Corruption Essay in Hindi: भ्रष्टाचार क्या है? भ्रष्टाचार पर निबंध

Corruption Essay in Hindi

भ्रष्टाचार देश के लिए एक ज्वलंत समस्या है. भारत समेत अन्य विकसित देशों में भ्रष्टाचार काफी तेजी से फैलता जा रहा है. भ्रष्टाचार जैसी समस्या के लिए हम सभी ज्यादातर …

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जीवन का लक्ष्य पर निबंध: Mere Jeevan ka Lakshya Essay (Aim of Life)

Mere Jivan ka Lakshya

प्रत्येक व्यक्ति का कोई-न-कोई लक्ष्य होना चाहिए। बिना लक्ष्य के मानव उस नौका के समान है जिसका कोई खेवनहार नहीं है। ऐसी नौका में कभी भी भँवर में डूब सकती …

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भारतीय किसान पर निबंध: भारतीय किसान की समस्या

भारत एक कृषि प्रधान देश है। किसान दिन-रात मेहनत करके सभी के लिए अनाज उगाते हैं, उन्हीं से सबका पेट भरता है, लेकिन फिर भी हमारे किसानों की स्थिति उतनी भी अच्छी नहीं है। आज के इस लेख ‘भारतीय किसान पर निबंध‘ के माध्यम से हम भारतीय किसान की समस्या के साथ ही सुधार पर भी बात करेंगे।

भारतीय किसान की समस्या

भारतीयों कृषकों की दिनावस्था के एक नहीं, अनेक कारण हैं। पहला कारण है- उनकी बेहद गरीबी। इस गरीबी के कारण ही वे खेती के आधुनिक और विकसित उपकरण खरीद नहीं पाते। वे न सिंचाई का प्रबंध कर पाते हैं, न खेतों में उर्वरक डाल पाते हैं, न उत्तम बीज खरीद पाते हैं; तो आप ही बताइए कि उनका फसल अच्छा कैसे होगा?

दूसरा कारण है- उनकी घोर अशिक्षा। अशिक्षा के कारण वे रूढ़ियों के दास बने हुए है। उनकी धारणा है कि उर्वरक डालने से कुछ दिनों के बाद भूमि बंध्या हो जाएगी। अतः अच्छा है कि खेत को सर्वदा प्रसूता बनाने के लिए उसमें खाद न डाली जाए। चूँकि उनमें शिक्षा नहीं है, इसलिए वे गोबर के महत्व को भी नहीं जानते। वे वैसे उत्तम पदार्थ के गोइठें बना डालते है। मवेशी के द्वारा छोड़ी गई घास से वे कंपोस्ट बनाना नहीं जानते हैं। वे कृषि-संबंधी पत्रिकाएँ नहीं पढ़ते, इसलिए उत्तम कृषि की पद्धतियों से परिचित नहीं है। वे उत्तम प्रकार के बीजों की जानकारी भी नहीं रखते।

तीसरा कारण है – हमारे कृषक भी खेती को उत्तम नहीं मानते। वे अब निषिद्ध चाकरी को उत्तम मानने लगे है। कोई किसान नहीं चाहता है कि उसका बेटा कृषि की शिक्षा प्राप्त कर विकसित पद्धति से खेती करे। डॉक्टर अपने बेटे को वाणिज्य की शिक्षा देकर, व्यापारिक प्रशिक्षण प्रदान कर कुशल व्यापारी बनाना चाहता है, किन्तु कृषक नहीं चाहते की उनका बेटा कृषि की शिक्षा प्राप्त कर समुन्नत कृषि करे। वे अपने बेटों को मामूली किरानी बनाना चाहते हैं, कृषक नहीं। जब तक कृषकों की यह मनोवृत्ति नहीं बदलेगी, तब तक ना तो उनकी स्थिति में सुधार आएगा, न देश की स्थिति में।

चौथा कारण है- प्रकृति की प्रति निर्भरता। हमारे देश की खेती बहुत कुछ मानसून की कृपा पर निर्भर है। कुटज-कुसूमों से लाख पूजा करने के बाद भी जब बादल महाराज नहीं पिघलते, तब फिर किसानों की स्थिति बड़ी दयनीय हो जाती है। खेत में फसल उगाई नहीं जा सकती। सारी धरती मरुभूमि जैसी मालूम पड़ती है। कभी-कभी जब बीच में इंद्र भगवान दगा दे जाती है, मरुभूमि कोंपलों के साथ किसानों के कपोल भी मुरझा जाते हैं। कभी-कभी अतिवृष्टि या बाढ़ जब अपनी सर्वग्रारासिनी लपलपाती जिह्यएँ खोलती है, तब फिर लहलहाते खेतों का वैभव क्षणभर में विवर्ण हो जाता है।

