वसंत ऋतु पर निबंध: वसंत ऋतु पर कविता: Essay on Spring Season in Hindi

वसंत ऋतु का आगमन शीत ऋतु के समाप्त होने के बाद फरवरी, मार्च महीने में होता है. इस ऋतु के आगमन होते ही आमों में मंजर आ जाता है,  पेड़ों के पुराने पत्ते गिरने लगते हैं और नए पत्ते आते हैं, आसमान पर बादल छाए रहते हैं. हरे-भरे पेड़ों और फूलों से चारों तरफ हरियाली रहता है.  इसलिए पुरे भारतवर्ष में वसंत ऋतु को सबसे सुहावना ऋतु माना जाता है. तो आज हम आपसे इसी के बारे में बात करेंगे कि वसंत ऋतु का महत्त्व क्या है? Vasant Ritu par Nibandh.

वसंत ऋतु किसे कहते हैं? 

जाड़े का मौसम यानि शीत ऋतु के बाद के मौसम को वसंत ऋतु कहते हैं. जिसके आगमन का समाचार सुनते ही मन-प्राणों की क्यारी-क्यारी लहलहा उठती है, अंतरात्मा की डाली-डाली मुस्करा उठती है, वह है ऋतुओं का राजा ‘वसंत ऋतु’.

इस  ऋतु का आविर्भाव होते ही सवित्र स्वर्गिक माधुरी का प्लाया छलकता दिखता है. वातावरण में चारों ओर हरियारी-ही हरियाली दिखाई देता है.उदास निराश पहाड़ियों का सुहाग जग उठता है और वे लाल चूनर पहने नई-नवेली दुल्हनों-सी सजी दिखती है.

वसंत ऋतु का आगमन कब होता है? 

इस ऋतु का आगमन जाड़ा खत्म होने के पश्चात् फरवरी, मार्च महीने में होता है. इस ऋतु का आविर्भाव होते ही वातावरण में चारों ओर हरियारी छा जाती है. पेड़ों के पुराने पत्ते गिरने लगते हैं और नए पत्ते आते हैं, आमों में मंजर आने लगते हैं. उदास निराश पहाड़ियों का सुहाग जग उठता है और वे लाल चूनर पहने नई-नवेली दुल्हनों-सी सजी दिखती है. इसके आते ही मौसम सुहाना हो जाता है.

वसंत ऋतु पर निबंध 

वसंत ऋतु के आगमन होते ही वृक्ष अपने तन से पुराने पत्तों के जीर्ण वस्त्र को त्यागकर, नवीन कोंपलों का परिधान धारण कर नवजीवन की अँगड़ाइयाँ लेते दिखते हैं. गुलाब फूल में अटकनेवाली भौरे नई खिली कलियों का आमंत्रण पाकर गुनगुनाना आरंभ करते हैं.

इस ऋतु के समाचार सुनते ही मन-प्राणों की क्यारी-क्यारी लहलहा उठती है, अंतरात्मा की डाली-डाली मुस्करा उठती है.ना तो तन को विधुत-तरंग मारनेवाला शीत है और न नागिन की तरह जिहाएँ खोलनेवाली लू की लपटों की आशंका ही. एक हल्का गुलाबी जाड़ा- तन मन में गजब स्फुर्ति भरनेवाला, न तो शीत-निशिचर के कठोर  स्पर्श का उत्पीड़न है और न ग्रीष्म-ऋतु का तपती गर्मी.

यामिनी प्रमोदिनी,उषा मधुरहासिनी हो जाती है. पादप-पत्रों के आनाथ अधरों का सोया संगीत जग उठता है. पारे-सी पारदर्शी नदियाँ मोटापा दूर होने के कारण जैसे किसी भी आगमनी से नाचने लगती है और तब तक लगता है वसंत सचमुच वसंत है. जिसमें आनंद, केवल आनंद का ही वास है. इसीलिए तो भगवान श्री कृष्ण ने अपने श्रीमुख से अपने को ‘ ऋतूनां कुसुमाकर’ ( ऋतुओं में मैं वसंत हूँ ) कहकर इसकी महत्ता सिद्ध की थी.

ऐसी मनमोहक ऋतु में गौतम बुद्ध का कथन ‘ सर्वं दु:ख दु:खम्, सर्वं क्षणिकं क्षणिकंम्’ मिथ्यावचन प्रतीत होता है. लगता है जीवन में केवल आनंद का ही प्रवाह लहरा रहा है, सम्मोहन का साम्राज्य और अनुराग का ऐश्वर्य ही पग-पग पर लूट रहा है, उन्मुक्त यौवन की रसवंती धारा कूल-किनारा तोड़ रही है, उच्छल उत्साह की सरिता उमड़ चली है. सचमुच वसंती सुषमा की एक बाँकी चितवन पर लाख-लाख स्वर्गिक सुख न्योछावर है.

