कहानीकार के रूप में जयशंकर प्रसाद का परिचय एवं प्रमुख कहानियाँ

जयशंकर प्रसाद हिंदी के काफ़ी प्रसिद्ध कवि, कहानीकार, उपन्यासकार और निबंध-लेखक थे, जिन्होंने कामायनी, आंसू, लहर, झरना, एक घूंट, विशाख, अजातशत्रु, आकाशदीप, आंधी, ध्रुव स्वामिनी और तितली जैसे कई रचनाएँ दी हैं। आइए जानते हैं एक कहानीकार के रूप में जयशंकर प्रसाद का परिचय एवं उनकी प्रमुख कहानियाँ।

कहानीकार के रूप में जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद हिदी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबंध लेखक थे। वे हिंदी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक है। उन्होंने हिंदी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ीबोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया।

बाद में प्रगतिशील एवं नयी कविता दोनों धाराओं के प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि ‘खड़ीबोली’ हिंदी काव्य की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी। आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है।

वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरवान्वित होने येग्य कृतियाँ दी। कवि के रूप में वे निराला, पंत, महादेवी के साथ छायावाद के प्रमुख स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए है, नाटक लेखन में भारतेन्दु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक न केवल चाव से पढ़ते हैं बल्कि उनकी अर्थगर्भिता तथा रगमंचीय प्रासंगिकता भी दिनानुदिन बढ़ती ही गयी है।

इस दृष्टि से उनकी महत्ता पहचानने एवं स्थापित करने में वीरेन्द्र शांता गाँधी, सत्येन्द्र तनेजा एवं अब कई दृष्टियों से सबसे बढ़कर महेश आनन्द का प्रशंसनीय ऐतिहासिक योगदान रहा है। इसके अलावा कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई यादगार कृतियाँ दीं। भारतीय दृष्टि तथा हिंदी के विन्यास के अनुरूप गंभीर निबंध लेखक के रूप में वे प्रसिद्ध रहे है। उन्होंने अपनी विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करूणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन कलात्मक रूप में किया है।

जयशंकर प्रसाद की प्रमुख कहानियाँ

कथा के क्षेत्र में प्रसाद जी आधुनिक ढंग की कहानियों के आरंभयिता माने जाते हैं। सन् 1912 ई० में ‘इन्दु’ में उनकी पहली कहानी ‘ग्राम’ प्रकाशित हुई। उनके पाँच कहानी संग्रहों में कुल मिलाकर सत्तर कहानियाँ संकलित है। ‘चित्राधार’ से संकलित ‘उर्वशी’ और ‘बभ्रुवाहन’ को मिलाकर उनकी कुल कहानियों की संख्या 72 बतला दी जाती है।

यह ‘उर्वशी’ ‘उर्वशी चम्प से भित्र है, परंतु ये दोनो रचनाएँ भी गद्य-पद्य मिश्रित भिन्न श्रेणी की रचनाएँ ही है। ‘चित्राधार’ में तो कथा प्रबंध के रूप में पाँच और रचनाएँ भी संकलित है। जिनको मिलाकर कहानियों की कुल संख्या 77 हो जाएगी, परंतु कुछ अंशो में कथा तत्व से युक्त होने के बावजूद स्वयं जयशंकर प्रसाद की मान्यता के अनुसार ये रचनाएँ ‘कहानी’ विद्या के अंतर्गत नहीं आती है। अत: उनकी कुल कहानियों की संख्या सत्तर हैं।

कहानी के संबंध में प्रसाद जी की अवधारणा का स्पष्ट संकेत उनके प्रथम कहानी संग्रह ‘छाया’ की भूमिका में मिल जाता है। ‘छाया’ नाम का स्पष्टीकरण देते हुए जो कुछ कहते हैं वह काफी हद तक ‘कहानी’ का परिभाषात्मक स्पष्टीकरण बन गया है। प्रसाद जी का मानना है कि छोटीछोटी आख्यायिका में किसी घटना का पूर्ण चित्र नहीं खींचा जा सकता।

परंतु, उसकी यह अपूर्णता कलात्मक रूप से उसकी सबला ही बन जाती है क्योंकि वह मानव हृदय को अर्थ के विभिन्न आयामों की ओर प्रेरित कर जाती है। प्रसाद जी के शब्दों में, “कल्पना के विस्तृत में छोड़कर उसे घूमने का अवकाश देती है, जिसमें पाठकों को विस्तृत आनन्नद मिलता है ‘आनन्द’ के साथ इस ‘विस्तृत’ विश्लेषण में निश्चय ही अर्थ की बहुआयामी छवि सन्निहित है, और इसीलिए छोटी कहानी भी केवल विनोद के लिए न होकर हृदय पर गंभीर प्रभाव डालने वाली होती है। आज भी कहानी के संदर्भ में प्रसाद जी की इस अवधारणा की प्रासंगिकता अखुण्ण बनी हुई है, बल्कि बढी ही है।

जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय 

कवि एवं नाटककार के रूप में आधुनिक हिंदी साहित्य में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर अधिष्ठित होने के कारण प्रसाद जी की कहानियों पर लंबे समय तक समीक्षकों ने उतना ध्यान नहीं दिया जितना कि अपेक्षित था, जबकि विजयमोहन सिंह के शब्दों में, “साहित्य की प्राय: सभी विद्याओं में समान प्रतिभा तथा क्षमता के साथ अधिकार रखने वाले प्रसाद जी ने सर्वाधिक प्रयोगात्मक कहानी के क्षेत्र में ही प्रदर्शित की है। मुख्य रूप से उनके शिल्प प्रयोग विलक्षण हैं।”

छायावादी और आदर्शवादी माने जाने वाले जयशंकर प्रसाद की पहली ही कहानी ‘ग्राम’ आश्चर्यजनक रूप से यथार्थवादी है। भले ही उनकी यह कहानी हिंदी की पहली कहानी न हो, परंतु इसे सामान्यत: हिंदी की पहली ‘आधुनिक कहानी’ माना जाता है। इसमें ग्रामीण यथार्थ का वह पक्ष अभिव्यक्त हुआ है जिसकी उस युग में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। इस कहानी में महाजनी सभ्यता के अमानवीय पक्ष का जिस वास्तविकता के साथ उद्घाटन हुआ हैं वह प्रसाद जी की सुक्ष्म और सटीक वस्तुवादी दृष्टि का परिचायक है।

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