अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक सफ़र और जीवनी: Atal Bihari Vajpayee Biography in Hindi

अगर आप भारत के राजनीति से थोड़ा-भी संबंध रखते हैं, तो अटल बिहारी वाजपेयी जी का नाम ज़रूर सुना होगा। वे तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रह चुके हैं, और एक सफल राजनेता के साथ-साथ Atal Bihari Vajpayee जी एक कवि, पत्रकार और एक सफल वक्ता भी थे। वे भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक थे, और 1968 से 1973 तक उसके अध्यक्ष भी रहे थे। वे हमारे देश के एकमात्र ऐसे राजनेता थे, जो चार राज्यों के छह लोकसभा क्षेत्रों की नुमाइंदगी कर चुके थे। आइए अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक सफ़र और जीवनी के बारे में विस्तार से जानते हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन परिचय

अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म 25 दिसम्बर, 1924 को ग्वालियर रियासत में हुआ। इनके पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी स्कूल शिक्षक थे। इनके दादा पंडित श्यामलाल वाजपेयी संस्कृत के जाने-मने विद्वान थे।

अटल जी के नाम से प्रसिद्ध श्री वाजपेयी की शिक्षा विक्टोरिया कॉलेज में हुई। वर्तमान में इस कॉलेज का नाम बदलकर लक्ष्मीबाई कॉलेज कर दिया गया है। राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त करने के लिए श्री वाजपेयी कानपुर चले गए, जहाँ उन्होंने DAV College से राजनीतिशास्त्र में MA पास किया।

इसके बाद उन्होंने कानून की शिक्षा लेना शुरू की। उल्लेखनीय है कि Atal Bihari Vajpayee के पिता श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी भी नौकरी से अवकाश लेने के बाद अटल जी के साथ ही कानून की शिक्षा लेने उनके कॉलेज आ गए। बाप-बेटे दोनों कॉलेज के एक ही कमरे में रहते थे। अटल जी कानून की शिक्षा पूरी नहीं कर पाए।

अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक सफ़र

अटल बिहारी वाजपेयी अपने प्रारम्भिक जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए। इसके अलावा वह आर्य कुमार सभा के भी सक्रिय सदस्य रहे। 1942 में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के तहत उन्हें जेल जाना पड़ा। 1946 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने उन्हें अपना प्रचारक बनाकर लड्डुओं की नगरी संडीला भेजा।

उनकी प्रतिभा को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने लखनऊ से प्रकाशित राष्ट्रधर्म पत्रिका का सम्पादक बना दिया। इसके बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपना मुखपत्र पाँचजन्य शुरू किया जिसका पहला सम्पादक श्री वाजपेयी जी को बनाया गया। वाजपेयी जी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में कुछ ही वर्षों में अपने को स्थापित कर ख्याति अर्जित कर ली। बाद में वे वाराणसी से प्रकाशित चेतना, लखनऊ से प्रकाशित दैनिक स्वदेश और दिल्ली से प्रकाशित वीर अर्जुन के सम्पादक रहे।

वाजपेयी जी जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। अपनी क्षमता, बौद्धिक कुशलता व सफल वक्ता की छवि के कारण श्री वाजपेयी श्यामा प्रसाद जी के निजी सचिव बन गए। श्री वाजपेयी ने 1955 में पहली बार लोक सभा चुनाव लड़ा। उस समय वह विजयालक्ष्मी पंडित द्वारा ख़ाली की गयी लखनऊ लोक सभा सीट से उप-चुनाव हार गए। 

1957 में बलरामपुर सीट से चुनाव जीतकर वाजपेयी लोक सभा में गए लेकिन 1962 में वे कांग्रेस की सुभद्रा जोशी से चुनाव हार गए। 1967 में उन्होंने फिर इस सीट पर क़ब्ज़ा कर लिया। 1971 में ग्वालियर, 1977 और 1980 में नई दिल्ली, 1991, 1996 तथा 1998 में लखनऊ सीट से विजय प्राप्त की। ये दो बार राज्य सभा के सदस्य भी रहे। 1968 से 1973 तक ये जनसंघ के अध्यक्ष रहे। 1977 में जनता पार्टी के विभाजन के बाद भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई जिसके ये संस्थापक सदस्यों में से एक हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी की जीवनी

अटल बिहारी वाजपेयी जी को 1962 में पद्म विभूषण से सम्मनित किया गया। 1994 में ये श्रेष्ठ सांसद के रूप में गोविंद बल्लभ पंत और लोकमान्य तिलक पुरस्कारों से सम्मनित किए गए। आपातकाल के बाद मोरारजी देसाई जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने इनको अपने मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री बनाया। विदेश मंत्री पद पर रहते हुए इन्होंने पड़ोसी देशों ख़ासकर पाकिस्तान के साथ मधुर संबंध बनाने की पहल कर सबको चौंका दिया। संयुक्त राष्ट्र महासभा में इन्होंने अपनी मातृभाषा हिंदी में भाषण देकर एक नया इतिहास रचा।

विनम्र, कुशाग्र बुद्धि एवं अद्वितीय प्रतिभा सम्पन्न श्री वाजपेयी 19 मार्च, 1998 को संसदीय लोकतंत्र के सर्वोच्च पद पर प्रधानमंत्री के रूप में दुबारा आसीन हुए थे। लगभग 22 माह पहले वे भी इस पद को सुशोभित कर चुके थे लेकिन अल्प बहुमत होने के कारण उन्हें त्याग-पत्र देना पड़ा था। विशाल जनादेश ने श्री वाजपेयी से स्थायी और सुदृढ़ सरकार देना का आग्रह किया।कारगिल के बाद आगरा में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ से अटल जी ने कूटनीति का उत्तम उदाहरण पेश किया था।

सन् 2004 के आम लोक सभा चुनाव में भाजपा-राजग गठबंधन पराजित हुए जिसके अटल बिहारी नेता थे। इसके तुरंत बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने प्रधानमंत्री पद से त्याग-पत्र दे दिया और अब वह भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों की श्रेणी में आ गए हैं। वाजपेयी जी के अच्छे कार्यों के कारण पाकिस्तान तक में उनको लोग याद करते हैं। यहाँ तक कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति तक ने उनके पुनः सत्तासीन न होने पर दुःख व्यक्त किया। वाजपेयी का नाम भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। 25 दिसम्बर, 2015 को उन्हें भारत रत्न की उपाधि से नवाज़ा गया।

अटल बिहारी वाजपेयी जी को 2009 में दिल का एक दौरा पड़ा था, जिसके बाद वह बोलने में असक्षम हो गए थे। उसके बाद उन्हें किडनी में संक्रमण और कुछ अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था, जहाँ 16 अगस्त 2018 को उनका निधन हो गया।

अटल बिहारी वाजपेयी जी एक प्रखर नेता होने के साथ-साथ कवि व लेखक भी थे। इन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं हैं जिनमें उनके लोकसभा में भाषणों का संग्रह, ‘लोकसभा में अटल जी’, ‘मृत्यु या हत्या’, ‘अमर बलिदान’, ‘क़ैदी कविराय की कुंडलियाँ’, ‘न्यू डाइमेन्शन ऑफ इण्डियन फ़ॉरेन पॉलिसी’, ‘फ़ोर डिकेट्स इन पार्लियामेंट’ आदि प्रमुख हैं। इनका काव्य संग्रह ‘मेरी इक्यावन कविताएँ’ प्रमुख हैं। आज वाजपेयी जी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके आदर्श आज भी समाज में अटल हैं।

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