गीत गाने दो मुझे कविता की व्याख्या, भावार्थ, सारांश (सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’)

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी की प्रेरक रचना ‘गीत गाने दो मुझे‘ दुःख को भुलाकर सुख की आशा बनाए रखने का संदेश देती है। विषम परिस्थितियों में भी जीवन संघर्ष करते हुए आशा के सहारे निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देने वाली कविता है। आइए जानते हैं गीत गाने दो मुझे कविता की सप्रसंग व्याख्या, भावार्थ एवं सारांश।

गीत गाने दो मुझे कविता का भावार्थ

इस कविता में निराला ने ऐसे समय की ओर इशारा किया है जिसमें चोट खाते-खाते, संघर्ष करते-करते होश वालों के होश खो गए यानी जीवन जीना आसान नहीं रह गया है। मनुष्य के जीवन में जो कुछ मूल्यवान था वह लूट रहा है। पूरा संसार हार मानकर जहर से भर गया है। पूरी मानवता हाहाकार कर रही है।

लगता है, पृथ्वी की लौ बूझ गई है, मनुष्य में जिजीविषा खत्म हो गई है। इसी बुझती हुई लौ को जगाने की बात कवि कर रहा है और वेदना को छिपाने के लिए, उसे रोकने के लिए गीत गाना चाहता है। निराशा में आशा का संचार करना चाहता है। इसमें कवि ने यह प्रेरणा दी है कि संसार को सबके जीने योग्य बनाने के लिए कुछ लोगों को स्वयं भी जलना होगा अर्थात त्याग करके ही समाज की स्थिति में परिवर्तन लाया जा सकता है।

गीत गाने दो मुझे कविता की सप्रसंग व्याख्या

गीत गाने दो मुझे तो,
वेदना को रोकने को।

चोट खाकर राह चलते
होश के भी होश छूटे,
हाथ जो पाथेय थे, ठग-
ठाकुरों ने रात लूटे,
कंठ रुकता जा रहा है,
आ रहा है काल देखो।

प्रसंग:

प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा’ में संकलित सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘गीत गाने दो मुझे’ से ली गई है। इस कविता में निराला जी ने संसार की विषम परिस्थितियों की ओर संकेत किया है। इसमें कवि ने ऐसे समय का वर्णन किया है, जब मानव जीवन अत्यंत कठिन हो गया था। उस समय लोगों की चेतना को जगाने के लिए कवि गीत गाना चाहता है।

व्याख्या:

कवि कहना चाहता है कि वेदना को रोकने के लिए मुझे गीत गाने दो। रास्ते में चलते हुए चोट खाकर होश वालों के भी होश छूट गए हैं। जो कुछ भी संबल हाथ में था, उसे रात के समय ठगों ने लूट लिया है। कंठ की आवाज़ बंद होती जा रही है। देखो, काल आ रहा है।

भाव यह है कि संसार की स्थिति ऐसी हो गई है कि यहाँ जीवन जीना कठिन हो गया है। जीवन की कठिनाइयों का सामना करते हुए लोग किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो गए हैं। जीवन में जो कुछ भी मूल्यवान था, वह लूटता जा रहा है। विनाश को सामने देखकर लोग कुछ कह नहीं पा रहे हैं। इस दशा में कविता ही लोगों की व्यथा को रोक सकती है, उनमें चेतना जगा सकती है।

गीत गाने दो मुझे की व्याख्या

भर गया है ज़हर से
संसार जैसे हार खाकर,
देखते हैं लोग लोगों को,
सही परिचय न पाकर,
बूझ गई है लौ पृथा की,
जल उठो फिर सींचने को।

प्रसंग:

प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा’ में संकलित सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित कविता ‘गीत गाने दो मुझे’ से ली गई है। इन पंक्तियों में कवि ने दुनिया की भयावह स्थिति का वर्णन किया है। कवि का मानना है कि संपूर्ण विश्व विष से भर चुका है और पृथ्वी की लौ बूझ गई है। उसे पुनः अलाने के लिए कवि गीत गाना चाहता है।

व्याख्या:

कवि कहता है कि पूरा संसार हार मानकर ज़हर से भर गया है। मनुष्य को उसकी सही पहचान नहीं मिल रही है। लोग एक-दूसरे की ओर अपरिचित निगाहों से देख रहे हैं अर्थात् मानवता हार चुकी है। लोगों का सौहार्द समाप्त हो चुका है। मनुष्य की जिजीविषा ख़त्म हो गई है।

पृथ्वी की लौ बूझ गई है। इसे पुनः जगाने की आवश्यकता है। इसके लिए कवि लोगों का आह्वान करता है कि बुझती हुई लौ को फिर से जागृत करने के लिए तुम जल उठो अर्थात् संसार की विसंगतियों को दूर करने के लिए संघर्षरत हो जाओ।

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