प्राथमिक शिक्षा का अर्थ, उद्देश्य, प्रकार: Importance of Primary Education in India

किसी भी व्यक्ति या नागरिकों के व्यक्तित्त्व की सर्वांगीण विकास में प्राथमिक शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान होता है. प्राथमिक शिक्षा को प्राप्त करके ही, कोई व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त करता है और राष्ट्र के विकास हेतु कार्य करता है. प्राथमिक शिक्षा के द्वारा ही राष्ट्र अपने अभीष्ट लक्ष्य तक पहुँच सकता है. तो आज जानेंगे प्राथमिक शिक्षा क्या है? प्राथमिक शिक्षा का अर्थ और Prathamik Shiksha ke Uddeshy.

प्राथमिक शिक्षा क्या है? 

कक्षा 1 से 5 तक की स्कूली शिक्षा, प्राथमिक शिक्षा है. प्राथमिक शिक्षा को बुनयादी शिक्षा भी कहते हैं. क्योंकि यह किसी बच्चे की शुरूआती शिक्षा होती है. पढ़ना, लिखना और हिसाब लगाना यानि जोड़ना, घटाना प्राथमिक शिक्षा में ही बच्चा सीखता है.

प्राथमिक शिक्षा का अर्थ

प्राथमिक शिक्षा का अर्थ कक्षा 1 से 5 तक की स्कूली शिक्षा से है. जिसमें बच्चों को पढ़ना, लिखना तथा हिसाब लगाना यानि जोड़-घटाव, गुण-भाग सिखाया जाता है. प्राथमिक का मतलब ‘प्रारंभिक’ होता है, यानि प्राथमिक शिक्षा बच्चों की प्रारंभिक/ शुरुआती शिक्षा होती है.

प्रारंभिक शिक्षा का उद्देश्य छात्र के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाना है, जिससे बच्चें सर्वांगीण विकास हो सकें. शिक्षा मानव को जीवन को सरल, विनम्र तथा शांत बनती है. प्राथमिक शिक्षा की पहली सीढ़ी को सफलतापूर्वक पार करके ही कोई राष्ट्र आने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है.

प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्य 

  • प्राथमिक शिक्षा का उद्देश्य जन शिक्षा का प्रसार और व्यावहारिक जीवन की शिक्षा है.
  • इसका मुख्य उद्देश्य छात्र को बुनयादी शिक्षा (पढ़ना, लिखना, और हिसाब करना सीखना) प्रदान करके, छात्र के व्यवहार में अभीष्ट परिवर्तन लाना है.
  • बच्चों को अन्य लोगों से बातचीत करने के लिए पहली भाषा के रूप में मातृभाषा का ज्ञान कराना.
  • व्यावहारिक समस्याओं के समाधान हेतु बच्चों को जोड़, घटाव, गुणा और भाग सिखाना.
  • बच्चों को स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का ज्ञान कराना, ताकि बच्चे स्वास्थ्य रहें.
  • सामूहिकता की भावना बच्चों में विकसित करते हुए, उन्हें वर्ग-भेद से ऊपर उठाना.
  • बालकों को प्राकृतिक और सामाजिक पर्यावरण का ज्ञान कराना.
  • भारतीय संस्कृति से परिचित कराते हुए, बच्चों को अस्पृश्यता, जातिवाद एवं साम्प्रदायिकता का विरोध करना सिखाना.
  • मानव श्रम के प्रति बच्चों में स्वस्थ विचार जागृत करना और सृजनात्मक क्षमता विकसित करना.
  • बच्चों को एक-दुसरे का सम्मान करने के लिए सिखाना.
  • प्रेम, सहानुभूति और सहयोग से कार्य करने के लिए बच्चों को प्रेरित करना.
  • विज्ञान और तकनीकी के महत्त्व को समझाना और विज्ञान की खोज विधि का ज्ञान देना.
  • बच्चों में राष्ट्रीय प्रतीकों, जैसे- राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान आदि के प्रति आदर की भावना उत्पन्न करना.
  • प्रजातान्त्रिक विधियों और संस्थाओं के प्रति आदर की भावना उत्पन्न करना.

प्राथमिक शिक्षा के प्रकार

प्राथमिक या प्रारंभिक शिक्षा तीन प्रकार के होते हैं,

औपचारिक शिक्षा

औपचारिक शिक्षा स्कूल में प्रदान की जाने वाली शिक्षा है. औपचारिक शिक्षा, शिक्षा का सबसे प्रचलित रूप है. इसे नियमित शिक्षा भी कहा जाता है. औपचारिक शिक्षा व्यवस्था में उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियाँ, समय और स्थान आदि निश्चित होता है. परीक्षा लेने का समय और प्रमाण पत्र देने का समय भी तय होता है. स्कूल के अलावे औपचारिक शिक्षा के कई अन्य साधन हैं, जैसे- पुस्तकें, पुस्तकालय और संग्रहालय आदि.

अनौपचारिक शिक्षा

अनौपचारिक शिक्षा वह शिक्षा होती है, जो स्वाभाविक रूप से परिवार से प्राप्त होती है. आनौपचारिक शिक्षा जीवनपर्यंत प्राप्त होते रहती है. बच्चे अपने परिवार के सदस्यों, आस-पड़ोस, समाज, सार्वजनिक स्थलों, खेल के मैदान, पार्क आदि में उठते-बैठते, खेलते-कूदते बातचीत करके आनौपचारिक शिक्षा ग्रहण करते हैं. भाषा, सभ्यता-संस्कृति और आचरण का ज्ञान आनौपचिक शिक्षा के माध्यम से होता है. शिक्षा के इस रूप को अनियमित, आकस्मिक शिक्षा भी कहा जाता है.

निरौपचारिक शिक्षा

औपचारिक और अनौपचारिक दोनों के बीच का मार्ग, निरौपचारिक शिक्षा होता है. इस शिक्षा में नियंत्रण के साथ अनियंत्रण भी होता है. छात्र कई क्षेत्रों में नियंत्रित होते हैं, तो कुछ क्षेत्रों में अनियंत्रित होते हैं.

निरौपचारिक शिक्षा में उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियाँ निश्चित होती है, लेकिन औपचारिक शिक्षा के जैसा कठोर नहीं होता. प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था हेतु औपचारिक शिक्षा के समान्तर चलायी जाने वाली शिक्षा को निरौपचारिक शिक्षा कहा जाता है. इस शिक्षा के अंतर्गत प्रौढ़ शिक्षा, दूरस्थ शिक्षा और सतत शिक्षा आती है.

इसे भी पढ़ें:- नई शिक्षा नीति 2020 क्या है? 

Leave a Comment