किसानों की समस्याओं का सुधार

इधर भारत सरकार तथा प्रांतीय सरकारों ने भारतीय कृषि की इस विवशता की और काफी ध्यान दिया है। अतिवृष्टि एवं बाढ़ के प्रकोप को रोकने के लिए तटबंध बनाए जा रहे हैं, सिंचाई के लिए कूपों, नालों, नहरों और सरकारी ट्यूब-वेलों से पानी का प्रबंध किया जा रहा है।आधुनिकतम कृषि-ज्ञान देने के लिए हर राज्य में कृषि-पदाधिकारी भेजे जा रहे हैं। कृषि के लिए उत्तम बीज तथा खाद की व्यवस्था की जा रही है।

गेहूँ की अधिक उपज देनेवाली किस्म सोना, कल्याण आदि का प्रचार किया जा रहा है। साल में तीन-तीन बार फसल देनेवाले धान रोपे जा रहे हैं। गहन कृषि योजना चालू की जा रही हैं। तथा किसानों को ट्रैक्टर-प्रशिक्षित करने की व्यवस्था की जा रही है। सिंचन-यंत्र किश्तों पर दिए जा रहे हैं। आर्थिक अभाव को दूर करने के लिए बैंकों से भी ऋण की व्यवस्था की जा रही है। हरित क्रांति से भारतीय किसानों के मध्य नई उषा आनेवाली है।

किन्तु यह उषा तभी चिरस्थायिनी हो सकती है। जब कृषकों का देशव्यापी संघ हो, उनकी उपज का मूल्य निश्चित (assured price) हो, उनकी फसल का बीमा (insurance of harvest) हो, उनकी उपज पूँजीपति मनचाहे मूल्यों पर ना खरीदे। क्रेता और कृषक के बीच जो मुनाफा मारनेवाले सेठ-साहूकार हैं, उन्हे समाप्त कर देना भी बड़ा आवश्यक है।

भारतीय किसान पर निबंध

इसके अतिरिक्त, कृषकों को हम हेय दृष्टि से देखना छोड़े तथा उन्हें राज्य-सरकार और भारत सरकार द्वारा भी उचित सम्मान मिलना चाहिए। यदि कोई नर्तक या वादक राष्ट्रपति के द्वारा पद्धाश्री, पद्धविभूषण आदि से सम्मानित किया जाता है। तो जिनके अन्न से उनके मन के तार बजते है, उन्ही कृषकों को सम्मानित ना किया जाए, यह अनुचित है। इस प्रकार, हमें अनेक प्रकार से कृषिकर्म को सुरक्षित एवं सम्मानित बनाने की आवश्यकता है। प्रसन्नता की बात है कि अब भारत सरकार उन्नत कृषि करने वाले कृषकों को ‘कृषिपण्डित’, ‘कृषिश्री’ आदि की उपाधि से विभूषित करने लगी है।

किन्तु, छोटे किसानों की कम तथा टुकड़ों-टुकड़ों में विभक्त भूमि, बड़े किसानों की अशिक्षा और नई पद्धतियों के प्रति उदासीनत तथा सरकारी कर्मचारियों की पूर्ण तत्परता के अभाव के कारण किसानों का जैसा भाग्योदय अभीप्सित है, वैसा नहीं हो पा रहा है। सरकारी योजनाओं की गंगोत्तरी अब भी उनके जीवन में पूर्ण रूप से नहीं उतर रही है।

अब वह समय शीघ्र आनेवाला है, जब भारतीय किसान कापालिक की भाँति नहीं रहेंगी। भिखमंगों की दलित जिंदगी नहीं व्यतीत करेंगे, वरन् वे अमेरिका, रूस, जापान तथा हालैन्ड के किसानों की भाँति बिलकुल संपन्न-समृद्ध एवं जीवनस्तर आधुनिक साधनों से युक्त रहेंगे। खेतों में काम करने के समय भले ही वे स्वेदकणों की माला पहनें, किन्तु वहाँ से निकलने पर वैसे ही वातानुकूलित कक्षों में रहेगा, जैसे संपन्न नागरिक रहा करते हैं। पंजाब हरियाणा के अनेक किसानों ने अपने अध्यवसाय से साबित कर दिया है कि ऐसा संभव भी है।

कृषक भारतीय जवान के मेरुदंड है। वे भारतीय समाज की केंद्रस्थ धुरी है। अतः उनके विकास, उद्धार एवं उन्नयन से ही भारत का विकास, उद्धार एवं उन्नयन संभव है। भारत का भविष्य भारतीय किसानों का भविष्य है। अब हमें गाँवों में स्वर्ग उतारना है, नंदनकानन बसाना है, युगों से कृषकों की म्लान मुखाकृति पर मुसकराहटों के फूल खिलाने है। कृषक मानवजाति की विभूति है। जिसने अनाज के दाने उपजाए, पौधों के पत्ते लहराए, वह मानवता का महान सेवक है और उसका महत्व किसी भी राजनीतिज्ञ से कम नहीं।

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