यही कारण है कि संसार के प्रसिद्ध कवियों ने इसी ऋतु को सर्वाधिक पसंद किया और अक्षरबद्ध कर अक्षर बना दिया. श्लोकबद्ध कर पुण्यशलोक कर दिया. महाकवियों ने आत्मा-परमात्मा या नायक-नायिकाओं का प्रेम मिलन कराया.

Essay on Spring Season in Hindi 

ऋतुराज यानि वसंत ऋतु के आगमन होते ही प्रकृति रानी नई वेशभूषा, नई विच्छिति में उपस्थित होती है. उसके परिधान में रंग बिरंगे फूल टँके होते हैं, उसके स्वागत के लिए अलिकुल वाद्यवादन करते दौड़ पड़ते हैं, शिखिसमूह नर्तन करते दिख पड़ते हैं, चंपा उसके मस्तक पर क्षत्र धारण करता है. आम्रमंजरियाँ उसके मुकुट है, पक्षिसमूह उसका अभिषेक-मंत्र पढ़ता है.

कुंदतरू निशान धारण करते हैं, पाटल के पत्ते ही उसके तरकश करते हैं. अशोक के पत्ते ही बाण है, पलाश के पुष्प उसके धनुष है, लवंगलता उसकी प्रत्यंचा. मधुमक्षिकाओं की विशाल सोना सजाकर राजा वसंत ने जैसे शिशिर की पूरी सेना को परास्त कर दिया है.

खेतों में दूर दूर तक गेहूँ के गोरे गालों पर रूपसी तितलियाँ बल खा रही हैं. तीसी के महकती तथा सरसों के पुखराजी फूलों पर भ्रमरों की पंक्तियाँ मँडराती है. मालतीलताओं को मतवाले भौरें चूम रहे हैं और उनकी कोमल कलियाँ मंद-मंद पवन के हिंडोले पर झूल रही है.

कहीं सुग्गे की चोंच के समान टेसू के फूल खिले है, तो कहीं हल्दी के रंग के कनेर के फूल. रुई के फाहे की तरह कुंद कलियाँ आम्रमंजरियों से इत्र को मात करनेवाली भीनी-भीनी महक, दिलफरेब चाँदनी, मस्तानी काकली, गंधमाती हवा, उन्मादक गुंजार- कष्टभरे जीवन के लिए अनोखे रसायन है.

वसंत ऋतु का महत्व 

इसी ऋतु में जयदेव ने राधा-कृष्ण का मिलन कराया. तो गोस्वामी तुलसीदास ने राम-सीता का मिलन उस जनक की पुष्पवाटिका में कराया,जहाँ वसंत ऋतु लुभाकर रह गई थी. त्रिपुरासुर के विनाश के लिए जब कामदेव ने योगिराज शंकर की समाधि भंग करनी चाही थी, तब उसे वसंत की सहायता लेनी पडी थी.

वाल्मीकि, कालीदास, सूरदास, पधकार, पंत, क्या रवीन्द्रनाथ ठाकुर, क्या सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ सभी ने वसंत पर कविताएँ लिखी है. अंग्रेज के महान कवियों में शेक्सपियर, मिल्टन, टेनीसन, ब्राउनिंग, सिवनबर्न थॉमसन सभी ने वसंत का गुणगान अपनी कविताओं में किया है.

वसंत प्रतीक है आनंद का, उल्लास का, रूप और सौन्दर्य का, मौज और मस्ती का, जवनी और रवनी का, किन्तु क्या पृथ्वी के सभी प्राणियों के मन में इस सजीवन वसंत में भी आनंद और उल्लास उमड़ पड़ती है, कदापि नहीं .

तभी हमे डॉo हज़ारीप्रसाद द्विवेदी के वैयक्तिक निबंध ‘वसंत आ गया’ की पंक्ति याद हो आती है. “वसंत आता नहीं ले आया जाता है।” यदि हम भी रूढ़ियों, अंधविश्वासों, कुसंस्कारों के जीर्ण-शीर्ण पत्रों को त्यागकर नवीनता और प्रगतिशीलता के नूतन किसलयों से अपना शृंगार कर सकें, तो सचमुच वसंत हमारे जीवन में वर्ष में केवल एक बार ही नहीं, वरन बार-बार लहराता रहेगा, इसमें संदेह नहीं.

वसंत ऋतु पर कविता 

देखो वसंत ऋतु आई
चारों ओर हरियाली छाई

रंग बिरंगे फुले खिलाए
खेतों में सरसों लहराए
फूलों पर भौरें मंडराएँ

मस्त मगन हो के तित्तली भी नाचे
पीले वस्त्र पहन के बच्चे
नाचे गएँ खुशी मनाएँ

सूरज की लाली सबको भाए
देख वसंत वृक्ष भी शाखा लहराए
खुला नीला आसमा सब को मन को हर्षाये
जब वसंत अपने रंग-बिरंगे रंग दिखाएं

देखो कैसी कैसी मस्ती है छाई
आई रे आई देखो वसंत ऋतु आई।

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