Raja Mahendra Pratap Singh Biography in Hindi: राजा महेंद्र प्रताप सिंह कौन थे? राजा महेंद्र प्रताप सिंह जीवन परिचय

राजा महेन्द्र प्रताप सिंह भारत के स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, लेखक, क्रांतिकारी, समाज सुधारक और महान दानवीर थे। वे ‘आर्यन पेशवा‘ के नाम से प्रसिद्ध थे और भारत की अनंतिम सरकार के अध्यक्ष थे। सरकार प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान बनी थी और भारत के बाहर से संचालित हुई थी। उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान में ‘भारतीय कार्यकारी बोर्ड’ की स्थापना की थी| तो आज हम आपसे Raja Mahendra Pratap Singh Biography in Hindi के बारे में बात करेंगे|

राजा महेन्द्र प्रताप सिंह कौन थे?

भारत के स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक राजा महेंद्र प्रताप सिंह थे| वे 1 दिसम्बर 1886 से 29 अप्रैल 1979 तक भारत के स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, लेखक, क्रांतिकारी, समाज सुधारक और महान दानवीर थे। ज्यादातर लोग उन्हें आर्यन पेशवा के नाम से जानते थे। इसके साथ ही भारत की अंतिम सरकार के अध्यक्ष थे।

महेंद्र प्रताप सिंह पहले ऐसे भारतीय थे, जिन्होंने वर्ष 1915 में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में भारत की पहली निर्वाचित सरकार की गठन की। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान सरकार का गठन किया गया था। राजा महेंद्र प्रताप सिंह ‘आजाद हिन्द’ के लिए हमेशा लड़ते हैं।

Raja Mahendra Pratap Singh Biography

नामराजा महेंद्र प्रताप सिंह
जन्म1 दिसम्बर, 1886
जन्म भूमिमुरसान, उत्तर प्रदेश
अभिभावकराजा बहादुर घनश्याम सिंह
नागरिकताभारतीय
प्रसिद्धिसच्चे देशभक्त, क्रान्तिकारी, पत्रकार और समाज सुधारक
मृत्यु29 अप्रैल, 1979

राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म 1 दिसंबर 1886 ई० को एक जाट परिवर में हुआ था। राजा महेंद्र प्रताप मुरसान रियासत के शासक थे, जो उतर प्रदेश के हाथरस जिले में थी। राजा महेंद्र प्रताप अपने पिता के तृतीय पुत्र थे। 3 वर्ष के आयु में राजा हरनारायण सिंह ने उन्हें पुत्र के रूप में गोद लिया था।

जातिवाद और छुआ-छूत को महेंद्र प्रताप नहीं मानते थे, इन्होंने अपनी पढ़ाई एक मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) से की| इनका विवाह 1902 ई० में जिन्द रियासत के बलवीर कौर से हुआ। और इसके 2 बच्चे है, पुत्री का नाम भक्ति और पुत्र का नाम प्रेम है।

राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जीवन परिचय 

राजा महेंद्र प्रताप सिंह बहुत बड़े दानवीर थे। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) जिस जगह पर बनी है,  वह जगह महेंद्र प्रताप का था। लेकिन बाद में उन्होंने उस जमीन को दान में दे दिया। जब इन्होंने काबुल में ही रह कर भारतीय निर्वासित सरकार का गठन किया था| उसके बाद 1940 ई० के दूसरे विश्वयुद्ध में जापान में भारतीय कार्यकारी बोर्ड ( Executive Board of India) की स्थापना की।

वे अपने मन में ठान लिए थे कि भारत के लोगों को आंग्रेजों के शासक से आजाद करना है। जिसके बाद देश के हित के लिए एक से एक कदम उठाए। अपने College के दोस्तों के साथ मिलकर 1911 में बाल्कन युद्ध में भाग भी लिए| राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने 50 से ज्यादा देशों की यात्रा की थी। वो भी बिना भारतीय पासपोर्ट के|

जब वो पासपोर्ट बनाने के लिए देहरादून के डीएम कार्यालय में गए तो, उनका पासपोर्ट नहीं बनाया  गया ऊपर से उनके ऊपर 500 रुपए का दण्ड भी लगाया गया। बाद में उन्होंने समुन्द्री रास्तों से अपना सफर तय किया। आजादी का बिगुल बजाते हुए वह 31 साल आठ महीने तक वो विदेश में रहे। हिंदुस्तान को आजाद कराने का यह देश के बाहर पहला प्रयास था।

Raja Mahendra Pratap Singh Biography in Hindi

कोई देश लोकतंत्र और आजादी के महत्व को तब समझता है जब उस देश के लोगों को असली इतिहास पढ़ाया जाता है। लेकिन अंग्रेजों और आजाद भारत के अलग-अलग पार्टी के सरकार ने ऐसा कभी होने ही नहीं दिया। इन सरकारों ने अंग्रेजों द्वारा लिखा गया इतिहास, जो हमें स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाया जाता है।

इस इतिहास के किताब में Akbar The Great के लिए जगह थी| Ashoka The Great के लिए कोई जगह नहीं थी। इस इतिहास में सर सैयद अली खान को एक समाज सुधारक के रूप में पेश किया गया, लेकिन राजा महेंद्र प्रताप सिंह जैसे देश भक्तों की कहानी इतिहास से गायब कर दी गई।

राजा महेंद्र प्रताप सिंह स्टेट यूनिवर्सिटी, अलीगढ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 14 सितंबर 2021 को राजा महेंद्र प्रताप सिंह स्टेट यूनिवर्सिटी अलीगढ़ की आधारशिला राखी। देश की आजादी में योगदान को याद रखने के और शिक्षा के प्रति उनके प्रेम को जीवित रखने के लिए Raja Mahendra Pratap Singh State University, Aligarh की आधारशिला रखी।

इस विश्वविद्यालय से देश के युवाओं को अपनी भाषा में पढ़ाई के लिए प्रेरित करेगा साथ ही देश के वीर योद्धा के इतिहास को जान सकेंगे| कई सालों से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ये सपना था कि वो देश के महानायक राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम से एक विश्वविद्यालय की स्थापना करें। और वो सपना पूरा हो गया।

प्रेम महाविद्यालय की स्थपना

राजा साहब अपनी संपूर्ण संपत्ति प्रेम महाविद्यालय को दान करना चाहते थें| ताकि उस महाविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों का विकास हो सके। लेकिन बाद में उन्हे समझाया गया कि यह पुश्तैनी रियासत है, आप इसे दान नहीं कर सकते हैं| क्योंकि राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने पहले ही अपनी आधी संपत्ति दान कर दिए थे। लेकिन फिर भी उन्होंने 24 मई 1909 में प्रेम महाविद्यालय का स्थापना की और महारानी विक्टोरिया के जन्म दिन पर इन महाविद्यालय को शुरू किया गया।

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