केदारनाथ सिंह का जीवन परिचय, काव्य विशेषता एवं भाषा-शैली

हिन्दी काव्यों की करें तो कई महान कवि हुए हैं, लेकिन केदारनाथ सिंह की काव्यों की बात ही अलग है। इनकी कविताओं में आपको मानवीय संवेदनाएँ भर-भर के मिलेंगी। इनके काव्य-संग्रह ‘अकाल में सारस‘ पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया तथा सन् 1994 ई. में ‘मैथिलीशरण गुप्त’ राष्ट्रीय सम्मान दिया गया। आइए जानते हैं केदारनाथ सिंह का जीवन परिचय, काव्य विशेषता, भाषा-शैली, साहित्यिक परिचय।

केदारनाथ सिंह का जीवन परिचय

केदारनाथ सिंह का जन्म 7 जुलाई, 1934 ई. को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में ‘चकिया’ नामक गाँव में हुआ। उन्होंने काशी हिंदू आम विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर उपाधि ग्रहण की। वहीं से इन्होंने ‘आधुनिक हिन्दी कविता में बिंब विधान’ विषय पर पी-एच. डी. की उपाधि भी प्राप्त की।

ये जवाहरलाल नेहरू के विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर रहे हैं और भारतीय भाषा-केंद्र के अध्यक्ष हैं। साहित्यिक अभिरुचि प्रारम्भ से ही थी। साम्यवादी विचारधारा ने उनके लेखन पर गहरा प्रभाव डाला। आजकल आप जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा-केंद्र से प्रोफेसर-पद से अवकाश ग्रहण कर चुके हैं।

केदारनाथ सिंह की प्रमुख रचनाएँ

अब तक केदारनाथ सिंह के छह काव्य-संग्रह प्रकाशित हुए हैं: अभी बिल्कुल अभी, जमीन पक रही है, यहाँ से देखो, अकाल में सारस, उत्तर कबीर तथा अन्य कविताएँ, और ‘वाघ’ । कल्पना और छायावाद उनकी आलोचनात्मक पुस्तक है और ‘मेरे समय के शब्द’ निबंध-संग्रह है। हाल ही में उनकी चुनी हुई कविताओं का संग्रह ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ नाम से प्रकाशित हुआ है।

केदारनाथ सिंह की काव्य विशेषता

केदारनाथ सिंह मूलतः मानवीय संवेदनाओं के कवि हैं। उन पर साम्यवाद का गहरा रंग है, किंतु उनकी वाणी में वैसी उथल-पुथल और मिशनरी उबाल नहीं है, जो कि प्रायः नौसिखुए प्रगतिवादियों में पाया जाता है। प्रगतिशील तत्त्व उनकी जुबान में शांत और संयत स्वर में मुखरित हुए हैं। वे प्रकृति के प्रेमी रहे हैं।

भाषा-शैली की बात करें, तो केदारनाथ सिंह की भाषा में बिंबमयता, वैचारिकता और सहजता-ये तीनों गुण विशेष रूप से उद्घाटित हुए हैं। बिंब-विधान पर उन्होंने अधिक बल दिया है। उनकी कविताओं की सुंदर चित्रमाला तैयार की जा सकती है।

उनकी भाषा में प्रत्येक शब्द नपा-तुला है, विचार से परिपूर्ण है। लक्ष्यप्रेरित बाण की तरह कोई शब्द व्यर्थ नहीं है। सभी का अपना संधान है, अपना व्यंग्य है, अपना अर्थ है। चिंतन-प्रधान होता हुए भी कवि का शब्द प्रयोग अत्यंत सहज एवं सरल है। यह कवि की विशिष्ट उपलब्धि है।

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