डॉ॰ रामविलास शर्मा हिन्दी साहित्य के एक सुप्रसिद्ध निबंधकार, आलोचक, कवि और भाषाशास्त्री थे। वैसे तो पेशे से वे अंग्रेजी के एक प्रोफेसर थे, लेकिन दिल से हिन्दी के एक प्रकांड पंडित और गहरे विचारक, ऋग्वेद और मार्क्स के अध्येता, इतिहासवेत्ता, भाषाविद, राजनीति-विशारद ये सब विशेषण उन पर समान रूप से लागू होते हैं। आइए जानते हैं रामविलास शर्मा की जीवनी और साहित्यिक परिचय।
रामविलास शर्मा का जीवन परिचय
हिंदी के सुप्रसिद्ध आलोचक रामविलास शर्मा का जन्म 1912 ई. में उत्तर प्रदेश जिला उन्नाव के ऊँचगाँव-सानी में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही संपन्न हुई। बाद में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. व पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की।
इसके बाद वे कुछ समय तक लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग में प्रवक्ता के पद पर कार्यरत रहे। 1943 ई. से 1971 ई. तक वे आगरा के बलवंत राजपूत कॉन्लेन में अंग्रेजी के प्राध्यापक रहे। तत्पश्चात् कुछ समय तक वे आगरा में ही के. एम. मुंशी विद्यापीठ के निदेशक भी रहे।
वहाँ से सेवा निवृत्त होकर वे दिल्ली में रह कर साहित्य साधना में जुट गए । यहाँ पर वे साहित्य, संस्कृति व इतिहास के विषयों पर गहन चिंतन में लान रहे। 2000 ई. में दिल्ली में उनका निधन हो गया।
रामविलास शर्मा का साहित्यिक परिचय
रामविलास शर्मा एक आलोचक, निबंधकार, भाषाशास्त्री, समाजचिंतक और इतिहासवेत्ता रहे हैं। साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने कवि और आलोचक के रूप में पदार्पण किया। उनकी कुछ कविताएँ अज्ञेय द्वारा संपादित तार सप्तक में सकलित हैं।
हिंदी की प्रगतिशील आलोचना सुव्यवस्थित करने और उसे नई दिशा देने का महत्त्वपूर्ण काम उन्होंने किया। उनके साहित्य-चिंतन के केंद्र में भारतीय समाज का जन-जीवन, उसकी समस्याएँ और उसकी आकांक्षाएँ रही हैं। उन्होंने संस्कृति के वाल्मीकि, कालिदास और भवभूति के काव्य का नया मूल्यांकन और तुलसीदास के महत्त्व का विवेचन भी किया है।
रामविलास शर्मा ने आधुनिक हिंदी साहित्य का विवेचन और मूल्यांकन करते हुए हिंदी की प्रगतिशील आलोचना का मार्गदर्शन किया है। अपने जीवन के आखिरी दिनों में वे भारतीय समाज, संस्कृति और इतिहास की समस्याओं पर गंभीर चिंतन और लेखन करते हुए, वर्तमान भारतीय समाज की समस्याओं को समझने के लिए, अतीत की विवेक-यात्रा करते रहे हैं।
रामविलास शर्मा की जीवनी
महत्त्वपूर्ण विचारक और आलोचक के साथ-साथ शर्मा जी एक सफल निबंधकार भी हैं। उनके अधिकांश निबंध ‘विराम चिह्न‘ नाम की पुस्तक में संगृहीत हैं। उन्होंने विचार-प्रधान और व्यक्ति-व्यंजक निबंधों की रचना की है।
प्रायः उनके निबंधों में विचार और भाषा के स्तर पर एक रचनाकार की जीवंतता और सहृदयता मिलती है। स्पष्ट वाचन, विचार की गंभीरता और भाषा की सहजता उनकी निबंध-शैली की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
रामविलास शर्मा को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। निराला की साहित्य साधना पुस्तक पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ था। अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों में सोवियत भूमि, नेहरू पुरस्कार, उत्तर प्रदेश सरकार का भारत भारती पुरस्कार, व्यास सम्मान और हिंदी अकादमी दिल्ली का शलाका सम्मान उल्लेखनीय हैं।
पुरस्कारों के प्रसंग में शर्मा जी के आचरण की एक बात महत्त्वपूर्ण है कि वे पुरस्कारों के माध्यम से प्राप्त होने वाले सम्मान को तो स्वीकार करते थे, लेकिन पुरस्कार की राशि को लोकहित में व्यय करने के लिए लौटा देते थे। उनकी इच्छा थी कि यह राशि जनता को शिक्षित करने के लिए खर्च की जाए।
रामविलास शर्मा की रचनाएँ
रामविलास शर्मा की उल्लेखनीय कृतियाँ हैं- भारतेंदु और उनका युग, महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण, प्रेमचंद और उनका युग, निराला की साहित्य साधना (तीन खंड), भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी (तीन खंड), भाषा और समाज, भारत में अंग्रेजी राज और मार्क्सवादी, इतिहास दर्शन, भारतीय संस्कृति और हिंदी प्रदेश आदि। छह दशकों में फैला उनका लेखन लगभग 50 पुस्तकों के रूप में उपलब्ध हैं।