कंधरासन करने की विधि और इसके लाभ: Bridge Pose in Hindi (सेतुबंध आसन)

योग में आसन का विशेष महत्वपूर्ण स्थान होता है। आसन कई प्रकार से किये जाते हैं, जैसे- बैठकर, पेट के बल, पीठ के बल खड़े होकर। लेकिन सभी आसनों में इस बात का बहुत महत्त्व होता है कि साँस कब लेनी है और कब छोड़नी है।

कन्धरासन योग स्त्रियों के लिए अति महत्वपूर्ण आसन है तथा कन्धा, मेरुदंड, पीठ, पेट, कमर, गर्भावस्था, रक्त संचालन, पाचन प्रणाली, प्रजनन, मासिक धर्म इन सबके लिए बहुत लाभकारी है। आसन विविध रोगों का निवारण ही नहीं करता, बल्कि बौद्धिक व शारीरिक संतुलन भी बनाये रखता है।

Kandharasana Kya Hai?

कन्धरासन संस्कृत के ‘कंध’ शब्द से बना है जिसका अर्थ कन्धा होता है। इस आसन में कन्धों की विशिष्ट भूमिका होती है। विशेष रूप से इस आसन की पूर्णावस्था में शरीर का अधिकांश भाग कन्धों पर पड़ता है और इसलिए इस आसन को ‘कन्धरासन’ कहते हैं। इसे Bridge Pose या सेतुबंधासन भी कहते हैं।

Kandharasana Karne ki Vidhi

  • कंधरासन करने के लिए सबसे पहले पीठ के बल लेट जाएँ।
  • उसके बाद दोनों पैरों को घुटने के पास से मोड़ लें और पाँव को नितम्ब के निकट रखें।
  • ध्यान रहे कि दोनों एडियां दोनों नितम्बों को स्पर्श करें. पैरों को जमीन पर एक-दूसरे से अलग रहने दें।
  • दोनों टखनों को अपने दोनों हाथों से पकड़ लें उसके बाद पुरे शरीर को शिथिल करें और गहरी श्वास लें।
  • अब श्वास को अन्दर रोकते हुए नितम्बों को ऊपर उठाएं तथा पीठ को धनुष के आकार का बनाएं।
  • पैरों को जमीन पर ही सटे रहने दें तथा नाभि और छाती को यथासंभव ऊपर उठाते जाएं।
  • इस अवस्था में किसी भी प्रकार के बल का प्रयोग न करें। यह कंधरासन की पूर्णावस्था है।
  • इस स्थिति में पैरों, भुजाओं, कन्धों और सिर द्वारा शरीर को संतुलित रखें।
  • श्वास को अन्दर रोके हुए इस अवस्था में सुविधा पूर्वक थोड़े समय तक रुकें।
  • तत्पश्चात शरीर को प्रारंभिक स्थिति में नीचे ले जाएं।
  • उसके बाद कुछ समय विश्राम करने के बाद इस आसन की पुनरावृत्ति करें।

कंधरासन के फ़ायदे

  •  इस योगासन को करने से मेरुदंड से सम्बंधित सभी रोगों को ठीक किया जा सकता है।
  • Spinal disk यदि अपने स्थान से सरक गयी हो, तो उसको अपने स्थान पर लाने में यह आसन सहायता करता है।
  • यह पीठ दर्द तथा कन्धों की गोलाई को दूर करने में भी सहायक है. पीठ के समस्त स्नायु की सक्रियता और स्वास्थ्य में वृद्धि करता है।
  • यह उदर अंगों की अच्छी मालिश करता है, पचान क्रिया सुधारता है।
  • इसकी अंतिम अवस्था में पीठ को और अधिक मोड़ने तथा उसे लचीला बनाने के लिए जब पैरों का प्रयोग करते हैं, तब श्रोणी प्रदेश पर भी दबाव पड़ता है।
  • इससे प्रजनन प्रणाली से सम्बंधित स्नायु, पेशियों तथा अन्य अंगों को स्वस्थ और सक्रिय बनाने में मदद मिलती है।
  • यह स्त्रियों के प्रजनन अंगों की कार्यप्रणाली से सम्बंधित सभी दोषों को कम करने में विशेष उपयोगी है तथा गर्भपात की आशंका को भी कम करता है।
  • कन्धरासन सम्पूर्ण पीठ को लचीला बनाता है।
  • यह आसन गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत ही फायदेमंद है, लेकिन इस आसन को करते समय कुछ सावधानी भी रखनी होती है।
  • गर्भवती महिलाओं को गर्भ की उन्नत अवस्था जैसे पांचवे माह के पश्चात् इसका अभ्यास वर्जित है।
  • लेकिन प्रसव के पश्चात इस आसन का अभ्यास उदर की मांसपेशियों को सहज और सामान्य बनाने के लिए कर सकते हैं।

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