Mob Lynching Meaning in Hindi: मॉब लिंचिंग किसे कहते हैं? अर्थ, कारण, क़ानून, निबंध

देश के सामाजिक मुद्दों के बारे में आप उतना अप्डेट रहते हों या न हों, लेकिन आए दिन ‘मॉब लिंचिंग‘ के कई घटनाओं के बारे में आपने ज़रूर सुना होगा। इसमें होता यह है कि न्याय माँगने के लिए सामाजिक व्यवस्था को छोड़कर एक भीड़ खुद ही दोष सिद्ध हुए बिना ही सजा देने के लिए आतुर हो जाती है और हिंसा पर उतर आती है। और आज हम इसी के बारे में विस्तार से बात करेंगे कि मॉब लिंचिंग किसे कहते हैं? मॉब लिंचिंग के कारण क्या हैं और इसे रोकने के उपाय क्या हैं?

Mob Lynching Meaning in Hindi

मॉब का मतलब होता है भीड़ और लिंचिंग शब्द का अर्थ है— किसी को दोषी करार देकर उसे बिना किसी क़ानूनी प्रक्रिया का पालन किए मृत्युदंड देना। और जब क़ानूनी प्रक्रिया है ही नहीं, तो वो दंड एक तरह से हत्या ही है। इस तरह Mob Lynching का मतलब हुआ, भीड़ द्वारा की गई हत्या; जो अक्सर एक अनियंत्रित भीड़ किसी दोषी को उसके अपराध के लिए सजा देने के आवेश में मार भी देती है।

मॉब लिंचिंग किसे कहते हैं?

मॉब लिंचिंग सामूहिक नफ़रत से जुड़े उस अपराध को कहते हैं, जिसमें एक अनियंत्रित भिड़ किसी दोषी को उसके किए गए अपराध के लिए या कभी-कभी अफ़वाहों के आधार पर बिना अपराध किए उसे उसी समय सजा देने की कोशिश करती है और कई घटनाओं में तो पीट-पीटकर मार दिया जाता है।

आज के समय में mob lynching की घटनाएँ इतनी ज़्यादा सामने आ रही हैं कि इसे यथाशीघ्र जड़ से मिटाने की ज़रूरत हो गई है। मॉब लिंचिंग के कारण समाज की एकता प्रभावित होती है, और लोगों को आपसी अविश्वास का माहौल बढ़ जाता है। इससे हिंसा तो फैलती ही है, साथ ही हिंसा से पीड़ित परिवार को मनोवैज्ञानिक एवं आर्थिक दबाव में भी धकेल देती है। इसके साथ ही देश की अर्थव्यवस्था एवं छवि भी ख़राब होती है। इसलिए इसे रोकने के लिए जो भी प्रयास किए जा सकते हैं, हम सभी को इसे जड़ से ख़त्म करने के लिए काम करना चाहिए।

मॉब लिंचिंग के कारण

  • सामान्यतः मॉब लिंचिंग किसी ऐसी तात्कालिक घटना का परिणाम होती है, जिससे जनभावनाएँ आहत होती हैं।
  • जनभावना को जब ठेस पहुँचती है तो लोग सामूहिक रूप से हिंसा पर उतारू हो जाते हैं।
  • कभी-कभी ऐसा देखा जाता है कि राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण अपराधी बच जाते हैं, जिससे आम लोगों में व्यवस्था के प्रति नकारात्मक भाव उत्पन्न होता है।
  • इसके अलावा कुछ लोग अपनी आस्था एवं विश्वास को क़ानून से ऊपर मानते हैं जिस कारण उनकी आस्था एवं विश्वास को तोड़ने वालों को सजा देने के कार्य को वो एक पवित्र कार्य मानने लगते हैं।
  • बेरोज़गारी के कारण भी कई बार मॉब लिंचिंग के घटनाएँ सामने आते हैं। बेरोज़गारी से आर्थिक अभाव होता है और इसके कारण लोगों में तनाव बढ़ता है और वो तनाव कई बार हिंसा की सम्भावना को बढ़ावा देता है।
  • आज के इस डिजिटल दौर में सोशल मीडिया में कई सारे अफ़वाह viral हो जाते हैं, और लोग तथ्यों को बिना जाने-समझे उग्र हो जाते हैं।

मॉब लिंचिंग को रोकने के उपाय

  • मॉब लिंचिंग रोकने के लिए सबसे पहले तो एक सख़्त क़ानून बनना चाहिए।
  • हिंसा के तुरंत बाद इस पर आवश्यक कार्यवाई कर इसके प्रभाव को कम किए जाने का प्रयास करन चाहिए।
  • दोषियों को पहचान कर उन्हें दंडित करना चाहिए।
  • इसे रोकने के लिए प्रशासनिक सूचना तंत्र को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • अफ़वाह न फैले, प्रशासन को एक ऐसी रणनीति बनानी चाहिए।
  • मीडिया और समाज के ज़िम्मेदार लोगों का यह दायित्व होना चाहिए कि मॉब लिंचिंग को लेकर समाज में जागरूकता अभियान चलाएँ।
  • ख़ासकर सोशल मीडिया पर नियंत्रण की काफ़ी आवश्यकता है। आप सोशल मीडिया पर क्या शेयर कर रहे हैं, पहले तथ्यों को अच्छे-से जान-समझ लें। अफ़वाहों से दूर रहना ही मॉब लिंचिंग को रोकने का एक सरल तरीक़ा है।

मॉब लिंचिंग से जुड़े क़ानून

वैसे तो वर्तमान में भारत में मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं से निपटने के लिए कोई विशेष क़ानून नहीं है। इस तरह की घटना को भारतीय दंड संहिता के अलग-अलग धाराओं का प्रयोग करके निपटाया जाता है, जो सामान्य हत्या की घटनाओं में काम लिया जाता है। चूँकि भीड़ द्वारा की गई हिंसा की प्रकृति और उत्प्रेरण सामान्य हत्या से अलग होते हैं, इस वजह से इसके लिए एक अलग सख़्त क़ानून बननी चाहिए।

मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संसद में मॉब लिंचिंग के ख़िलाफ़ एक सख़्त क़ानून बनाने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार कोई भी नागरिक स्वयं में क़ानून नहीं बन सकता। लोकतंत्र में भीड़तंत्र की अनुमति नहीं दी जा सकती। साथ ही न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को सख़्त आदेश दिया कि वे संविधान के अनुसार काम करें।

मॉब लिंचिंग जैसे अपराध से निपटने के लिए अलग से क़ानून न होने के कारण भारतीय दण्ड संहिता के द्वारा अलग-अलग धाराओं के अंतर्गत इसे रोकने की कोशिश की जाती है, लेकिन वह पूर्ण नहीं है। वैसे तो हमारे देश में काफ़ी संख्या में क़ानून हैं, लेकिन उन क़ानूनों का ईमानदारीपूर्वक पालन न करने के कारण अपराधों पर लगाम नहीं लग पाती है। ऐसे में यदि एक अलग क़ानून लाकर कार्यपालिका को और अधिक जवाबदेह बनाया जाए, तो इस तरह के अपराध पर नियंत्रण किया जा सकता है।

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