MRP Full Form in Hindi, MRP Kya Hota Hai? MRP के फायदे, नियम, निर्धारण उद्देश्य

MRP का पूरा नाम Maximum Retail Price है, जिसे हिन्दी में ‘अधिकतम खुदरा मूल्य‘ बोला जाता है. जब भी हम कुछ समान खरीदते हैं, तो उसमें लिखा MRP को चेक करते हैं. तो आज हम जानेंगे MRP ka Matlab क्या होता है? MRP Full Form in Hindi.

MRP Full Form in Hindi

MRP का फुल फॉर्म Maximum Retail Price (अधिकतम खुदरा मूल्य) होता है. MRP या अधिकतम खुदरा मूल्य का मतलब, वह कीमत (price) या मूल्य होता है, जिससे अधिक कीमत में बेचा नहीं जा सकता है.

MRP Kya Hota Hai?

एम.आर.पी या अधिकतम खुदरा मूल्य किसी सामान, सामग्री (product) का वह मूल्य/कीमत होता है, जिससे अधिक मूल्य पर दुकानदार उस सामान को नहीं बेच सकता है. अधिकतम खुदरा मूल्य से अधिक मूल्य दुकानदार, ग्राहक से नहीं वसूल सकता है.

MRP के फायदे

  • एम.आर. पी लिखे होने की वजह से कोई भी दुकानदार किसी ग्राहक से उस वस्तु का मनमाना मूल्य वसूल नहीं कर सकता है.
  • किसी प्रोडक्ट का उचित मूल्य की ही विक्रेता, क्रेता यानि ग्राहक से ले सकता है.
  • ग्राहक को एमआरपी से वस्तुओं का जायज मूल्य पता हो जाता है, जिससे ठगी का शिकार होने से बचते हैं.
  • MRP का नियम हर ग्राहक को यह अधिकार देता है कि MRP से ज्यादा मूल्य वसूलने वाले के खिलाफ शिकायत भी किया जा सकता है.

MRP का निर्धारण कौन करता है?

किसी भी प्रोडक्ट की MRP उस कंपनी के द्वारा तय किया जाता है, जिसने उस प्रोडक्ट का निर्माण किया हो. कंपनी उस वस्तु के निर्माण लागत, विज्ञापन लागत, परिवहन एवं पैकेजिंग खर्च आदि सभी मूल्यों को जोड़कर एक अनुमानित मूल्य लिख देता है. ताकि कोई भी दुकानदार या विक्रेता, ग्राहक से किसी वस्तु के मूल्य से अत्यधिक मूल्य ना वसूले. और ग्राहक भी किसी वस्तु को खरीदते समय उसमें लिखा MRP को देखकर समान खरीदकर, ठगी से बाख सकते हैं.

MRP कब से लागू हुआ?

1990 में MRP को लागू किया गया. नागरिक आपूर्तिकर्ता मंत्रालय , कानूनी माप विज्ञान विभाग द्वारा MRP को 1976 के पैकेज कोमोडिटी नियम भी बोलते हैं. इसे बाट और माप अधिनियम के मानकों में संशोधन कर के बनाया गया था.

इसका नाम हीं है Maximum Retail Price यानि MRP में वस्तु के उत्पादन से लेकर उसके परिवहन और विज्ञापन आदि सभी खर्चों को जोड़कर छापा जाता है. जिसमें जीएसटी भी शामिल है होता है यानि MRP में GST charge भी जुड़ा रहता है.

हालांकि भारत सरकार ने MRP लगाने का नियम 2006 में बनाया और इस नियम के अनुसार हर एक वस्तु का MRP उसके पैकेट में लिखा होना अनिवार्य है. अगर कोई भी दुकानदार किसी वस्तु का मूल्य उसके MRP से ज्यादा वसूलता है, तो उसके खिलाफ उपभोक्ता केंद्र में शिकायत भी दर्ज किया जा सकता है.

अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) का उद्देश्य

  • एम.आर.पी  के जरिए विक्रेताओं को किसी वस्तु का बाजार मूल्य से अधिक मूल्य लेने से रोका जाता है.
  • कोई भी विक्रेता किसी वस्तु के MRP में छपे मूल्य से अधिक मूल्य पर किसी भी वस्तु को नहीं बेच सकता है.
  • हालांकि कुछ विशेष क्षेत्रों जैसे हील्स स्टेशन और पर्यटन स्थलों पर MRP से ज्यादा मूल्य में वस्तुएं बेची जा सकती हैं.
  • इसका कारण है उन स्थानों पर उत्पादों की दुर्लबद्धता.
  • साथ हीं MRP से ज्यादा मूल्य वसूलने का एक ओर तरीका है कोल्ड ड्रिंक्स पर कूलिंग चार्ज जोड़कर MRP से थोड़ा अधिक मूल्य लिया जा सकता है.

MRP का निर्धारण कैसे होता है?

अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) का निर्धारण या गणना उस वस्तु का निर्माण लागत, Packaging Charge, लाभ मार्जिन, स्टॉकिंग मार्जिन, परिवहन, GST charge, विज्ञापन खर्च, खुदरा विक्रेता मार्जिन एवं अन्य उचित खर्चों को जोड़ने के पश्चात किया जाता है. हालांकि कई बार MRP पर सवाल भी उठें हैं और इसकी आलोचना भी हुई है. कुछ लोग तो इसे मनमाना रीटेल प्राइस भी बोल देते हैं.

MRP का नियम

  • एक हीं वस्तु के पैकेट पर दो MRP छपा नहीं हो सकता है.
  • लगभग सभी Packed वस्तुओं पर एमआरपी की घोषणा का लेबल होना हीं चाहिए.
  • वस्तु के पैकेट पर MRP का फॉन्ट साइज़ बड़ा होना चाहिए. जिससे ग्राहक को MRP पढ़ने में आसानी हो.
  • MRP से ज्यादा मूल्य वसूलने वाले विक्रेता पर उपभोक्ता केंद्र में शिकायत किया जा सकता है.
  • कोई भी कंपनी जो बिना एमआरपी लिखे वस्तु का निर्माण करता है, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जा सकती है.

इसे भी पढ़ें :- QR कोड़ का फूल फॉर्म क्या है? 

 

 

 

Leave a Comment