जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति, सम्पूर्ण क्या है? सम्पूर्ण क्रांति के उद्देश्य

‘सम्पूर्ण क्रांति’, जयप्रकाश नारायण के चिंतन की सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है. अपने चिंतन के शुरुआत में ही सम्पूर्ण क्रांति की बात उनके मन में थी. उन्होंने इंदिरा गाँधी को पदच्युत करने के लिए ‘सम्पूर्ण क्रांति‘ नामक आंदोलन चलाया. और वे सम्पूर्ण क्रांति के प्रणेता बन गए. तो आज हम जानेंगे जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति के बारे में. सम्पूर्ण क्रांति क्या है? सम्पूर्ण क्रांति के उद्देश्य.

सम्पूर्ण क्रांति क्या है?

सम्पूर्ण क्रांति, जयप्रकाश नारायण का विचारनारा था. जिसका आह्वान उन्होंने इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए किया था.  लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने कहा कि सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल है,  राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक क्रांति. इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण क्रांति होती है.

जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति के बारें में

सम्पूर्ण क्रांति का मतलब, सभी क्षेत्रों में क्रांति होती है, समाज की संरचना में परिवर्तन के साथ ही मनुष्य की चेतना में भी बदलाव होना. जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति का मतलब केवल समाज की संरचना में परिवर्तन लाना ही नहीं है, बल्कि मनुष्य की चेतना में भी बदलाव होनी चाहिए.

उनका कहना था कि यह एक ऐसा लोकतांत्रिक समाज होगा, जिसमें प्रत्येक नागरिक श्रमिक होगा और प्रत्येक नर-नारी में समानता होगी. सबकों समान अवसर प्राप्त होंगे. व्यक्तियों की आय में इतना अंतर नहीं होगा कि वर्ग-भेद खंड हो जाये. पूरी सम्पति का स्वामी समाज होगा और प्रगति योजनाबद्ध होगी.

सम्पूर्ण क्रांति के लक्ष्य

  • भारतीय लोकतंत्र को वास्तविक तथा सुदृढ़ बनाना.
  • जनता का सच्चा राज कायम करना.
  • समाज से अन्याय तथा शोषण आदि का अंत करना.
  • एक नैतिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक क्रांति लाना.

सम्पूर्ण क्रांति के उद्देश्य

  • लोकतंत्र को उसकी वास्तविक शक्ति लौटना
  • सत्ता का विकेंद्रीकरण
  • लोकशक्ति को जागृत करने की आवश्यकता

लोकतंत्र को उसकी वास्तविक शक्ति लौटना

जयप्रकाश नारायण इस बात पर बहुत आंदोलित थे कि आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में पांच वर्ष में एक बार अपने प्रतिनिधि चुनकर, जनता के अधिकार और कर्तव्यों की शुरुआत कर लेते हैं. और व्यवहार के अंतर्गत जनता का अपने इन प्रतिनिधियों पर कोई नियंत्रण नहीं रहता. उनका विचार है कि मतदाताओं का कर्तव्य मतदान के साथ ही समाप्त नहीं हो जाता है, बल्कि निर्वाचित प्रतिनिधि और मतदाता के बीच नियमित संपर्क रहना चाहिए, ताकि वे परस्पर उत्तरदायित्व का ठीक ढंग से निर्वाह कर सके.

सत्ता का विकेंद्रीकरण 

लोकनायक का सबसे लोकप्रिय विषय ‘सत्ता का विकेंद्रीकरण‘ है, जिस पर वे सदैव बल देते रहे हैं. जयप्रकाश नारायण का कहना है, “जब तक सता का केन्द्रीकरण रहेगा, तानाशाही का खतरा बना रहेगा.” जयप्रकाश नारायण राजनीतिक सत्ता और आर्थिक सत्ता दोनों के विकेंद्रीकरण पर बल देते हैं. और उनका यह निश्चित विचार है कि सत्ता के विकेंद्रीकरण से ही एक न्यायपूर्ण व्यवस्था की स्थपाना संभव होगी. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि अर्थव्यवस्था पूंजीपतियों और नौकरशाही दोनों के नियंत्रण से मुक्त होनी चाहिए.

लोकशक्ति को जागृत करने की आवश्यकता

सम्पूर्ण क्रांति के विषय में जयप्रकाश नारायण सबसे अधिक लोकशक्ति को जागृत करने की आवश्यकता पर बल दिए. उनकी सबसे बड़ी इच्छा थी कि यह विशाल भारतीय समाज, जो सदियों से सोया पड़ा है, एक आधुनिक और न्यायपूर्ण लोकतांत्रिक समाज में परिवर्तित हो जाये.

कुछ व्यक्तियों का विचार है कि सत्ता के आधार पर ही इस लक्ष्य को प्राप्त करने का कार्य किया जा सकता है. कुछ अन्य व्यक्तियों द्वारा इस प्रसंग में राजनीतिक दलों की भूमिका पर अधिक बल दिया गया है. जयप्रकाश नारायण ने इस विचार को अस्वीकार किया कि समाज में वांछित परिवर्तन के स्थापना का कार्य सत्ता के माध्यम से संभव नहीं है.

उन्होंने इस मत का भी समर्थन नहीं किया कि राजनीतिक दल इस भूमिका का निर्वाह ठीक प्रकार से कर सकते हैं. क्योंकि राजनीतिक दलों को तो, सत्ता संघर्ष, सत्ता प्राप्ति और सत्ता भोगने में ही सर्वाधिक आकर्षण और आनंद की अनुभूति होती है.

नारायण राजनीतिक दलों द्वारा समय-समय पर संचालित प्रतिरोध आन्दोलनों से भी संतुष्ट नहीं थे. वे भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था और प्रक्रिया के सुचारू संचालन के लिए भी ऐसा जन-जागरण अभियान चाहते थे. जिसके द्वारा उचित प्रकार के लोग जनप्रतिनिधि चुने जाये. भ्रष्ट लोगों को जनता जनार्दन के दरबार में प्रस्तुत होना पड़े और एक चुनाव से दुसरे चुनाव तक लोकतंत्रीय प्रणाली ठीक तरह से चलती रहे.

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