निर्मल वर्मा सामाजिक बदलाव तथा राजनीतिक समस्याओं पर विशेष लेखनी के माध्यम से लोकप्रिय बने। आइए जानते हैं निर्मल वर्मा का साहित्यिक परिचय, भाषा-शैली, रचनाएँ और संक्षेप में उनकी जीवनी।
निर्मल वर्मा का जीवन परिचय
निर्मल वर्मा का जन्म सन् 1929 ई. में शिमला में हुआ। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में इतिहास से एम.ए. किया और अध्यापन कार्य करने लगे। वे चेकोस्लोवाकिया के प्राच्यविद्या संस्थान, प्रांग के निमंत्रग पर सन् 1959 ई. में वहाँ गए और चेक उपन्यासों तथा कहानियों का हिन्दी अनुवाद किया।
निर्मल वर्मा को हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी पर भी अधिकार प्राप्त था। उन्होंने ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ तथा हिंदुस्तान टाइम्स’ के लिए यूरोप की सांस्कृतिक एवं राजनीतिक समस्याओं पर अनेक लेख और रिपोर्ताज लिखे हैं, जो उनके निबंध संग्रहों में संकलित हैं। सन 1970 ई. में वे भारत लौट आए और स्वतंत्र लेखन करने लगे।
निर्मल वर्मा की प्रमुख रचनाएँ और साहित्यिक परिचय
निर्मल वर्मा का मुख्य योगदान हिंदी कथा-साहित्य के क्षेत्र में है। वे नयी कहानी आंदोलन के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर माने जाते हैं। उनकी साहित्यिक रचनाएँ निम्नलिखित हैं- कहानी संग्रह- परिंदे, जलली झाड़ी, तीन एकांत, पिछली गरमियों में, कब्चे और काला पानी, बीच बहस में, सूखा तथा अन्य कहानियाँ आदि। हर बारिश में, चीड़ों पर चाँदनी, धुंध से उटती धुन। निबंध संग्रह-शब्द और स्मृति, कला का जोखिम, ढलान से उतरते हुए।
इनमें विविध विषयों सन् 1985 ई. में कव्वे और काला पानी पर उनको ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार‘ मिला। इसके अतिरिक्त उन्हें कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। भाषा शिल्प की विशेषताएँ-निर्मल वर्मा की भाषा-शैली में एक ऐसी अनोखी कसावट है, जो विचार सूत्र की गहनता को विविध उद्धरणों से रोचक बनाती हुई विषय का विस्तार करती है।
शब्द-चयन में जटिलता न होते हुए भी उनकी वाक्य-रचना में मिश्र और संयुक्त वाक्यों की प्रधानता है। स्थान-स्थान पर उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों का स्वाभाविक प्रयोग किया है, जिससे उनकी भाषा शैली में अनेक प्रयोगों की झलक मिलती है।
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