लोकतंत्र और चुनाव पर निबंध: Short Hindi Essay on Elections

भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहाँ पर प्रत्येक पाँच वर्ष में चुनाव होते हैं, और आम जनता अपने जन-प्रतिनिधि का चयन करते हैं जो सरकार के साथ काम करते हैं और लोगों के कल्याण के लिए काम करते हैं। बच्चों को अक्सर Short Essay on Elections in Hindi (लोकतंत्र और चुनाव पर निबंध) लिखने को कहा जाता है, जिससे वे चुनाव यानी निर्वाचन के बारे में अच्छे से समझ सकें।

10 Lines Hindi Essay on Elections

  • लोकतंत्र को ही जनतंत्र की संज्ञा दी गई है, जिसका अर्थ है- जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का जनहित में शासन करना। लोकतंत्र और चुनाव का संबंध चोली-दामन जैसा ही है।
  • लोकतांत्रिक शासन-प्रणाली को चलाने के लिए जनता को स्वच्छ और सही तरीक़े से जनहित में कार्य करनेवाले सुयोग्य प्रशासकों का चुनाव अपने मतदान के आधार पर करना पड़ता है।
  • लोकतंत्र में चुनाव ही वह शक्ति है, जिसके द्वारा आम जनता अपने हितों को ध्यान में रखते हुए प्रशासन में एक तरह से हस्तक्षेप कर सकती है, अवांछित और अयोग्य प्रशासकों को बदल सकती है और कर सकती है निष्क्रिय प्रशासन को उचित दिशा में सक्रिय।
  • यही कारण है कि लोकतंत्र को शासन-व्यवस्था का प्राण-तत्व कहा गया है।
  • लोकतंत्र में चुनाव सत्ता-परिवर्तन का साधन और उसकी प्राप्ति का माध्यम भी है।
  • चुनाव एक ऐसी प्रक्रिया है, जो सत्तारूढ़ और विरोधी दोनों दलों के लिए विशेष प्रकार का आकर्षण-केंद्र हुआ करती है।
  • सत्ताधारियों के लिए इसलिए कि वह आम जनता की कठिनाइयों को दूर करे; उसकी समस्याओं को इस प्रकार सुलझाए कि सबों के हितों की रक्षा हो सके; आम जनता के मन में निश्चिंतता और लोकतंत्र के प्रति आस्था का भाव उभर सके, ताकि अगले चुनावों में भी उसकी सत्ता बनी रहे।
  • विरोधी दलों के लिए इसलिए कि वे सत्तारूढ़ दलों की कमजोरियों और नाकामियों को उस सीमा तह ले जा सकें कि अगले चुनावों में वह सत्तारूढ़ होकर जनता की सुख-सुविधा और सुरक्षा के कार्य अपनी मान्यताओं और नीतियों के अनुरूप कर सकें।
  • जनता के पास लोकतंत्र में चुनाव ही वह अस्त्र हुआ करता है, जिसके द्वारा वह शासक-दल और विरोधी दल दोनों पर अंकुश और नियंत्रण लगाए रख सकती है।

लोकतंत्र और चुनाव पर निबंध

लोकतंत्र शासन-प्रणाली में जनता को अनेक प्रकार के राजनीतिक अधिकार प्रदान किए जाते हैं, उनमें से वोट देने का अधिकार भी एक प्रमुख अधिकार है। प्रजातंत्र शासन में सरकार की सर्वोच्च सत्ता जनता में निहित रहती है। सभी लोगों को मताधिकार होता है। वह अपनी भावना और विचारों के अनुरूप अपना मत देकर अपने प्रतिनिधि को चुनता है।

वे प्रतिनिधि संसद में और विधान सभाओं में जनता के विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मताधिकार और निर्वाचन से ही लोकतंत्र शासन-प्रणाली का अस्तित्व है। इससे जनता अपनी अनुसार सरकार बना सकती है। इसके साथ ही उसके कार्य से असंतुष्ट होने पर उसे अगले चुनाव में हटा भी सकती है।

पर अपने मताधिकार के इस अचूक अस्त्र के प्रयोग के लिए लोकतंत्रात्मक व्यवस्था वाले देशों में जनता का सभी प्रकार से जागरूक तथा सावधान होना बहुत आवश्यक है। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आदि सभी पहलुओं से जागरूक जनता ही चुनाव के माध्यम से देश या प्रांतों के प्रशासन में ऐसे व्यक्तियों को भेज सकती है, जो वास्तव में अपने निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर जन-सेवा के कार्यों में रुचि रखनेवाले हों; त्याग और बलिदान की भावना से ओत-प्रोत हों; राजनीतिज्ञ हों; पढ़े-लिखे हों और हों राष्ट्रहित को ही अपने जीवन का आदर्श माननेवाले।

इस जागरूकता के अभाव में चुनाव महज एक मसखरे का नाटक बनकर रहा जाता है और जनता बार-बार विभिन्न पार्टियों के राजनेताओं द्वारा दिखाए गए सब्जबागों, आश्वासनों और वायदों के मकड़जालों में उलझ-पुलझकर रह जाती है। इसलिए चुनावों के समय सुरा-सुंदरी और धन-बाल का सहारा लेनेवाले भ्रष्ट नेताओं से सावधान रहकर विवेकपूर्ण ढंग से अपने मतों के प्रयोग करने में ही समाज, देश और लोकतंत्र का हित है।

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