वायुमंडल की संरचना: वायुमंडल किसे कहते हैं? वायुमंडल में गैसों की मात्रा कितनी है?

हम सभी जिस पृथ्वी में जीवन-यापन करते हैं. वह पृथ्वी चारों ओर से वायु से घिरा हुआ है. पृथ्वी के चारों ओर घेरे हुए वायु को वायुमंडल कहा जाता है. अब आप सभी के मन में सवाल होगा कि वायुमंडल की संरचना कैसे हुई और वायुमंडल में कौन-कौन सी गैसें पायी जाती है. तो आज हम आपसे Vayumandal ki Sanrachana के बारे में बात करेंगे. वायुमंडल की संरचना विभिन्न गैसों और परतों से हुई है.

वायुमंडल किसे कहते हैं? 

पृथ्वी के चारों ओर घिरे हुए वायु के घनी चादर या फैलाव को वायुमंडल कहते हैं. वायुमंडल रंगहीन, गन्धहीन, तथा स्वादहीन होता है. वायुमंडल में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाई-ऑक्साइड, आर्गन जैसी कई गैसें पायी जाती है. साधारण भाषा में कहा जाए तो, वायुमंडल विभिन्न गैसों का मिश्रण है. गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण वायुमंडल पृथ्वी के चारों ओर घिरे हुए हैं. वायुमंडल की ऊपरी परत के अध्ययन को वायुर्विज्ञान और निचली परत के अध्ययन को ऋतु विज्ञान कहते हैं.

वायुमंडल की संरचना का वर्णन 

वायुमंडल की संरचना विभिन्न परतों, क्षोभ मंडल, समतापमंडल, ओजोन मंडल, आयन मंडल और बहिर्मंडल से हुई है. वायुमंडल की संरचना एक बहुत जटिल प्रक्रिया है. वर्तमान में सैकड़ों अंतरिक्ष वैज्ञानिक रेडियो तरंगों, ध्वनि तरंगों और उपकरणों की सहायता से इसकी खोज एवं अनुसंधान में लगे रहते हैं.

क्षोभमंडल

यह वायुमंडल की सबसे निचली परत है. इसकी ऊंचाई ध्रुवों पर 8 किलो मीटर तथा विषुवत रेखा पर लगभग 18 किलो मीटर होती है. बादल, आंधी और वर्ष जैसी सभी वायुमंडलीय घटनाएँ क्षोभमंडल में ही घटित होती है. इस मंडल को संवहन मंडल भी कहते हैं, क्योंकि संवहन धाराएं इसी मंडल तक सीमित होती है. इसे अधों मंडल भी कहा जाता है.

समतापमंडल

क्षोभमंडल से ऊपरी स्तर का मंडल समतापमंडल है. इसकी ऊंचाई 18  किलो मीटर से 32किलो मीटर तक है. इस मंडल में आंधी, बादलों की गरज, बिजली कड़क, धुल-कण एवं जलवाष्प आदि जैसी मौसमी घटनाएँ नहीं होती है. समताप मंडल की मोटाई ध्रुवों पर सबसे अधिक होती है, कभी-कभी विषुवत रेखा इसका लोप हो जाता है. कभी-कभी विशेष मेघों का निर्माण इस मंडल में होता है, जिसे मूलाभ मेघ के नाम से जाना जाता है. समताप मंडल में ही वायुयान उड़ते हैं.

ओजोन मंडल

पृथ्वी के धरातल से 32 किलो मीटर से 60 किलो मीटर दूरी के मध्य ओजोन मंडल स्थित है. इस मंडल में ओजोन गैस की एक परत पाई जाती है, जो सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों अवशोषित कर लेती है. इसलिए इस मंडल को पृथ्वी का सुरक्षा कवच कहा जाता है. क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस (CFC) ओजोन परत को नष्ट करने  वाली गैस है, जो रेफ्रिजेरेटर, एयर कंडीशनर आदि से निकलती है. इस मंडल में ऊंचाई के साथ तापमान बढ़ता है, प्रति एक किलो मीटर की ऊंचाई पर तापमान में 5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है. ओजोन परत की मोटाई को मापने के लिए डाबसन इकाई का प्रयोग किया जाता है.

आयन मंडल

यह ओजन मंडल से ऊपरी स्तर का मंडल है. इस मंडल की ऊंचाई 60 किमी से 640 किमी तक होती है. इस मंडल का भाग कम वायुदाब तथा पराबैंगनी किरणों के द्वारा आयनीकृत होता रहता है. आयन मंडल में रेडियो वेव बनता है, इसी मंडल के फलस्वरूप पृथ्वी पर रेडियो, टेलीफोन, टेलीविज़न आदि की सुविधा मिलती है. संचार उपग्रह आयन मंडल में अवस्थित होते हैं.

बाह्य मंडल/ बहिर्मंडल

यह वायुमंडल का अंतिम और सबसे ऊपरी मंडल होता है. 640 किलो मीटर से ऊपर के भाग को बह्यामंडल कहा जाता है. इस मंडल की कोई ऊपरी सीमा निर्धारित नहीं है. बाह्य मंडल में हाइड्रोजन एवं हीलियम गैस होती है.

वायुमंडल में गैसों की मात्रा कितनी है?

नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाई-ऑक्साइड, ओजोन आदि कई गैसों का मिश्रण वायुमंडल है. गैसों का मिश्रण ही वायुमंडल होता है. वायुमंडल में इन सभी गैसों की मात्रा अलग-अलग होती है.

नाइट्रोजन की मात्रा 

वायुमंडल में नाइट्रोजन गैस की मात्रा 78% है. नाइट्रोजन गैस की उपस्थिति के कारण ही वायुदाब, पवनों की शक्ति तथा प्रकाश के परावर्तन का आभास होता है. वायुमंडल में सबसे अधिक नाइट्रोजन गैस की ही मात्रा पाई जाती है. इस गैस का कोई रंग, गंध अथवा स्वाद नहीं होता है. इस गैस का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह वस्तुओं को तेजी से जलने से बचाती है. अगर वायुमंडल में नाइट्रोजन नहीं होता, तो आग पर नियंत्रण रखना कठिन हो जाता. यह गैस वायुमंडल में 128 किलो मीटर की ऊंचाई तक फैली हुई है.

ऑक्सीजन की मात्रा 

इस गैस की मात्रा वायुमंडल में 20.93% है. जो वायुमंडल में 64 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैली हुई है. ऑक्सीजन गैस अन्य पदार्थों के साथ मिलकर जलने में कार्य करती है. इस गैस के अभाव में ईंधन नहीं जला सकते, अत: ऑक्सीजन उर्जा का मुख्य स्रोत्र है.

कार्बन डाई-ऑक्साइड

इसकी मात्रा वायुमंडल में 0.03% है. यह सबसे भारी गैस है, इस कारण यह सबसे निचली परत में मिलती है. कार्बन डाई-ऑक्साइड सूर्य से आने वाली विकिरण के लिए पारगम्य तथा पृथ्वी से परावर्तित होने वाले विकिरण के लिए अपारगम्य है. यह वायुमंडल के निचली परत को गर्म रखती है.

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