा-पीकर मस्त होकर घंटों तक उनका नाचना-गाना अविराम चलता है। लगता है, जीवन में उल्लास-ही-उल्लास है, सुख-ही-सुख है।

ऐसे अवसर पर गौतम बुद्ध इन लोगों के बीच आएँ, तो उन्हें लगे कि न जीवन में दुःख है, न शोक है, न रोग है, न बुढ़ापा है, न त्रास हैं न मृत्यु। जो कुछ सुख है, बस वह मिट्टी के जीवन में है और उस सुख की एक-एक बूंद निचोड़ लेना ही जैसे इनका लक्ष्य है। नाच-गाने से गाँव की गली-गली, डगर-डगर का वातावरण झमक उठता है।

इस अवसर पर युवक-युवतियाँ नगाड़े, मृदंग और बाँसुरी की धुनों पर थिरक-थिरककर नाचते हैं और आनंदविभोर हो उठते हैं। अर्थात, सरहुल का चाँद आया है। फूल-फल लेता आया है। भर चाँद हम उसे सेते हैं, फिर त्याग देते हैं। भाभियों, बहुओं और स्वजनों को बुलाओ। बड़ी मुर्गी की बलि चढ़ाओ। टूटे घड़े से हँडिया का अर्घ्य दो।

इस प्रकार, सरल नादात्मक शब्दों से निःसृत गीतों में उल्लास की रसभीनी बयार इठलाती रहती है। जितने ये सरल, निष्कपट, आनंदमूर्ति मनुष्य हैं, उतना ही इनका स्वभाव सरल, निश्छल तथा आनंदविह्वल है। जैसे हिंदुओं की होली है, मुसलमानों की ईद है, ईसाइयों का क्रिसमस है, वैसे ही उराँवों का सरहुल है। आ जाए शीघ्र चैत्र मास कि सरहुल मनाने में मगन उराँव के दर्शन हम फिर करें।

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